भारतीय मौद्रिक तंत्र के शीर्ष पर स्थापित भारतीय रिजर्व बैंक देश में बैंक नोटों के निर्गमन तथा मौद्रिक स्थायित्व के लिए उत्तरदायी है। रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर देश की वित्तीय स्थिति के संबंध में विभिन्न रिपोर्टें जारी की जाती हैं, इस दृष्टि से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा छमाही आधार पर जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और वैश्विक तथा घरेलू कारकों से उत्पन्न जोखिमों के प्रति इसके लचीलेपन का समग्र आकलन करती है। इसके अतिरिक्त इस रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 28 जून, 2016 को वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की गई जो इस शृंखला का तेरहवां प्रकाशन है।
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट - सम-सामयिक घटना चक्र प्रकाशन, Sam Samayik Ghatna Chakraभारतीय मौद्रिक तंत्र के शीर्ष पर स्थापित भारतीय रिजर्व बैंक देश में बैंक नोटों के निर्गमन तथा मौद्रिक स्थायित्व के लिए उत्तरदायी है। रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर देश की वित्तीय स्थिति के संबंध में विभिन्न रिपोर्टें जारी की जाती हैं, इस दृष्टि से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा छमाही आधार पर जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और वैश्विक तथा घरेलू कारकों से उत्पन्न जोखिमों के प्रति इसके लचीलेपन का समग्र आकलन करती है। इसके अतिरिक्त इस रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 28 जून, 2016 को वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की गई जो इस शृंखला का तेरहवां प्रकाशन है।वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, 2016 (Financial Stability Report) के मुख्य अंश निम्न हैं-रिपोर्ट का विषय ‘वित्तीय प्रणाली की आदर्श संरचना-बैंक बनाम बाजार’ है।वैश्विक अनिश्चितता और बदलते भौगोलिक- राजनीति क जोखिम के मध्य भारतीय वित्तीय प्रणाली स्थिर है। यद्यपि बैंकिंग क्षेत्र चुनौतियों का सामना कर रहा है।दृढ़ घरेलू नीतियां (Sound Domestic Policies) और संरचनागत सुधार बृहत् आर्थिक स्थिरता के लिए निरंतर महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं।कमजोर और असमान विकास, विश्व व्यापार में मंदी तथा वित्तीय और पण्य-वस्तु बाजारों में व्याप्त अनिश्चितता के मध्य वैश्विक पुनःप्राप्ति (Global Recovery) की संभावना क्षीण बनी हुई है।इस परिस्थिति में विकास तथा निवेश की दृष्टि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति विशिष्ट है।भारत के वाह्य क्षेत्र के संकेतक तुलनात्मक रूप से मजबूत स्थिति दर्शा रहे हैं। तथापि विगत वर्षों में भारत में तेल आयात में तीव्र वृद्धि से यह आवश्यक हो गया है कि पण्य-वस्तुओं के चक्रीय प्रत्यावर्तन (Commodity Cycle Reversals) के जोखिम हेतु सतर्क रहा जाए।वर्ष 2016-17 में सामान्य मानसून की भविष्यवाणी कृषि क्षेत्र की वृद्धि की ओर संकेत करती है।वर्ष 2015-16 में कॉर्पोरेट क्षेत्र में तनाव में कुछ नरमी के लक्षण दिखाई दिए हैं तथापि कम मांग का जोखिम तथा कमजोर ऋण शोधन क्षमता निरंतर बनी हुई है।वर्ष 2015-16 के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का कारोबार मंद रहा।अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की लाभप्रदता में काफी कमी आई और सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों (पीएसबी) ने वर्ष 2015-16 में हानि दर्ज की।अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (एसयूसीबी) और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की आस्ति गुणवत्ता (Asset Quality) में सुधार हुआ।सामान्य रूप से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कार्य निष्पादन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से अपेक्षाकृत बेहतर रहा। लेख क-योगेंद्र कुमारRelated वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट - सम-सामयिक घटना चक्र प्रकाशन, Sam Samayik Ghatna Chakra