shabd-logo

आये पलक पर प्राण कि

11 अप्रैल 2022

58 बार देखा गया 58

आये पलक पर प्राण कि

बन्दनवार बने तुम ।

उमड़े हो कण्ठ के गान,

गले के हार बने तुम ।

देह की माया की जोत,

जीभ की सीप के मोती,

छन-छन और उदोत,

वसन्त-बहार बने तुम ।

दुपहर की घनी छांह,

धनी इक मेरे बानिक,

हाथ की पकडी बाँह,

सुरों के तार बने तुम ।

भीख के दिन-दूने दान,

कमल जल-कुल की कान के,

मेरे जिये के मान,

हिये के प्यार बने तुम ।

17
रचनाएँ
बेला
0.0
'बेला' की रचनाओं की अभिव्यक्तिगत विशेषता यह है कि वे समस्त पदावातली में नहीं रची गयीं, इसलिए 'ठूँठ' होने से बाख गयी हैं ! इस संग्रह में बराबर-बराबर गीत और गजलें हैं ! दोनों में भरपूर विषय-वैविध्य है, यथा रहस्य, प्रेम, प्रकृति, दार्शनिकता, राष्ट्रीयता आदि !
1

बदलीं जो उनकी आँखें

11 अप्रैल 2022
0
0
0

बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया। गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया। यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर खिलकर सुगन्ध से किसी का दिल बहल गया। ख़ामोश फ़तह पाने को रोका नहीं रुका, मुश्किल मुक

2

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

11 अप्रैल 2022
0
0
0

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा। उन्ही बीजों को नये पर लगे, उन्ही पौधों से नया रस झिरा। उन्ही खेतों पर गये हल चले, उन्ही माथों पर गये बल पड़े, उन्ही पेड़ों पर नये फल फले

3

बातें चलीं सारी रात तुम्हारी

11 अप्रैल 2022
0
0
0

बातें चलीं सारी रात तुम्हारी; आंखें नहीं खुलीं प्रात तुम्हारी । पुरवाई के झोंके लगे हैं, जादू के जीवन में आ जगे हैं, पारस पास कि राग रंगे हैं, कांपी सुकोमल गात तुम्हारी । अनजाने जग को बढ़ने क

4

स्वर के सुमेरु हे झरझरकर

11 अप्रैल 2022
0
0
0

स्वर के सुमेरु हे झरझरकर आये हैं शब्दों के शीकर । कर फैलाए थी डाल-डाल मञ्जरित्त हो गयी लता-माल, वन-जीवन में फैला सुकाल, बढ़ता जाता है तरु-मर्मर । कानो में बतलाई चम्पा, कमलों से खिली हुई पम्प

5

शुभ्र आनन्द आकाश पर छा गया

11 अप्रैल 2022
0
0
0

शुभ्र आनन्द आकाश पर छा गया, रवि गा गया किरणगीत । श्वेत शत दल कमल के अमल खुल गये, विहग-कुल-कंठ उपवीत । चरण की ध्वनि सुनी, सहज शंका गुनी, छिप गये जंतु भयभीत । बालुका की चुनी पुरलुगी सुरधुनी; हो

6

बीन की झंकार कैसी बस गयी मन में हमारे

11 अप्रैल 2022
0
0
0

बीन की झंकार कैसी बस गयी मन में हमारे । धुल गयीं आँखें जगत की, खुल गये रवि-चंद्र-तारे । शरत के पंकज सरोवर के हृदय के भाव जैसे खिल गये हैं पंक से उठकर विमल विश्राव जैसे, गन्धस्वर पीकर दिगन्तों से

7

हँसी के तार के होते हैं ये बहार के दिन

11 अप्रैल 2022
0
0
0

हँसी के तार के होते हैं ये बहार के दिन। हृदय के हार के होते हैं ये बहार के दिन। निगह रुकी कि केशरों की वेशिनी ने कहा, सुगंध-भार के होते हैं ये बहार के दिन। कहीं की बैठी हुई तितली पर जो आँख गई,

8

उठकर छवि मे आता है पल

11 अप्रैल 2022
0
0
0

उठकर छवि मे आता है पल जीवन के उत्पल का उत्कल । वर्षा की छाया की मर्मर, गुंजी गणिका; गणिका; भाव सुघर; आशा की लम्बी पलकों पर पुरवाई के झोंके प्रतिपल । पंकज के ईक्षण शरद हँसी; भू-भाल शालि की ब

9

फूलों के कुल काँटे, दल, बल

11 अप्रैल 2022
0
0
0

फूलों के कुल काँटे, दल, बल । कवलित जीवन की कला अकल । विष, असगुन, चिन्ता और सोच, उकसाये , खाये बुरे लोच, कर गये पोच से और पोच; मुरझे तरु-जीवन के सम्बल । नीरस फल, मुरझाई डाली, जलहीन, सजल लोचन

10

साथ न होना

11 अप्रैल 2022
0
0
0

साथ न होना । गाँठ खुलेगी, छूटेगा उर का सोना । आँख पर चढ़े, कि लड़े, फिर लड़े; जीवन के हुए और कोस कड़े; प्राणों से हुआ हाथ धोना । साथ न होना है । गाँठ पड़ेगी, बरछी की तरह गड़ेगी; मुरझाकर कली झड़े

11

कुन्द-हास में अमन्द

11 अप्रैल 2022
0
0
0

कुन्द-हास में अमन्द श्वेत गन्ध छाई । तान-तरल तारक-तनु की अति सुघराई । तिमिर गहे हुए छोर खिंची हुई तुहिन-कोर, बन्दी है भानु भोर, किरण मुरुकराई । पथिक की थकी चितवन थिर होती है कुछ छन, चलता

12

आये पलक पर प्राण कि

11 अप्रैल 2022
0
0
0

आये पलक पर प्राण कि बन्दनवार बने तुम । उमड़े हो कण्ठ के गान, गले के हार बने तुम । देह की माया की जोत, जीभ की सीप के मोती, छन-छन और उदोत, वसन्त-बहार बने तुम । दुपहर की घनी छांह, धनी इक मेर

13

खिला कमल, किरण पड़ी

11 अप्रैल 2022
0
0
0

खिला कमल, किरण पड़ी, निखर-निखर गयी घड़ी । चुने डली में सुथरे बडे-बड़े भरे-भरे, गन्ध के गले संवरे; जादू की आँख लड़ी । तारों में जीवन के हार सुघर उपवन के, फूल रश्मि के तन के, यौवन की अमर कड़ी ।

14

नाथ, तुमने गहा हाथ, वीणा बजी

11 अप्रैल 2022
0
0
0

नाथ, तुमने गहा हाथ, वीणा बजी; विश्व यह हो गया साथ, द्विविधा लजी । खुल गये डाल के फूल, रंग गये मुख विहग के, धूल मग की हुई विमल सुख; शरण में मरण का मिट गया महादुख; मिला आनन्द पथ पाथ; ससृति सजी ।

15

कैसे गाते हो ? मेरे प्राणों में

11 अप्रैल 2022
0
0
0

कैसे गाते हो ? मेरे प्राणों में आते हो, जाते हो । स्वर के छा जाते हैं बादल, गरज-गरज उठते हैं प्रतिपल; तानों की बिजली के मण्डल जगती तल को दिखलाते हो । ढह जाते हें शिखर, शिखरतल; बह जाते हें त

16

आँखे वे देखी हैं जब से

11 अप्रैल 2022
0
0
0

आँखे वे देखी हैं जब से, और नहीं देखा कुछ तब से । देखे हैं कितने तारादल सलिल-पलक के चञ्चल-चञ्चल, निविड़ निशा में वन-कुन्तल-तल फूलों की गन्ध से बसे । उषाकाल सागर के कूल से उगता रवि देखा है भू

17

रूप की धारा के उस पार

11 अप्रैल 2022
0
0
0

रूप की धारा के उस पार कभी धंसने भी दोगे मुझे ? विश्व की शयामल स्नेहसंवार हंसी हंसने भी दोगे मुझे ? निखिल के कान बसे जो गान टूटते हैं जिस ध्वनि से ध्यान, देह की वीणा का वह मान कभी कसने भी दोगे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए