कुन्द-हास में अमन्द
श्वेत गन्ध छाई ।
तान-तरल तारक-तनु
की अति सुघराई ।
तिमिर गहे हुए छोर
खिंची हुई तुहिन-कोर,
बन्दी है भानु भोर,
किरण मुरुकराई ।
पथिक की थकी चितवन
थिर होती है कुछ छन,
चलता है गहे गहन
पथ फिर दुखदायी ।
आते है पूजक-दल,
चुनते हैं फूल सजल,
भरती है ध्वनि से
कल बीथी, अमराई ।