चिदम्बरम पर जूता क्या चला पूरी राजनीति में तहलका सा मच गया। यह प्रथा भले ही इराक वालों ने चलाई हो या बुश के नाम के साथ जुड़ी हो, पर भारतीय संस्कृति से जूतों का रिश्ता बड़ा पुराना है। चाहें शादी में सालियों का जीजा का जूता चुराना हो या मंदिर से जूते उठाना। आप ही बताइये ऐसा कौन सा घर होगा यहाँ जूता न टँगा हो या ऐसी कोई गाड़ी जिस पर ये न लिखा हो कि बुरी नजर वाले तेरी सेवा में जूता। वैसे भी जब हमारे यहाँ कोई मामला किसी भी प्रकार से नहीं सुलझता तो आखिर में जूते ही चलते हैं। और तो और बताइये पूरे विश्व में जूते की माला का प्रचलन और कहाँ मिलता है। आम आदमी की तो बात छोड़िये हमारे तो सांसद, विधायक भी मुँह की बातों से ज्यादा जूतम पैजार में विश्वास रखते हैं। जब जूता हमारी जड़ों से इतना गहरा जुड़ा हुआ है तो यह कैसे हो सकता है कि कोई इराकी सारी वाही-वाही लूट ले और हम मुँह लटकाये देखते रहे और दुनियाँ के जूते सिर पर खाते रहें कि देखो सभी देशों में जूते चलाने की प्रथा चल रही है और हम दुनियाँ से कटे हुए हैं। और मंदी के दौर में कम से कम जूता उद्योग को तो मंदी की मार से बचा ले।
अब देखिए न पूरी दुनिया में सबसे अच्छे जूते आगरा में ही बनते हैं। पर कौन है जो जूते बनाने वालों को जानता है? मटुकनाथ उर्फ लवगुरु भी जूतों की माला पहनकर ही इनते प्रसिद्ध हुए थे और आज फूलों की माला पहनकर इलेक्सन में वोट माँग रहे हैं।
अब कल्पना कीजिए बच्चे नाटक कर रहे हैं। इन्द्र सभा में बैठे हैं, नारद जी उन पर अपनी खड़ाऊ उछाल देते हैं। या अकबर अपने दरबार में बैठे हैं। बीरबल से सवाल पूछते हैं लेकिन बीरबल जवाब की जगह उन पर अपनी जूती उछाल देते हैं, जिस पर एक टैग लगा है कि आजकल यही ट्रेंड चल रहा है, भई क्या करें।