मानसून की उमस को याद करते हुए, श्रधेय श्रीमती सुमित्रा देवी बताती हैं कि सावन की दूसरी सोमवारी का उमस भरा दिन था, रात में भी बहुत गर्मी थी न हवा चल रही थी न बारिश ही हो रही थी। रात में खाना खाने के बाद लोग चांदनी रोशनी में छत पर और गली में टहल रहे थे। घर की बेटियां और बहुएँ “चौहट” गाने की योजना बना ली। फिर क्या था सर्वश्रीमती सुमित्रा देवी, प्रभावती, ज्योति, कलावती, कलापति, सुनीता इत्यादि अनेक हमजोली दो ग्रुप में बंट गयी और चौहट शुरू हो गया -
कहवां में गरजल भयगर हथिया, कहवां में बरिसे इन्दर देवा।
पटना में गरजल भयगर हथिया
अमरपुरा में बरिसे इन्दर देवा ।।
सांप-सांप केचुल गंगा मईआ, घोटलन आसर वेष तोरा ।
छातियो ना फाटे बरसई मुसरा के घाट ।।
और बच्चों का क्या ? बच्चे राजा रानी चोर सिपाही खेलते थे
अथवा ओका बोका खेलते थे, और एक गीत भी गाते थे-
ओका बोका तीन तड़ोका, लउआ लाठी चन्दन काठी।
बाग़ में बगडोला डोले, सावन कौला, इजई बिजई पुरिया पचक।।
बच्चे एक और खेल खेलते थे जिसमें गीत गाते थे -
आन्ही - बूनी आवेले चिरैया ढोल बजावेले।
बूढी मईया हाली हाली गोइठा उठावेले।।
एक मुट्ठी लाई, दामाद फुसलाई।
बूनी ओन्ही बिलाई, बूनी ओन्ही बिलाई।।
आन्ही आईल बूनी आईल, फूट गईल लबनिया।
तड़वा धर के रोवे ले पसीनिया।।
इसी तरह तीन चार साल के बच्चे को खाना खिलाते समय मांएं
गाती थी-
आरे आवा बारे आवा नदिया किनारे आव |
सोने के कटोरिया में दूध भात लेले आव ||