बालपन से गुजरते हुए यौवन की दहलीज पर कदम रखने से पहले हर बच्चे को एक बड़ी ही कठिन अवस्था से होकर गुजरना पड़ता है और यही अवस्था उसके भविष्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है | अगर उन गलियों की भूल- भुलैया से बचकर वह निकल जाता है तो जिन्दगी बन ग
इस किताब में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा इक्कीस कहानियां संकलित हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पर्याप्त चर्चित हैं। उल्लेखनीय है कि सभी में मुख्य सरोकार के रूप में आधुनिक मानवीय मूल्यों का ही समावेश है।
कौन अधिक बुद्धिमान और चतुर है? पुरुष या महिला? यह प्रश्न संसार अनादि काल से रखता आ रहा है। विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कोई पुरुष कहता है और कोई स्त्री कहता है। लेकिन करमेगा कविग्नार नाम के एक तमिल कवि ने इसका करार
मेरे भावों के सप्तरंगों का इंद्रधनुष है, गीतों की लड़ियों, कविताओं के छंदों में, अलग अलग फैली, जैसे समेटने की कोशिश में बिखर गई पंखुड़ियां हों या अलग अलग ऱग के फूलों की।