*हमारे अन्दर अहंकार और क्रोध अधिक है*
*तो हमें अन्य किसी शत्रु की*
*आवश्यकता नहीं है*
*ये दोनों हमारे पतन*
*के लिए पर्याप्त है*
*अहंकार तभी उत्पन्न होता है*
*जब गुणों का स्वामी यह भूल जाता है कि*
*प्रशंसा वास्तव में उसकी नहीं बल्कि*
*उसके गुणों की हो रही है*
*अपने गुणों को ऐसे चमकाओ कि*
*सब गुणों की कॉपी पेस्ट करें*
*नफरतों को जलाओ*
*मुहब्बत की रौशनी होगी*
*इंसान तो जब भी जले राख ही हुऐ*
*बाकी श्रेय मिले न मिले*
*अपना श्रेष्ठ देना कभी बंद मत करना*