आये पलक पर प्राण कि
बन्दनवार बने तुम ।
उमड़े हो कण्ठ के गान,
गले के हार बने तुम ।
देह की माया की जोत,
जीभ की सीप के मोती,
छन-छन और उदोत,
वसन्त-बहार बने तुम ।
दुपहर की घनी छांह,
धनी इक मेरे बानिक,
हाथ की पकडी बाँह,
सुरों के तार बने तुम ।
भीख के दिन-दूने दान,
कमल जल-कुल की कान के,
मेरे जिये के मान,
हिये के प्यार बने तुम ।