शुभ्र आनन्द आकाश पर छा गया,
रवि गा गया किरणगीत ।
श्वेत शत दल कमल के अमल खुल गये,
विहग-कुल-कंठ उपवीत ।
चरण की ध्वनि सुनी, सहज शंका गुनी,
छिप गये जंतु भयभीत ।
बालुका की चुनी पुरलुगी सुरधुनी;
हो गये नहाकर प्रीत ।
किरण की मालिका पड़ी तनुपालिका,
समीरण बहा समधीत ।
कंठ रत पाठ में, हाट में, बाट में;
खुल गया ग्रीष्म या शीत ।