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श्रधेय श्री नरेश बाबू के शोकसभा (25.10.18) में आए कुछ आगंतुकों के आपके प्रति उद्गार

26 फरवरी 2022

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 1. आँखों में अश्क लिये ; इधर-उधर ढूंढता हूँ | जब नहीं
पाता हूँ ; तो खुद को समझाता हूँ || तेरी यांदों को हृदय में संजोय ; अश्क को घूंट
–घूंट पीता हूँ ||” 

-अजित कुमार सिन्हा, अमरपुरा  

2. “सन 1956 का वर्ष थे जब मैं हाईस्कूल स्कूल, अमरपुरा
में अपना नाम आठवीं कक्षा में लिखवाया था तभी मेरी मुलाकात सर्वप्रथम उनसे (नरेश
बाबू से) हुई थी,....मेरे मित्र एक अच्छे नेक इन्सान थे. जरुरतमंदों की सहायता
करना उनके स्वभाव का एक हिस्सा था ....जबतक मैं इस धरती पर रहूँगा तबतक उनकी
अनुपस्थिति मुझे खलती रहेगी ..” 

- प्रेमचंद, अमरपुरा/धनबाद  

3. जब मैं यहाँ रहता था, 1970-72 की बात कर रहा हूँ,
हमलोग प्रतिदिन लख पर मिला करते थे और अनेक विषयों पर बातें होती थी, वे गहरी
आध्यात्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे | 

- प्रेम कुमार मणि, एम एल सी, अनंतपुर/पटना  

  

4. राम नरेश बाबू से मेरी पहली मुलाकात करीब तीस साल
पहले सोहैपुर, गया में हुई थी, वे हमेशा चाहते थे कि हमारा समाज आगे बढ़े | हमेशा
उन्होंने शैक्षिक उत्थान के लिए अग्रसर रहे | 

-राम कविश सिंह, लखपर/मुंगिला

 

5. हमलोग डेली
सुबह-सुबह दो घंटा टहलते समय साथ-साथ रहते थे, वे सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों को
हमेशा ही विरोध करते थे \ सबके साथ इनका सम्बन्ध अच्छा था, वे सभी के प्रति दयालु
भाव रखते थे. 

-डा. कृष्णा प्रसाद, अमरपुरा 

6. उनके
बारे में जो कुछ भी कहा जाय, खासकर सामाजिक और वैचारिक क्षेत्र में वह कम है | जब
से वे सर्विस में थे, तभी से ही हमारा उनका नाता था | इधर वे बुद्ध के विचारों के
नजदीक थे | वे पिंडदान, कर्मकांड का विरोध करते थे | 

- कृपा नारायण सिंह, अमरपुरा 

7. मेरा नरेश बाबू से पिछले बारह
वर्षों से गहरा लगाव हो गया था, हमलोग करीब-करीब प्रतिदिन लखपर बाजार में मिलते
थे, जब भी मैं उन्हें नहीं मिलता, वे दूसरों से मेरे बारे में पूछते थे | उनके
जाने से मुझे बहुत दुःख हुआ |  

-आचार्य मुन्ना,
अनंतपुर  

8. नरेश
बाबू मेरे आत्मिक मित्र थे, हम प्रत्येक माह अवधेश गौतम, लखपर के यहाँ बैठक करते
थे | उसमें नरेश बाबू अवश्य ही शामिल होते थे | बौद्ध धर्म के अलावा अन्य धर्मो पर भी उनसे विचार-विमर्श होता था | 

-आचार्य सत्येन्द्र
बौद्ध, मसौढ़ी 

9. नरेश
चाचा की शिक्षा ने ही मुझे आगे बढ़ाया है, मैं आज जो भी हूँ  नरेश बाबू के कारण ही हूँ . मेरे पिताजी ने नरेश
बाबू से मुझे पढ़ाने के लिए अनुरोध किये थे, और फिर वे मुझे मैट्रिक तक शिक्षा
प्रदान करते रहे | वे जब भी किसी से बात करते थे, उसे शिक्षित होने के लिए अवश्य
कहते थे. इन्होने जितना भी धन कमाया उसका कुछ हिस्सा सामाजिक कार्यों के लिए दान
अवश्य करते थे. हमलोग जब भी चंदा के लिए आते थे, खाली हाथ नहीं लौटते थे.  

-भूपेंद्र सिंह,
अमरपुरा  

10.  हमारे
बाबा (नरेश बाबू) मेरे प्रेरणा थे . वे मुझे हमेशा ही सामाजिक कार्यों में भाग
लेने के लिए प्रेरित करते रहे हैं, बाबा ने नौबतपुर में शिक्षा में बढ़ोतरी के लिए
बहुत कुछ किया . वे हमेशा ही आगे बढ़कर कुरीतियों से लड़ा | 

-कुमार नरेंद्र
किशोर, छोटी टंगरैला 

11. बहुत
दुःख हो रहा है कि आज जिन्हें मैं मौसा गुरूजी कहा करता था, उनके शोक सभा में
उपस्थित हूँ. वे हमेशा ही मेरे प्रेरणा श्रोत रहे. इन्हीं की प्रेरणा से मैं अपने
बच्चों को पढ़ाया और उन्हें उच्च अधिकारी बनाया |  

- रामानंद सिंह,
मनेर  

12. वे मध्यम
प्रकार के नौकरी करते थे . फिर भी शिक्षा के महत्व को समझते हुए, उन्होंने जो भी
कमाया, अपने बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किये | बहुत से लोग हैं जो उनसे मदद और शिक्षा
लेकर विभिन्न पदों को सुशोभित कर रहे हैं | वे दिखा दिए कि सिर्फ अपने लिए न जिओ,
समाज के लिए भी जिओ | हमारा बेटा जो आज इंजीनियर है, उसके लिए भी किताब खरीदने के
लिए उन्होंने तत्काल दो हजार रुपये की मदद किये थे |  

-रमेश ठाकुर,
अमरपुरा 

13. वे हमारे
समाज के बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, वे हमें यही कहते थे कि बच्चों को अच्छी
शिक्षा दें | वे हमारे गार्जियन के रूप में हमेशा हमें निर्देश देते थे | 

-विभा देवी,
अमरपुरा/बेला  

14. बनारसी
बाबू, पटना के मार्फ़त मुझे नरेश बाबू से संपर्क हुआ था | उस समय से मुझे लगता था
कि ये मेरे अभिभावक के रूप में थे | वे अकसर कहते थे कि अपने बच्चों के अलावा समाज
के अन्य बच्चों के लिए भी शिक्षा की व्यवस्था करना चाहिए | वे मृत नहीं हुए हैं,
वे सदा के लिए अमर हो गए हैं , उनके द्वारा दिया गया ज्ञान सदा ही अमर रहेगा |  

-प्रो. अमलेश कुमार,
वरुणा  

15. नरेश
बाबू के जाने से हम तो अकेले हो गए, उन्हीं के साथ तो बैठते –उठते थे. उसदिन शाम
में ही मिले थे और रात में ही चले गए . विश्वास नहीं हो रहा | 

- मदन तिवारी ,
अमरपुरा 

16. नरेश
मामू हमारे मामू थे, हमदोनों का ननिहाल एक ही घर में सरबदीपुर गाँव में था | नरेश
मामू से मेरा बहुत लगाव था, नाता के नाते और व्यक्तिगत रूप से भी | वे हमारे घर का
भी गार्जियन थे | उनके जाने से मेरी बहुत भयानक क्षति हुई है | 

- चंद्रशेखर,
अमरपुरा/रांची   

17. नरेश
बाबू हमेशा सिखाते थे कि बड़ों का आदर करें | उनकी मौत से मैं बहुत मार्मिक हूँ | 

- कृष्ण कुमार, अनंतपुर
 

18. जब अचानक
मुझे बाबूजी की मृत्यु की सूचना मिली, तो मुझे बहुत दुख हुआ | बाबूजी हमें हमेशा
फोन करते रहते थे और मेरा हाल – चाल लेते रहते थे | बात करने के क्रम में वे मुझे
‘शिक्षक’ पद की मर्यादा और महत्व के बारे में बताते थे | आज आगंतुकों के भाषणों से
लगता है कि मैं उनके बारे में बहुत ही कम जानता था | 

- कमलेश कुमार संतोष
, दानापुर 

19. रोज
सबेरे तो भेंट होय्वे कर हल नरेस चाचा से , रोज इहें आके रूम में पेपर पढ़ हली | अब
उ रूम में जाए में बरा अजीब लगीत हे | ई हमरा लागी देवता हलन | उनका जाये से बरा
अफ़सोस हे | ए चाचा हमारा सबपर कईलअ बड़ा
उपकार , तू व्यवहारिक शिक्षा देके करलअ बहुत उपकार | 

-उमेश सिंह, अमरपुरा 

20. वे ऐसे
शख्सियत थे, जिनके बारे में मैं क्या कहूँ , इनकी कमी हमेशा पुरे गाँव को खलेगी |
मेरे पिताजी (श्रधेद्य श्री मंगल सिंह) की
मृत्यु के बाद नरेश भैया मेरे अच्छे दोस्त बन गए थे | 13 अक्टूबर को शाम में मेरी
उनसे मुलाकात हुई थी . मैं उन्हें रामायण गाने के लिए बोला था, तो वे मेरे दालान
में रामायण गाने आने के लिए वादा किये थे | बात करने के क्रम में वे ओमप्रकाश जी
के निधन पर शोक व्यक्त कर रहे थे और बोले थे कि मैं भी दो वर्ष से जयादा नहीं
बचूँगा ; किन्तु वे दो घंटे से ज्यादा नहीं जीवित रह पाए, वे ओमप्रकाश जी के निधन
के शोक के कारण चले गए | 

-प्रमेन्द्र दयाल,
अमरपुरा 

21.  हम बहुत
नजदीक रहे हैं नरेश बाबू के | व्यक्तिगत रूप से मेरा नरेश बाबू से सम्बन्ध सन
70-75 से रहा | जगदेव बाबू के सहादत के बाद हमलोग शोषित समाज दल से जुड़े रहे |
अन्य बातों के अलावा एक बात और मैंने उनमें देखा- उनकी नम्रता | वे हमेशा
ब्राहमणवाद का विरोध करते रहे और उसका अपने उपर व्यवहार किया | मुझे उनसे अनेक बार
डा. आंबेडकर, पेरियार, बुद्ध के बारे में बातें होती थी | 

- नन्द कुमार नंदा,
पूर्व विधायक, नरही 

22. बाबूजी
हमलोगों को हमेशा अपने बेटा के समान मानते थे और हमेशा अच्छी सलाह देते थे | 

- आभा सिंह, अमरपुरा
 

23. लोग कहते हैं कि नरेश बाबू का स्वर्गवास हो गया
है किन्तु मैं नहीं मानता हूँ कि उनका स्वर्गवास हुआ है , क्योंकि वे बुद्धि के
विचार से चलते थे और उनका विचार हम सबों में है | नरेश बाबू जिंदगीभर अंधविश्वास
का विरोध करते रहे | 

- अवधेश कुमार उर्फ़
मिश्राजी, लखपर 

24. सबसे
पहले मेरी मुलाकात नरेश बाबू से 1986 के लोकसभा चुनाव के समय किसी और के लिए वोट
मांगने के दौरान हुई थी. उसके बाद से उनके व्यवहार और शालीनता के कारण हमारी इनके
प्रति और इनका हमारे प्रति अगाध श्रद्धा हो गया | इसी बीच मेरे भाई समान मनीष जी
की किस शादी इसी घर में हो गयी . जिससे मित्रता में प्रगाढ़ता और बढ़ गयी | जब समाज
में आपस में कुछ मनमुटाव बढ़ा , तब भी नरेश बाबू समाज को एक सूत्र में बांधने की
कोशिश करते रहे | 

- राम जनम शर्मा,
पूर्व विधायक (बिक्रम), अभरंचक 

25. नरेश
बाबू के साथ हम करीब बीस वर्ष सोहैपुर हाई स्कूल में रहे, ये हमसे बहुत सीनियर थे
. ये काफी हेल्पफुल थे. हमारे शिक्षक समाज को इनके जाने से जो क्षति हुई है, वह
भूलाया नहीं जा सकता | वे समाज के लिए और गरीब बच्चों के लिए जो करके गए हैं,
स्मरणीय रहेगा | आज उनके शोक सभा में हम क्या कहें, नरेश बाबू नहीं हैं, लेकिन
उनका कद आँखों के सामने आपलोगों के उपस्थिति से झलक रहा है | सच्चाई, कर्मठता,
दुसरे की मदद करना उनके विशेष गुण थे | 

-बृजमोहन प्रसाद,
गया 

26.  नरेश
बाबू जिस दिन गए, उस दिन मैं पटना में ही था, किन्तु मैं उनसे नहीं मिल पाया | मैं
जब आठवीं क्लास में पढ़ता था तो वे ग्यारहवीं क्लास में थे. इसके बावजूद हमारे बीच
काफी नजदीकी थी. गया में आने के बाद हमारे बीच और नजदीकी बढ़ गयी थी | 

-प्रो. सच्चीदानंद
सिन्हा, (गया), छोटी टंगरैला  

27.  नरेश
बाबू बहुत साधारण और सादगी से रहा करते थे, सभी से मिलना- जुलना इनकी आदत रही है.
हमारे प्रति उनका हमेशा शुभ विचार रहता था | 

- विजय कुमार,
शिक्षक कॉलनी, मानपुर, गया  

 28. संक्षेप में मैं इतना ही व्यक्त कर सकता हूँ कि नरेश बाबू का नाम राम नरेश
शायद इनके माता-पिताजी ने बहुत सोच समझकर रखा था | मैं इनके नाम को सार्थक पाया |
ये अपने नाम के अनुरूप पुरुषोत्तम श्री राम के गुणों को अपनाया | हे अद्भुत् राम
नरेश जी महिमा कही न जाय, यहाँ आपके दिल
दिमाग के खूबी कौन बताये | 

- रामजी प्रसाद,
खान्जहाँपुर, गया  

29. हम
उपस्थित हुए हैं पुण्यात्मा के श्रद्धांजलि में | उनकी माँ मेरी माँ की मौसी थीं.
इसप्रकार हम-दोनों के बीच मामू भगिना का रिश्ता था | सबसे बड़ी बात है कि वे सारे
लोगों से मिलते हुए और खुश करते हुए, इस धरती से विदा हुए | 

- बिमलेश कुमार भूषण,
नसोपुर  

30. पूज्य
पिताजी के चरणों में पुष्प अर्पण करते हुए मैं इस समय कुछ भी कहने में असमर्थ पा
रहा हूँ | एक बार किसी दुसरे गुरूजी ने इनसे पूछा था कि आप इसी को इतना महत्व
क्यों देते हैं , तो पिताजी ने जवाब दिया था कि वक्त आने पर पता चल जायेगा | इसी
से पता चलता है कि हम इनके कितने अजीज थे | पिताजी के प्रेरणा से ही मैं अपने
कॉलेज के किसी भी गरीब विद्यार्थी को सहायता करने के तैयार रहता हूँ | चिकित्सा के
क्षेत्र में, पिताजी ने रामसेवक बाबू और अन्य के सहयोग से कोइरिवारी, गया में
चिकित्सा शिविर की शुरुआत किये थे, जो अभी भी चल रहा है | उनके जाने से मेरा बगीचा
ही उजड़ गया | 

-सुरेश प्रसाद,
मनियारा, राजगीर 

31. हमारे
बीच अब नरेश बाबू नहीं रहे, मैं उनके साथ करीब पचास साल जीवन बिताया | उनकी जैसी
सख्शियत, दयालुता और नम्रता जैसे गुण वाले व्यक्ति मुझे आस-पास के गावों में नहीं
मिलता है | एक साधारण व्यक्ति होते हुए असाधारण बातें बोल देना नरेश बाबू की खूबी
थी | 

-सर्वानन्द सिंह (मलिक
जी) , कोपा 

32.  मेरे लिए
ये बहुत दुखद घटना है. हमलोगों को इसका हमेशा मलाल रहेगा कि हमलोग समय पर पिताजी
का मेडिकल चेक अप नहीं करा पाया | यदि पिताजी का मेडिकल चेक अप हो जाता तो
कम-से-कम दस-बारह साल हमारे बीच अवश्य रहते | मुझे लगता है कि माँ जी के बाद इधर
पांच सालों में मैं सबसे ज्यादा समय पिताजी के साथ बिताया हूँ | उनके साथ मेरी
राजनीति और सामाजिक समस्याओं पर पुरजोर बहस होती थी, लेकिन हमारे बीच सम्बन्ध में
कभी कोई तनाव नहीं आया | वे प्रकृति की पूजा करते थे, वे प्रतिदिन स्नान करने के
बाद भगवान सूर्य को अर्ध्य अवश्य देते थे |हमारे पुरे परिवार को उनके जाने का बहुत
दुःख है | चिट्ठी न कोई सन्देश , न जाने वो कौन सा देश, जहाँ तुम चले गए | 

-मनीष कुमार,
नारायणपुर 

33. नरेश
बाबू जिन्हें हम चाचा कहते थे, मेरे अभिभावक जैसे थे | मैं पिछले अठारह वर्षों से
लखपर रह रहा हूँ, जब कभी मैं यहाँ आता मुझे खाने के लिए अवश्य दबाव डालते थे | वे
हमारे पास अनेक लोगों को लाते थे और मेरा परिचय कराते थे | मैं आज अपना अभिभावक खो
दिया हूँ | आज समाज में जो भी विभेद है, उससे वे काफी दुखी रहते थे, और आपसी मतभेद
मिटाने का प्रयास करते रहते थे | जाने..चले जाते है कहाँ , दुनिया से जाने वाले... 

- सूरज कुमार,
(लखपर), करंजा  

  

  

 उपरोक्त
लोगों के अलावा भी अनेक लोग यहाँ अपना विचार रखे थे, जो स्पष्टता के अभाव में तथा नरेश
बाबू से सम्बंधित नहीं रहने के कारण नहीं रहने के कारण, यहाँ नहीं दिया गया है |  

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रचनाएँ
कर्मयोगी नरेश बाबू
5.0
जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु भी निश्चित है | जीवन-मृत्यु प्रकृति का शाश्वत सत्य है | जिस तरह बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता, उसीतरह जो दिवंगत हो जाते हैं, कभी नहीं लौटते | मात्र उनकी यादें हमारे मानस पर बरबस आती रहती है | उनकी क्रियाकलापें, उनकी बातें, उनकी स्मृतियाँ हमेशा ही हमारे अंतर्मन में आती रहती है | फिर वही स्मृतियाँ हम अपने आने वाली संतानों को बताते हैं, यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है, जो स्मृतियाँ उपयोगी होती है अनेक पीढ़ियों तक चलती है, जबकि कुछ यादें एक ही पीढ़ी में समाप्त हो जाती है | मेरी यह किताब, मेरे बाबूजी और पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने की एक छोटी सी कोशिश है | बाबूजी का पूरे परिवार को आगे बढ़ाने में महानतम योगदान रहा है. बाबूजी ने हम चारो भाई-बहन को उच्च शिक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके परिणामस्वरूप हम सभी ने एक अच्छा मुकाम हासिल किया| आज हम जो कुछ भी हैं, यह बाबूजी के दूरदर्शिता के बिना संभव नहीं था | हम चारो भाई-बहन को उच्च शिक्षा प्रदान कर उन्होंने एक ऐसी परम्परा की नींव रखी है जो आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम करेगी | उन्होंने हमें पढ़ा-लिखाकर ऐसे अवसर प्रदान किये जो उन्हें स्वयं के जीवन में कभी नहीं मिले थे | बाबूजी के शिक्षा के प्रति अथाह लगाव के कारण ही मैं आज इस किताब को लिखने में अपने को सक्षम पा रहा हूँ | बड़े लोगों की जीवनी तो आप सभी जगह पा सकते हैं किन्तु साधारण आदमी, सिर्फ कहानी का पात्र बनता है | मैंने बाबूजी के इस ‘जीवनी’ के माध्यम से एक साधारण आदमी को मुख्य किरदार के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश किया हूँ | मेरे बाबूजी अकसर मुझे अपने पूर्वजों के बारे में बताते रहते थे, इस किताब में बाबूजी से प्राप्त जानकारियों को समेकित किया गया है | बाबूजी के जीवनी लिखने के लिए मैंने अपनी माँ, भाइयों के अलावा बाबूजी के दोस्त श्री प्रेमचंद, श्री रामानंद वर्मा, श्री शिवसमन तिवारी, श्री गजाधर और अनेक सम्बन्धियों से जानकारी प्राप्त किया | इस जीवनी को लिखने में मुझे अपने भाइयों श्री कुणाल (प्रमोद) और श्री अमरेश (आमोद), बहन श्रीमती चंद्रमाला से भी अपेक्षित सहयोग मिला | इस पुस्तक को लिखने में मुझे अपने मित्र श्री राजीव सारस्वत, दिल्ली के पिताजी के द्वारा लिखित “स्मृतियाँ” से भी अपेक्षित मार्गदर्शन मिला | बाबूजी का यह जीवनी अनेक चैप्टर में विभाजित है | इसमें कुछ चैप्टर पूर्वजो से जुड़ी घटनाओं का वर्णन है | इसमें बाबूजी के जन्म से लेकर मृत्यु तक घटनाओं का वर्णन किया गया है | इस किताब में मेरे छोटे भाइयों, बहन और मंझले भाई की पत्नी (भभू) का बाबूजी के प्रति विचार को भी जगह दी गयी है | परिवार के जिन सदस्यों ने अपने संस्मरण लिखे हैं, उनसे इस प्रस्तुति को पूर्णता प्राप्त हुई है, जिससे इसकी पठनीयता बढ़ी है | किताब के अंत में, बाबूजी के दोस्तों और शुभचिंतकों के भाषण का कुछ अंश दिया गया है, जो उन्होंने बाबूजी के शोकसभा के दिन दिया था | इस किताब में बाबूजी के कुछ तस्वीरें भी दी गयी है | उनके कुछ दोस्तों और सम्बन्धियों के भी यादगार तस्वीरों को इस पुस्तक में जगह दी गयी है | इस पुस्तक को आपके हाथ में पहुँचाने तक उपरोक्त महानुभावों के अलावा मेरे मित्र श्री अभय कुमार, दिल्ली एवं श्री शिव शंकर प्रसाद, निसरपुरा, पटना ने प्रूफरिडिंग के अतिरिक्त शब्द एवं वाक्य विन्यास को समुन्नत किया है | सुरेश भैया, गया ने इस पुस्तक की प्रिंटिंग में सहयोग किया, जबकि मनीष जी (बहनोई) का तस्वीर चुनने और सही जगह रखने में अपेक्षित सहयोग मिला | संकलन के विभिन्न स्तरों पर उक्त सदस्यों के सृजनात्मक सहयोग, श्रम एवं उत्साहपूर्ण योगदान से नरेश बाबू की जीवनी “कर्मयोगी नरेश बाबू” अपने वर्तमान स्वरूप आ सका है , इसका श्रेय इन्हीं सदस्यों को जाता है | आभार प्रकट करना उनके निश्छल स्नेह, आदर और प्रयास को कम करना होगा | भगवान से प्रार्थना है कि उनका जीवन मंगलमय हो | मुझे विश्वास है कि यह किताब से आने वाली पीढ़ी पूर्वजों के बारे में जान सकेगी | इससे उन्हें अपने कर्मों को सुविचारित रूप से पूर्ण करने में सहयोग मिलेगा | इस संस्मरणों को लिखने में, प्रस्तुतिकरण में, यथासंभव, मैं सही और शुद्ध लिखने की कोशिश किया हूँ, फिर भी कुछ त्रुटी रह गयी हो, तो मुझे क्षमा करें | और इस पुस्तक से जो कुछ भी ग्राह्य है, उसे पूर्वजों के आशीर्वाद समझकर अवश्य ग्रहण करें |
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पितृ-स्तुति

26 फरवरी 2022
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ॐ नमःपित्रे जन्मदात्रे सर्व देव मयाय च | सुखदायप्रसन्नाय सुप्रिताय महात्मने ||1|| सर्वयज्ञ स्वरूपाय स्वर्गाय परमेष्ठिने | सर्वतिर्थावलोकाय करुणा सागराय च ||2|| नमःसदा शुतोषाय शिव रूपाय ते नमः | स

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वर्तमान अमरपुरा

26 फरवरी 2022
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  बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ़ से करीब 10 किलोमीटर दक्षिण नौबतपुर थाना में अमरपुरा गांव बसा है इसके दक्षिण तरफ नहर है और उत्तर तरफ नौबतपुर प्रखंड कार्यालय और मोहनिपोखर गाँव है पूर्व तरफ आरोपु

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अमरपुरा और इतिहास

26 फरवरी 2022
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  जब अंग्रेजों का शासन जोरों पर था और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी भारत को स्वतंत्र कराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे. अंग्रेज एक तरफ द्वितीय विश्व युद्ध में फंसे थे तो दूसरी तरफ भारतीय स्वतं

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पांडे जी

26 फरवरी 2022
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 बचपन में नरेश बाबू का धार्मिक पूजा अनुष्ठान में बड़ी रूचि थी, वे अनंत पूजा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इत्यादि त्योहारों में उपवास भी रखते थे और पूरी भक्ति भावना से पूजा अर्चना करते। इसके अलावा सरस्वती पूजा

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बाबू जी एवं माँ

26 फरवरी 2022
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 आपके पिता श्रधेय  श्री राम उग्रह सिंह बहुत ही उग्र स्वाभाव के व्यक्ति थे। वे करीब छह फुट लम्बा और रंग गेहुआ था। वे शारीरिक रूप से काफी मजबूत और काफी ताकतवर व्यक्ति थे। वे तीन लोग से उठ सकने वाले बोझो

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व्यवसाय

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 भारत एक कृषि प्रधान देश है, आपके घर का भी मुख्य व्यवसाय कृषि ही था। किन्तु जब आपके घर का मालिकाना हक़ पढ़े लिखे होने के कारण श्रधेय श्री शीतल प्रसाद को दे दिए गए, तो उन्होंने अन्य व्यवसाय को भी बढ़ावा द

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आपकी शादी

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 अमरपुरा गाँव में बाल विवाह नहीं के बराबर होता था, स्त्रियों को भी शिक्षा प्रदान किया जाता था। स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव या छुआछूत जैसी बुराईयों से यह गाँव दूर था। मास्टर  श्री घनश्याम इसके उदाहरण थे

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जगदेव बाबू और आप

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 जगदेव बाबू 1968 में बिहार सरकार में मंत्री बने, उसके बाद उनकी पार्टी शोषित समाज दल का प्रसार अमरपुरा में भी बढ़ा। आप भी उनके विचारों और सिद्धान्तों से प्रभावित थे। आपके साथ  श्री रजनधारी सिंह,  श्री ओ

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गया प्रवास

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 1969 में खादी ग्रामोद्योग मधुबनी में सहायक के रूप में कार्य किये फिर 1972 में बिहार कॉपरेटिव फेडरेशन में कार्यकर्ता के लिए ट्रेनिंग लिए और कार्य शुरू किये । 1976 में लीला महतो स्मारक उच्च विद्यालय सो

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शिक्षक की भूमिका में

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 ऐसा कहा जाये कि आपके अंदर बचपन से ही शिक्षक का गुण था तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. आप अपने छात्र जीवन से ही अपने दोस्तों को पढ़ाते रहते थे. आप अपने साले श्रधेय श्री शम्भू प्रसाद को भी पढ़ाया. वे बताते

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स्कूल, आप और परिवार

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 आपने स्कूल को अपना लिया और स्कूल ने आपको। शुरू में आप स्कूल से 1 किमी दूर बने सोहैपुर कम्युनिटी हॉल में रहे फिर बाद में स्कूल के हॉस्टल में रहने लगे। आप अपने अमरपुरा के संस्कार और व्यवहार सोहैपुर गया

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अमरपुरा के उमस

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 मानसून की उमस को याद करते हुए, श्रधेय श्रीमती सुमित्रा देवी बताती हैं कि सावन की दूसरी सोमवारी का उमस भरा दिन था, रात में भी बहुत गर्मी थी न हवा चल रही थी न बारिश ही हो रही थी। रात में खाना खाने के ब

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शिक्षक की ईमानदारी

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 आप अमरपुरा में नाटक मंचन में सहयोग अवश्य करते थे. आप खुद कोई पात्र नहीं बनते थे किन्तु अन्य कार्य जैसे नाटक चयन, चंदा मांगने एवं देने में सहयोग करते थे. सर्वश्री परमेश्वर नारायण, भूपेंद्र सिंह, विजय

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आपके पिताजी का इंतकाल

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 1983-84 आते-आते आपके पिताजी श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह काफ़ी थक चुके थे. इसी बीच घर में बंटवारा उन्हें और बुड्ढा बना दिया था. और इसी बीच आपकी छोटी चाची श्रद्धेया श्रीमती महेश्वरी देवी की अचानक मृत्यु

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गया में गृह-निर्माण

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 1991 में गया के लखीबाग, मानपुर में आपने जमीन खरीद ली थी. आपके साथ-साथ सोहैपुर हाई स्कूल के अनेक शिक्षक जैसे श्रधेय  श्री सहजा बाबू, श्रधेय  श्री विरेन्द्र बाबू, श्री विजय बाबू, श्री रामभजू बाबू इत्या

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सेवा-निवृति

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 1998 तकआपके बड़े बेटे चंद्रगुत(विनोद) ने साइंस में स्नातक के बाद सिविल इंजीनियरिंग में दुमका पोलिटेक्निक से डिप्लोमा कर लिया. जबकि आपका मंझला बेटा कुणाल (प्रमोद) ने 2000 में कलकत्ता विश्वविध्यालय से प

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घर-वापसी

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 हाँ ! घर-वापसी ही , क्योंकि श्रद्धेय नरेश बाबू जब से सोहैपुर , गया के लीला महतो स्मारक उच्च विद्यालय में ज्वाइन किया था , स्कूल के आस-पास अपने सहशिक्षकों के साथ रहते थे , खुद खाना बनाना और खुद ही अपन

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माताजी और सेवा

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 2010 साल का आश्विन महीना था, थोड़ी-थोड़ी ठंढ हो रही थी, लेकिन बूढ़ी हड्डी में ठंढ कुछ ज्यादा ही लगती है । आपकी माताजी श्रद्धेय मुंगेश्वरी देवी 93 वर्ष की हो चुकीं थीं । उस दिन तेज हवा बह रही थी, जिससे आ

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लकवा

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 जब आपकी बेटी की भी पारामेडिकल के कंपेटिसन में सेलेक्सन हो गया और उसे स्पीच थेरेपी में ग्रेजुएशन में एड्मिशन के लिए आया तो आप बहुत खुश हुए थे, उस समय आपका मंझला लड़का उसी कालेज के कैम्पस में नेशनल इं

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हैदराबाद यात्रा

26 फरवरी 2022
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 लकवा से उबरने के बाद आप पूरी तरह स्वस्थ हो गए थे । या यों कहें कि आप पहले से ज्यादा स्वस्थ हो गए थे । अंतर यही हुआ था कि अब आपके साथ दवा की एक पोटली साथ हो गया । लकवा मारने से करीब एक साल पहले 2015

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बाबूजी का दिल्ली और करनाल भ्रमण

26 फरवरी 2022
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 जब आपका पोते इशांक का फुटबॉल खेलते समय 24 मार्च 2018 को हाथ टूट गया तो आपलोग बहुत परेशान हुए. आप उससे मिलने के लिए उतावले हो रहे थे. उस समय आपके मंझले लड़के प्रमोद अपने परिवार के साथ घर आया हुआ था. आप

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अंतिम भ्रमण

26 फरवरी 2022
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 ऐसा लगता है आपके पास समय की कमी थी. आपको इसका अहसास भी हो गया था. तभी तो आप अपनी जान पहचान के लोगों से  जल्दी-जल्दी मिल लेना चाह रहे थे. जब आपसे मिलने आपके बड़ी साली श्रीमती सोना देवी, बाजितपुर की पुत

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गुरूजी चले गये

26 फरवरी 2022
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 गुरूजी चले गए?  बाबूजी चले गए?  पिताजी चले गए.  दादाजी चले गए. नरेश बाबू चले गए.  यही बातें अमरपुरा गांव में चल रही थी 13 ओक्टुबर 2018 को रात 10 बजे से. फोन पर भी यही बातें हो रही थी. सभी लोगों

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अंतिम यात्रा

26 फरवरी 2022
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 इस समय रात के करीब पौने दस बजे थे. चारों तरफ सन्नाटा था. घर पर आपकी पत्नी और बेटी आपके सकुशल लौटने की भगवान से प्रार्थना कर रहे थे. किन्तु जैसे ही आपका निष्प्राण शरीर पहुंचा, घर पूरा अशांत हो गया. आप

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मेरी नजरों में हमारे बाबूजी ------ कुणाल योगेश चन्द्र

26 फरवरी 2022
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 एक साधारण एवं गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी मेरे बाबूजी अपनी कार्य-कुशलता एवं योग्यता के कारण लोकप्रिय रहे. उनका बचपन गरीबी एवं कठिनाई भरा था. अपने सरल स्वभाव के चलते वे बड़ी आसानी से लोगों से घ

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हमारे पिताजी और मेरी स्मृतियाँ -अमरेश चन्द्र

26 फरवरी 2022
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 मेरा बचपन अधिकांशतः अमरपुरा में बीता है इस कारण प्रथम 10 वर्ष तक मैं पिताजी के अनुशासन और स्नेह से प्रायः वंचित रहा. परन्तु मेरे जीवन पर पिताजी का गहरा प्रभाव रहा है. पिताजी की बहुत सी बातें हैं जो

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मैं और मेरे पिताजी - चंद्रमाला शौर्य

26 फरवरी 2022
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 मैं अपने पिताजी कि लाडली बेटी थी . जहाँ तक मुझे याद है वो मुझे बताते थे, मेरे जन्म पर वे पुरे गाँव में लड्डू बटवाए थे | चुकि मैं अपने तीनों भईया से छोटी थी इसलिए मैं पुरे परिवार की लाडली बन कर रही | 

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मेरे ससुर जी और मैं – कुमारी सुषमा

26 फरवरी 2022
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 मेरी शादी अमरपुरा के श्री राम नरेश सिंह के मंझले पुत्र कुणाल योगेश चन्द्र से तय हुई थी. इस शादी में अगुआ मेरे चचेरे जीजा जी करहारा के श्री बलराज सिंह थे जो कि मेरे पति के मौसेरे भाई भी हैं. मेरी शाद

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श्रधेय श्री नरेश बाबू के शोकसभा (25.10.18) में आए कुछ आगंतुकों के आपके प्रति उद्गार

26 फरवरी 2022
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 1. आँखों में अश्क लिये ; इधर-उधर ढूंढता हूँ | जब नहीं पाता हूँ ; तो खुद को समझाता हूँ || तेरी यांदों को हृदय में संजोय ; अश्क को घूंट –घूंट पीता हूँ ||”  -अजित कुमार सिन्हा, अमरपुरा   2. “सन 1956

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