जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु भी निश्चित है | जीवन-मृत्यु प्रकृति का शाश्वत सत्य है | जिस तरह बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता, उसीतरह जो दिवंगत हो जाते हैं, कभी नहीं लौटते | मात्र उनकी यादें हमारे मानस पर बरबस आती रहती है | उनकी क्रियाकलापें, उनकी बातें, उनकी स्मृतियाँ हमेशा ही हमारे अंतर्मन में आती रहती है | फिर वही स्मृतियाँ हम अपने आने वाली संतानों को बताते हैं, यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है, जो स्मृतियाँ उपयोगी होती है अनेक पीढ़ियों तक चलती है, जबकि कुछ यादें एक ही पीढ़ी में समाप्त हो जाती है | मेरी यह किताब, मेरे बाबूजी और पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने की एक छोटी सी कोशिश है | बाबूजी का पूरे परिवार को आगे बढ़ाने में महानतम योगदान रहा है. बाबूजी ने हम चारो भाई-बहन को उच्च शिक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके परिणामस्वरूप हम सभी ने एक अच्छा मुकाम हासिल किया| आज हम जो कुछ भी हैं, यह बाबूजी के दूरदर्शिता के बिना संभव नहीं था | हम चारो भाई-बहन को उच्च शिक्षा प्रदान कर उन्होंने एक ऐसी परम्परा की नींव रखी है जो आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम करेगी | उन्होंने हमें पढ़ा-लिखाकर ऐसे अवसर प्रदान किये जो उन्हें स्वयं के जीवन में कभी नहीं मिले थे | बाबूजी के शिक्षा के प्रति अथाह लगाव के कारण ही मैं आज इस किताब को लिखने में अपने को सक्षम पा रहा हूँ |
बड़े लोगों की जीवनी तो आप सभी जगह पा सकते हैं किन्तु साधारण आदमी, सिर्फ कहानी का पात्र बनता है | मैंने बाबूजी के इस ‘जीवनी’ के माध्यम से एक साधारण आदमी को मुख्य किरदार के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश किया हूँ | मेरे बाबूजी अकसर मुझे अपने पूर्वजों के बारे में बताते रहते थे, इस किताब में बाबूजी से प्राप्त जानकारियों को समेकित किया गया है | बाबूजी के जीवनी लिखने के लिए मैंने अपनी माँ, भाइयों के अलावा बाबूजी के दोस्त श्री प्रेमचंद, श्री रामानंद वर्मा, श्री शिवसमन तिवारी, श्री गजाधर और अनेक सम्बन्धियों से जानकारी प्राप्त किया | इस जीवनी को लिखने में मुझे अपने भाइयों श्री कुणाल (प्रमोद) और श्री अमरेश (आमोद), बहन श्रीमती चंद्रमाला से भी अपेक्षित सहयोग मिला | इस पुस्तक को लिखने में मुझे अपने मित्र श्री राजीव सारस्वत, दिल्ली के पिताजी के द्वारा लिखित “स्मृतियाँ” से भी अपेक्षित मार्गदर्शन मिला |
बाबूजी का यह जीवनी अनेक चैप्टर में विभाजित है | इसमें कुछ चैप्टर पूर्वजो से जुड़ी घटनाओं का वर्णन है | इसमें बाबूजी के जन्म से लेकर मृत्यु तक घटनाओं का वर्णन किया गया है | इस किताब में मेरे छोटे भाइयों, बहन और मंझले भाई की पत्नी (भभू) का बाबूजी के प्रति विचार को भी जगह दी गयी है | परिवार के जिन सदस्यों ने अपने संस्मरण लिखे हैं, उनसे इस प्रस्तुति को पूर्णता प्राप्त हुई है, जिससे इसकी पठनीयता बढ़ी है | किताब के अंत में, बाबूजी के दोस्तों और शुभचिंतकों के भाषण का कुछ अंश दिया गया है, जो उन्होंने बाबूजी के शोकसभा के दिन दिया था | इस किताब में बाबूजी के कुछ तस्वीरें भी दी गयी है | उनके कुछ दोस्तों और सम्बन्धियों के भी यादगार तस्वीरों को इस पुस्तक में जगह दी गयी है |
इस पुस्तक को आपके हाथ में पहुँचाने तक उपरोक्त महानुभावों के अलावा मेरे मित्र श्री अभय कुमार, दिल्ली एवं श्री शिव शंकर प्रसाद, निसरपुरा, पटना ने प्रूफरिडिंग के अतिरिक्त शब्द एवं वाक्य विन्यास को समुन्नत किया है | सुरेश भैया, गया ने इस पुस्तक की प्रिंटिंग में सहयोग किया, जबकि मनीष जी (बहनोई) का तस्वीर चुनने और सही जगह रखने में अपेक्षित सहयोग मिला |
संकलन के विभिन्न स्तरों पर उक्त सदस्यों के सृजनात्मक सहयोग, श्रम एवं उत्साहपूर्ण योगदान से नरेश बाबू की जीवनी “कर्मयोगी नरेश बाबू” अपने वर्तमान स्वरूप आ सका है , इसका श्रेय इन्हीं सदस्यों को जाता है | आभार प्रकट करना उनके निश्छल स्नेह, आदर और प्रयास को कम करना होगा | भगवान से प्रार्थना है कि उनका जीवन मंगलमय हो |
मुझे विश्वास है कि यह किताब से आने वाली पीढ़ी पूर्वजों के बारे में जान सकेगी | इससे उन्हें अपने कर्मों को सुविचारित रूप से पूर्ण करने में सहयोग मिलेगा | इस संस्मरणों को लिखने में, प्रस्तुतिकरण में, यथासंभव, मैं सही और शुद्ध लिखने की कोशिश किया हूँ, फिर भी कुछ त्रुटी रह गयी हो, तो मुझे क्षमा करें | और इस पुस्तक से जो कुछ भी ग्राह्य है, उसे पूर्वजों के आशीर्वाद समझकर अवश्य ग्रहण करें |