*इंसान स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना दुश्मन है ये समाज ये संसार न तो आपका मित्र है न ही आपका शत्रु ये सारी ज़िम्मेदारी आपको स्वयं अपने ऊपर ओढ़नी है की आप स्वयं के साथ मित्रता निभाते हो या शत्रुता निभाते हो*
*जैसे आप किसी ग़लत रास्ते पर चलते है तो आप अपने शत्रु हुए आप जब सही रास्ते पर चलते हो तो आप अपने मित्र हुए जैसे कि आप किसी पर क्रोध करते हो तो जिस पर क्रोध कर रहे हो उसे कुछ फ़र्क़ पड़े न पड़े ये बाद की बात है आप पर वो क्रोध पहले असर कर रहा है*
*जब आप किसी को गाली देते हो तो उसे गाली देने से पहले आपको स्वयं को क्रोध में उबालना पड़ता है एक पीड़ा से गुज़ारना पड़ता है आपकी पीड़ा आपकी बेचैनी आपका क्रोध ही गाली के रूप में परिवर्तित होता है जिसे आप गाली दे रहे हैं वो प्रभावित होगा कि नहीं लेकिन आपका उबलता हुआ खून कई प्रकार के नकारात्मक केमिकल आपके अंदर पैदा करते हुए आपको प्रभावित ज़रूर करता है*
*कुछ दिन प्रसन्न रहते हुए किसी पर क्रोध किए बग़ैर आइए जीवन जीकर देखे स्वयं के साथ मित्रता निभाकर देखे हो सकता है हमें सब कुछ अच्छा लगने लगे*