हाँ ! घर-वापसी ही , क्योंकि श्रद्धेय नरेश बाबू जब से सोहैपुर , गया के लीला महतो स्मारक उच्च विद्यालय में ज्वाइन किया था , स्कूल के आस-पास अपने सहशिक्षकों के साथ रहते थे , खुद खाना बनाना और खुद ही अपने सारे काम करना, गया से वापस आप सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद अपने गाँव वापस आ गए | वैसे तो ज्यादातर लोग जहां नौकरी करते हैं वहीं वस जाते हैं | किन्तु आपने गया में जमीनखरीदी, घर भी बनाया किन्तु वहाँ वसना उचित नहीं समझा | आप रिटायरमेंट के बाद अपने गाँव अमरपुरा वापस आ गए | आप अपने कर्मस्थली ‘गया’ से जुड़े रहने के लिए अपना पेंशन बैंक अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, गया में ही रखा । शिक्षक कोलनी, मानपुर, गया के घर को अपने प्रिय शिष्य श्री सुरेश प्रसाद को रहने के लिए दे दिया | आपको अपने बच्चों पर पूरा विश्वास था कि इस निर्णय का कोई विरोध नही करेगा | 1985 में बटवारे में मिले अधूरे घर को रिटायरमेंट होने से पहले आपने निर्माण कार्य पूरा करवा लिया था | 2002 में अमरपुरा वापस आप अपने
रिश्ते में पोता श्री भाणू प्रसाद, जो हाल ही में पटना सचिवालय से रिटायर हुए हैं, के स्कूल ‘विद्या भारती पब्लिक स्कूल’ में संस्कृत और गणित शिक्षक के रूप में योगदान दिया । 2002 में ही आप अपने बड़े बेटे की शादी मछुआ टोली, दानापुर के श्रधेय श्री धीरेन्द्र प्रसाद के छोटी बेटी सुश्री शिवांगी कनक के साथ किया | शादी पारंपरिक रीति रिवाज से सम्पन्न हुई ।
आप रिटायरमेंट के बाद भी अपने को रिटायर नहीं मानते, भले ही आपको सरकार ने रिटायर कर दिया था, आपने अगुअई/बरतुहारी का काम शुरू कर दिया । जब कोई अपनी लड़की अथवा लड़के की शादी का प्रस्ताव आपके पास आता, आप बायोडाटा लेकर उपयुक्त जोड़े के खोज में लग जाते । आप लोगों को आपस में जुडने के लिए भी प्रेरित करते रहे । 2004 में आप अपने मँझले लड़के की शादी छतुई, कुर्था , जहानाबाद के श्रधेय श्री रामानन्द सिंह के छोटी बेटी सुश्री सुषमा कुमारी से किया । श्रधेय श्री रामानन्द सिंह पौराणिक परम्पराओं को मानते थे, आप जब भी छतुई गए, आपका स्वागत समधी के तौर पर पारंपरिक ढंग से लोटे में पानी, रुमाल और कुछ रूपए से हुआ | और आप भी श्रधेय श्री रामानन्द बाबू का अमरपुरा आगमन पर भरपूर स्वागत करते थे | 2008 में श्रधेय श्री रामानन्द बाबू के अकस्मात निधन से आप बहुत दुखी हुए थे | आप दोनों एकदूसरे को बहुत आदर करते थे |
रिटायरमेंट के बाद वापस अमरपुरा आने के बाद आपके पुराने दोस्त श्रधेय श्री मंगल सिंह, श्रधेय डा॰ सुदर्शन प्रसाद, श्री शिव शमन तिवारी, श्री मदन तिवारी, श्री प्रेमचंद, श्री गजाधर सिंह, डा. कृष्णा प्रसाद इत्यादि अनेक लोग आपके फिर से दोस्त बन गए । सुबह पाँच बजे जागकर अमरपुरा नहर पर दूर तक टहलना आपके दिनचर्या में सूमार हो गया था । आपसे कम उम्र के लोग जैसे श्री रमेश ठाकुर, श्री प्रमेन्द्र दयाल, श्री संजय कुमार बौद्ध, छोटी टंगरैला, श्री कवीश सिंह, लखपर, श्री सूरज कुमार, करंजा आपके प्रतिदिन मार्केट के दोस्त थे, इसी प्रकार श्री उमेश सिंह, श्री मिथिलेश सिंह के साथ प्रतिदिन घर पर उठना बैठना रहा है । आप श्री उमेश सिंह से सामाजिक परिवेश और धार्मिक कर्मकांडों पर घंटों बातें करते थे और आपकी धर्मपत्नी सभी आगंतुकों के लिए चाय पानी की व्यवस्था में लगी रहतीं थीं । श्री मिथिलेश सिंह अपनी सभी समस्याओं का निवारण चाहे वह सामाजिक हो या पारिवारिक आपसे पाने की कोशिश करते थे । अनेक बार आप अपने दोस्तों को आर्थिक मदद भी करते थे । रिटायरमेंट के बाद भी आपको लोगों की सहायता करने की अच्छी लत छूटी नहीं थी । हालही में आपने स्वर्गीय सच्चिदानंद सिन्हा, जिनकी मृत्यु अल्प आयु में करीब दो साल पहले हो गयी है, की लड़की की पढ़ाई के लिए लोगों से चंदा मांग कर धन इकठ्ठा किया और सहायता प्रदान किया था । इसीतरह कोइरिवारी, गया में होमिओपैथिक मेडिकल कैंप
की शुरुआत आपके पैसे से हुई, जो आज भी जारी है ।
आपका श्री नितीश कुमार, मुख्य मंत्री, बिहार के पार्टी के प्रति झुकाव पहले से ही था। वापस अमरपुरा आने के बाद आपने जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी ज्वाइन कर लिया । आप पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गए । आपने अपने माध्यम से अनेक लोगों को पार्टी का सदस्य बनाया । आप अपने शिष्य श्री सुरेश प्रसाद के साथ अनेक बार मुख्यमंत्री आवास जाकर विभिन्न अवसर पर श्री नितीश कुमार को बधाई भी दिये थे । आप अनेक बार पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन, कृष्ण मेमोरियल हौल में भाग लिये थे । जब नितीश सरकार ने शराब बंदी की तो आप बहुत खुश हुए थे, क्योंकि कुछ महीने पहले अमरपुरा के ही एक युवक श्री बनारषी कुमार की मौत अधिक शराब पीने से हो गयी थी । हालही में जब नितीश सरकार ने दहेज विरोधी मानव शृंखला बनवाया, तो आपने भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था । इसप्रकार आप हमेशा ही सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते रहे ।
अपनी राजनीतिक रुझान को व्यक्त करते हुए अपनी लोकप्रियता को परखने के लिए आपने 2007 के पंचायती चुनाव में निसरपुरा पंचायत के सरपंच के लिए पर्चा भी भरा था, आपको ‘जीप’ चुनाव चिन्ह मिला था, आपके प्रतिद्वंदीयों में श्री
गोरख प्रसाद, श्री अभिनेश कुमार सिन्हा प्रमुख उम्मीदवार थे । हालांकि आप इस चुनाव में मतदाताओं के पहली पसंद नहीं बने और चुनाव हार गए ।
खुद बूढ़े हो चले थे किन्तु कभी भी आपने अपने को बूढ़ा नहीं माना । अब भी आपके बृद्धों को सेवा करने की ललक
विद्यमान थी । इसका प्रमाण यही है कि जब भी आपकी चचेरी मौसी श्रद्धेय श्रीमति सहती देवी और मौसा श्रद्धेय श्री रामाश्रय महतो, वरुणा, आपके घर के पास गली से गुजरते, आप उन्हें बिना खाना खिलाये वापस नहीं जाने देते । बहुत बार वे लोग आप से स्वागत से अभिभूत होकर रात में रुक भी जाते थे । इसीतरह आप अपने ममेरी बहन श्रद्धेया श्रीमति चमेला देवी और बहनोई श्रद्धेय श्री जगदीश प्रसाद, अमरपुरा का बहुत इज्जत करते थे और ख्याल रखते थे । आप उनकी हाल चाल जानने के लिए अकसर एक-दो दिनों में उनके घर अवश्य जाते थे । आप अन्य के बच्चों के पढ़ाई से कितने खुश होते थे, यह इसी घटना से पता चलता है जब श्री अखिलेश्वर प्रसाद की पुत्री सुश्री पम्मी कुमारी का नर्सिंग के लिए सेलेक्सन हुआ, तो आप बहुत खुश हुए थे, आप उनके घर जाकर उन्हें बधाई भी दिये थे । उस समय जो भी मिलता उससे उसकी सफलता का जिक्र अवश्य करते थे । इसी प्रकार जब श्री सुरेश प्रसाद, गया की पुत्री सुश्री सुरभि कुमारी का होम्योपैथिक कौलेज, गया में नामांकन मिला तब भी आप बहुत खुश हुए थे ।
2000 तक आपके दोनों बड़े लड़के पढ़-लिख गए थे, नौकरी भी करने लगे थे । 2010 तक छोटा लड़का श्री अमरेश चंद्र
उर्फ आमोद कुमार बी.टेक कर लिया था, बेटी सुश्री चंद्रमाला शौर्य भी स्पीच थरेपी एंड हियरिंग में कोलकाता से बैचलर डिग्री कर रही थी। 2014 तक आपके चारों बच्चे नौकरी करने लगे थे, आप अपने चारों बच्चों के प्रदर्शन से संतुष्ट थे ।