कैसे गाते हो ? मेरे प्राणों में
आते हो, जाते हो ।
स्वर के छा जाते हैं बादल,
गरज-गरज उठते हैं प्रतिपल;
तानों की बिजली के मण्डल
जगती तल को दिखलाते हो ।
ढह जाते हें शिखर, शिखरतल;
बह जाते हें तरु, तृण, वल्कल;
भर जाते हैं जल के कलकल;
ऐसे भी तुम बल खाते हो ।
लोग-बाग बैठे ही रह गये,
अपने में अपना सब कह गये,
सही छोर उनके जो गह गये, बार बार उन्हें गहाते हो ।