‘पद्यमभूषण’ से सम्मानित लेखक विष्णु प्रभाकर का यह कहानी-संकलन हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ है। इसमें लेखक ने जिन चुनिंदा सोलह कहानियों को लिया है उनकी दिलचस्प बात यह है कि अपनी हर कहानी से पहले उन्होंने उस घटना का भी उल्लेख किया है जिसने
बेटियां क्यों पराई हो जाती है । क्यों वो हक से अपने अपने मायके नही आ पाती ।उसके दो घर होने के बाद भी कोई घर नहीं होता। मां कहती हैं पराई है और सास कहती हैं पराये घर से आई है बड़ी गजब रचना हूं मैं तेरी भगवान। बेटी बन कर भी पराई
"तूं चाही,मैं रीता"यह मेरी सातवीं तथा शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली। छठवीं काव्य संग्रह है।जब तक यह लिखी जा रही है तब तक के लिये पाठकों के लिए नि:शुल्क शब्द इन पर उपलब्ध रहेगी लेकिन पूर्ण हो जाने के बाद यह सशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। आनलाइन लेखन मैंने सब
वैद्यनाथ मिश्र नागार्जुन की प्रतिनिधि कविताएँ का संकलन।
अगर आपने लामा फेरा सीख लिया है तो यह किताब आपको कई तरीके सिखा सकती है जो मुझे अभ्यास के दौरान मिलते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य अधिक अभ्यास फैलाना है। इस पुस्तक में एडवांस टेकनीक मिलेंगे जैसे बंद मोक्ष क्रिया ,एनर्जी वास्तु इत्यादि लेकिन अगर आपने ला
मेरी पुस्तक का नाम बशीरा है। मैने अपनी इस पुस्तक में बशीरा नाम के एक व्यक्ति के बारे में लिखा है। बशीरे के जरिए मैंने यह समझाने की कोशिश की है,कि जो लोग खुद को बदकिस्मत समझते हैं ,और भगवान को कोसते हैं कि हमें हीं भगवान ने इतने दुख दिए । उनको यह समझ
सागरिका ,उस दिन अपने होने वाले पति से पहली बार मिलने ,के,लिए जा रही थी।शायद वो थोड़ी लेट हो चुकी थी। सुबह का समय था। बारिसो का सीजन चल रहा था। कुल मिलाकर उस दिन मौसम सुहाना सा था।सागरिका जब घर से निकली ही थी,की , हलकी हवाएं और बारिसो की बुंदे भी अप
यह पुस्तक हमारे उन सभी महापुरुषों एवं पूर्वजों को समर्पित है, जिन्होंने सनातन धर्म की परम्पराओं (मानवता, सत्यता, न्याय इत्यादि) का आदर्श रूप से पालन करते हुए अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा अपने धर्म, कुल एवं देश के गौरव को बढ़ाया तथा उसके हेतु अपना सर्वस्
लेखक की कलम से जन्म से हर बच्चा में कुछ न कुछ गुण होता है बच्चा जन्म से प्रतिभाशाली होते हैं लेकिन जैसे ही उम्र बढ़ता जाता है परिवार , समाज, शिक्षालय उसके गुणों व विकास में वृद्धि की सहायता तो करते हैं लेकिन बड़े होने पर उसमें वह प्रतिभावान नहीं होता
सप्तदशी विष्णु प्रभाकर का एक उपन्यास है, जो 1947 में प्रकाशित हुआ था. यह उपन्यास भारत के विभाजन के दौरान एक परिवार के जीवन का वर्णन करता है. उपन्यास का मुख्य पात्र, जयदेव, एक युवा व्यक्ति है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल है. ज
समी-द मिरेकल ऑफ सोसाइटी एक येसी कहानी है, जिसमें मेरी भावनाओ को मैंने समाज के दर्पण के रूप में, समाज के कभी कड़वे तो कभी सुखद पल के अनुभव के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, समाज के छुपे उन पहलुओं और बिखरे, लेकिन पाक भावनावो वाला बचपन, टुटा मन औ
यह कहानी पुरी तरह काल्पनिक है अगर यह कहानी किसी व्यक्ति विशेष जाती समुदाय से मिलती है तो यह मात्र एक संयोग होगा मुझे विश्वास है कि यह कहानी आप लोगों Pको उतनी ही पसंद आएगी जितनी की बाकी की कहानियां पसंद आती है यह कहानी है एक लड़की की जो मध्यम वर्गी पर
श्रीमद्भागवत गीता का सरल काव्य रूपांतरण
ये किताब मेरे रोज के लेखो का संग्रह है। जिंदगी में खुशी भी है और गम भी। आप इसमें से अपने लिए क्या लेते हैं? यह आप पर निर्भर करता है।
विविध विषयो पर लेख इस किताब में है ।काव्य निबंध गजल आदि विधाओ में अप्रतिम संकलन ।
मीरा के पदों में कृष्ण लीला एवं महिमा के वर्णन का उद्देश्य मीराबाई द्वारा कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति का प्रकटीकरण करना था। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण की अनन्य भक्तिन थीं। मीराबाई श्रीकृष्ण को ही अपना प्रियतम मान बैठी थीं। रस-योजना - मीराबाई के का
मैने अपनी पुस्तक, सफलता की ओर, में एक विधवा औरत की कहानी लिखी है। जिसका नाम सुरजीत है। सुरजीत ने अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर । अपनी बेटी को अपने पैरों पर खड़ा किया। सुरजीत से बहुत लोगों ने कहा कि मिनी को पढ़ाने लिखाने का तुम्हें क्या फायदा। इसने तो अपन
यह किताब मेरे रोज के लेखों का संग्रह है। लिखना मुझे अच्छा लगता है। इसलिए लिखती हूं।
आम लोगों की जिंदगी की तरह तरह के रंग बिखेरती हुयी कहानियाँ जो कभी आपको हँसाएगी , कभी आपकी आँखें नम कर देंगी और कभी सोचने पर मजबूर कर देंगी। भावनाओं की कशमकश , विचारों की उथल पुथल में झूलते पात्रों से मिल कर लगेगा कि उसे आपने जरूर कभी न कभी अपने आस