जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग- अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती है। किसी को मीठी तो किसी को अत्याधिक कड़वी दवा दी जाती है। लेकिन दोनों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार किये जाने के बावजूद भी उसका उद्देश्य एक ही होता है, रोगी को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना।
ठीक इसी प्रकार उस ईश्वर द्वारा भी भले ही देखने में भिन्न-भिन्न लोगों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार नजर आये मगर उसका भी केवल एक ही उद्देश्य होता है और वह है, कैसे भी हो मगर जीव का कल्याण करना।
सुदामा को अकिंचन बनाके तारा तो राजा बलि को सम्राट बनाकर तारा। शुकदेव जी को परम ज्ञानी बनाकर तारा तो विदुर जी को प्रेमी बना कर। पांडवों को मित्र बना कर तारा व कौरवों को शत्रु बनाकर। स्मरण रहे - भगवान केवल क्रिया से भेद करते हैं भाव से नहीं।