भुवनेश्वर शहर भारत के पूर्वी हिस्से में बसा है तथा यह शहर ओडिशा की राजधानी है। देश के आजाद होने से पहले ओडिशा की राजधानी कटक हुआ करती थी, जिसे आज प्रदेश की व्यापारिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। इस शहर को जर्मन आर्किटेक्ट ओटो कोनिग्सबर्गर द्वारा डिजाइन किया गया है।
1948 में भारत के राज्य उड़ीसा की राजधानी बनने से पहले भुवनेश्वर को मंदिरों के घर के रूप में जाना जाता था। भुवनेश्वर हमेशा से एक महत्वपूर्ण समृद्ध हिंदू सांस्कृतिक का केंद्र रहा है। इसके आलावा यह बौद्ध धर्म, जैन धर्म, शैव और वैष्णव सम्प्रपयों का केंद्र भी रहा है। प्राचीन काल में यह कलिंग और उत्कल के नाम से जाना जाता था। ऐसा माना जाता है की यह शहर भगवान शिव के लिंगराज मंदिर के आस-पास विकसित हुआ। भुवनेश्वर शब्द तीन प्रमुख देवों के नाम ‘त्रिभुनेश्वर’ से विकसित हुआ। भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क आपस में मिलकर स्वर्ण त्रिभुज का निर्माण करते हैं।
भुवनेश्वर की भूमि पर ही ऐतिहासिक कलिंग का युद्ध लड़ा गया था तथा इसी युद्ध बाद सम्राट अशोक ने अस्त्र-शस्त्र और अपना साम्राज्य त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था।
लिंगराज मंदिर
लिंगराज मंदिर को भुवनेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर कलिंग शैली और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है इसका निर्माण 11 वीं शताब्दी मे करवया गया था। इस मंदिर की बहारी दिवारो पर शिल्पकला के अद्भुत नमूने देखने योग्य है। मंदिर के भीतर ग्रेनाइट पत्थर से बना विशाल शिवलिंग है जिसके आधे भाग में भगवान विष्णु का रूप उत्कीर्ण है। यहाँ माता पार्वती को भुवनेश्वरी कहा जाता है। लिंगराज मंदिर कुछ कठोर परंपराओं का अनुसरण भी करता है। मंदिर में हिन्दू जाति के लोगों को ही प्रवेश दिया जाता है, गैर हिन्दू लोगों को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है।
लिंगराज मंदिर के उत्तर में बिन्दुसागर झील है यह झील 1300 फीट लम्बी और 700 फीट चौड़ी है। यह भुवनेश्वर की सबसे बड़ी झील है।
मुक्तेश्वर मंदिर
इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। यह मंदिर कलिंग शैली और नागर शैली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है| मुक्तेश्वर मंदिर मुख्य रूप से दो मन्दिरों का समूह है एक है परमेश्वर मंदिर तथा दूसरा है मुक्तेश्वर मंदिर। मुक्तेश्वर मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है तथा यह मन्दिर एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है इस मन्दिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इस मन्दिर के दायीं तरफ एक छोटा सा कुआं है जिसे मरीची कुंड के नाम से भी जाना जाता है। इसमे उडते हुए गंधर्व विमान, हाथियो को रौंदते हुए सिंह, उछलते कूदते बंदर तथा भागते हिरणो के कलात्मक दृश्य सजीव से लगते है। मंदिर का प्रसिद्ध तोरणद्वार इसे राज्य के अन्य मंदिरों से अलग बनाता है।
राजारानी मन्दिर
राजारानी मन्दिर को कलिंग वास्तुकला में 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर में शिव और पार्वती की भव्य मूर्ति स्थापित हैं। यह माना जाता है कि राजारानी मंदिर एक ख़ास प्रकार के लाल और पीले पत्थर से बना है जिसे राजारानी पत्थर कहा जाता है इसी कारण इस मंदिर का नाम राजा-रानी मन्दिर पड़ा। इस मन्दिर की दीवारों पर बानी सुंदर कलाकृतियां खजुराहो मंदिर की कलाकृतियों जैसी ही हैं।
खंडगिरि और उदयगिरि की गुफाएं
खंडगिरि और उदयगिरि की गुफाएं भुवनेश्वर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इन गुफाओं का निर्माण चेडी राजवंश द्वारा पहली शताब्दी ईसा पूर्व के बाद के वर्षों के दौरान करवाया गया था। एक पहाडी पर स्थित ये गुफाए 2000 साल पुरानी है। यहा एक ही पत्थर को तराशकर शिल्पियो ने 24 तीर्थंकरो की मूर्तिया बनाई है जो विषेश रूप से दर्शनीय है। भुवनेश्वर के दर्शनीय स्थल में यह गुफाएं काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इन गुफाओं में कई जैन मंदिर भी स्थित हैं ऐसा माना जाता है कि यहां मौजूद मठों का निर्माण राजा खरावेला द्वारा करवाया गया था। उदयगिरी की सबसे बड़ी गुफा को रानी की गुफा और दूसरी हाथीगुम्फ़ा है, जहाँ प्रवेश पर हाथियों की मूर्तियां बानी हुई हैं|
ब्रह्मेश्वर मंदिर
यह मंदिर “ब्रह्माकुंड” के पास स्थित है। इस मंदिर मे भगवान शिव की कलात्मक प्रतिमा विशेष रूप से देखने योग्य है।
रामेश्वरम मंदिर
इस मंदिर को गुडिया मंदिर भी कहते है। इसमे शिवलिंग प्रतिष्ठित है। चैत्र शुक्ल अष्टमी को लिगंराजजी का यात्रा रथ इसी मंदिर तक आता है।
परशुरामेश्वर मंदिर
इस मंदिर का निर्माण नागारा शैली से किया गया है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर लिंगराज मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भुवनेश्वर के इस प्राचीन मंदिर की शिल्पकला देखने योग्य है।
नंदनकानन
भुवनेश्वर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह वृहद पार्क पशुओ का अभयारण्य है। इस पार्क में एक सुंदर झील भी है। जो पर्यटको को दूर से ही आकर्षित करती है। भुवनेश्वर के दर्नीय स्थल में यह स्थान काफी प्रसिद्ध है।
शांति स्तूप
भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर दूर धौली पहाडी पर निर्मित शांति स्तूप के चारो ओर महात्मा बुद्ध की मूर्तिया देखने योग्य है। यह स्तूप बौद्ध परम्परा की आधुनिक शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है। इस पहाडी के पास ही वह मैदान है।जहा सम्राट अशोक ने कलिंग नरेश को युद्ध में पराजित किया था।
चिलका झील
भुवनेश्वर के दर्शनीय स्थल में काफी प्रसिद्ध चिलका झील पुरी के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। चिलका झील में 160 प्रकार की मछलियां पायी जाती है। 1100 वर्ग किलोमीटर में फैली इस झील में बोटिंग करने का अपना अलग ही मजा है।
संग्रहालय
नए पुराने भुवनेश्वर शहर के बीच स्थित राज्य संग्रहालय में आप मध्यकालीन दुर्लभ ताम्रपत्रो, पांडुलिपीयो, कलाकृतियो और शिलालेखो को बेहद करीब से देख सकते है। यहा पाषण शिल्प की मूर्ति, सिक्के तथा अन्य हस्तशिल्प की वस्तुएं भी देखने योग्य है।
शिशुपालगढ़
कहा जाता है कि शिशुपालगढ कभी उडीसा की राजधानी थी।.आप यहा प्राचीन काल के कई अवशेष देख सकते है।
यहाँ के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल लक्ष्मनेश्वर मंदिरों का समूह, परसुरामेश्वर मंदिर, स्वर्नाजलेश्वर मंदिर, वैताल मंदिर, मेघेश्वर मंदिर, वस्करेश्वर मंदिर, अनंत वासुदेव मंदिर, साड़ी मंदिर, कपिलेश्वर मंदिर, मारकंडेश्वर मंदिर, यमेश्वर मंदिर, चित्रकरिणी मंदिर, सिसिरेश्वर मंदिर आदि हैं| इसके आलावा मां कनकदुर्गा पीठ, और इस्कोन मंदिर भी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं|
भुवनेश्वर में मंदिरो के आलावा नंदनकानन राष्ट्रीय पार्क, चंदका वन्यजीव अभ्यारण्य, बीडीए निक्को पार्क, अतरी में गंधक का गर्म पानी का झरना, इंफो सिटी, कलिंगा स्टेडियम, फार्चून टॉवर, पठानी सामंत ताराघर, रीजनल साइंस सेंटर, बीजू पटनायक पार्क, बुद्ध जयंती पार्क, एकाम्र कानन, देरास डेम, फारेस्ट पार्क, इंदिरा गाँधी पार्क, गाँधी पार्क, जनजातीय कला और शिल्पकृति संग्रहालय, उड़ीसा स्टेट म्यूजियम आदि दर्शनीय स्थल हैं|