1983-84 आते-आते आपके पिताजी श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह काफ़ी थक चुके थे. इसी बीच घर में बंटवारा उन्हें और बुड्ढा बना दिया था. और इसी बीच आपकी छोटी चाची श्रद्धेया श्रीमती महेश्वरी देवी की अचानक मृत्यु हो गयी. आपको जब भी अपने स्कूल से छुट्टी मिलती आप अमरपुरा आ जाते और अपने पिता की सेवा करते थे. हालाँकि आपके अनुपस्थिति में आपकी माता श्रद्धेया श्रीमती मुन्गेश्वरी देवी एवं आपकी पत्नी श्रधेय श्रीमती सुमित्रा देवी आपके पिताजी की सेवा करने में लगी रहती थी. अंतिम कुछ वर्षों में आपके पिताजी की यादास्त कमजोर हो गई थी. जब वे सुबह-सुबह नहर पर शौच के लिए जाते तो अनेक बार वे डंडा भूल आते थे. कभी-कभी वे अपना घर भी भूल जाते थे. उनके गर्दन में दर्द भी रहा करता था. आपके घर के बंटवारे के बीच आपके बड़े चाचा श्रधेय श्री भीखम महतो और बड़ी चाची को भी लील गया था. उस पीढ़ी में छोटी चाची को छोड़कर आपके परिवार के सभी लोग करीब 90-95 साल तक जीवित रहे. जब कभी आपके पिताजी को अचानक
तेज हिचकी आने लगती थी. रात में ऊँ-ऊँ की आवाज निकालते रहते थे जैसे ओम का उच्चारण कर रहे हों. हिचकी आने पर उन्हें काली-मिर्च का धूआं सुंघाया जाता था. फिर कुछ देर में वे ठीक हो जाते थे. आपके पिताजी की यादास्त में कमजोरी एवं उस समय पेशाब पर पूरी तरह नियंत्रण न रहने के कारण कभी-कभी वे धोती में ही पेशाब कर देते थे. फिर आप या आपकी माताजी उन्हें धोती पहनाते थे इस बीच वे थोड़े चिड़ते और गुस्सा भी होते रहते थे.
1989 के दशहरे की छुट्टी में आप अमरपुरा आये हुए थे. दुर्गा अष्टमी के दिन आपके बाबूजी को तेज हिचकी आने लगी. शाम होते-होते उन्हें लख पर डॉक्टर के पास लाना पड़ा. वहाँ क्लिनिक में भर्ती कर दिया गया. रात भर इलाज चलता रहा पर उनकी तबियत में सुधार नहीं हुआ. पेट भी फूलता जा रहा था. सुबह होते ही डॉक्टर ने उन्हें पटना बड़े अस्पताल में ले जाने के लिए बोल दिया. उनकी हालत बिगड़ते जा रही थी पटना हॉस्पिटल से वापस लौटने की उम्मीद कम थी. अतएव अपने अपनी माँ, मंझला लड़का श्री प्रमोद, भतीजे श्री अरविन्द कुमार एवं श्री कृष्णा कुमार को साथ लेकर जीप रिजर्व कर पटना चले गए. उन्हें कुर्जी हॉस्पिटल पटना में भर्ती किया गया. लेकिन जल्द ही आपके बाबूजी ने दम तोड़ दिया. फिर आपने उनकी मृत शरीर को वापस अमरपुरा लाना उचित न समझा. वहीँ बांस घाट, पटना में गंगा नदी के किनारे उनका दाह-संस्कार कर दिया गया. दाह-संस्कार होते-होते गांव के कई लोग तथा बेला से आपके चचेरे भाई श्रधेय श्री राम प्रसाद, श्री चन्द्रमोहन और अनेक लोग भी पहुँच गए थे. फिर 1995 में आपके छोटे चाचा श्रधेय श्री महेश महतो की भी मृत्यु हो गई. इस तरह से बीसवीं सदी के अंत तक आपकी माँ को छोड़कर उस पीढ़ी के सभी लोग स्वर्ग सिधार गए थे .