गुवाहाटी असम राज्य की राजधानी है| यह पूर्वोत्तर भारत का मुख्य शहर है। इस आधुनिक संसार में पूर्वोत्तर भारत का मुख्य शहर है। प्राचीन काल में यह शहर प्राग्ज्योतिस्पुर के नाम से भी जाना जाता था | जो की प्राचीन असम (कामरूप) की राजधानी थी।
गुवाहाटी शहर, भूतपूर्व गौहाटी,पूर्वोत्तर भारत के पश्चिमी असम राज्य में स्थित है। गुवाहाटी ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर बसा एक नैसर्गिक सौंदर्य संपन्न शहर है| जिसके दक्षिण में वनाच्छादित पहाड़ियाँ हैं। गुवाहाटी असम का सबसे बड़ा और ख़ूबसूरत शहर है। गुवाहाटी अपनी अद्वितीय, विविध और रंगीन संस्कृति के लिए जाना जाता है।
400 ई. में गुवाहाटी कामरूप की राजधानी (प्रागज्योतिषपुर यानी "ज्योतिषशास्त्र का नगर" के नाम से) हुआ करता था।
महाभारत काल में पूर्व में प्रकाश के नाम से प्रसिद्ध यह स्थान असुर राजा नरकासुर की राजधानी थी। कहा जाता है कि यहीं पर सौन्दर्य और जीवन के स्रोत हिन्दू देव कामरूप का पुनर्जन्म हुआ था| इसके उल्लेख भारतीय पुराणों में भी हैं। काफ़ी समय तक यह हिन्दू तीर्थस्थल तथा शिक्षा का केन्द्र भी रहा है। सातवीं सदी के महान् यात्री ह्वेनसांग ने इस शहर का वर्णन किया है। ख़ासतौर से गुवाहाटी के वनों, सुंदर पर्वत मालाओं तथा वन्यजीवन का उल्लेख किया गया है। 17 वीं सदी में यह नगर बार-बार मुसलमान तथा अहोम शासकों के हाथों में आता-जाता रहा और अंततः 1681 में यह निचले असम के अहोम प्रशासक का मुख्यालय बना तथा 1786 में अहोम राजा ने इसे अपनी राजधानी बना लिया। गुवाहाटी पर 1816 से 1826 तक बर्मियों का क़ब्ज़ा रहा,जब यांदाबू की संधि के द्वारा उन्होंने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया|
1874 में असम की राजधानी को यहाँ से 108 किलोमीटर दूर शिलांग ले जाया गया। 1973 से गुवाहाटी असम की राजधानी है। दिसपुर के नई राजधानी बन जाने के बाद भी यह शहर न केवल असम बल्कि समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र का व्यापारिक केंद्र बना हुआ है।
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गुवाहाटी की आबादी मिली जुली है, जिसमें बंगाली, पंजाबी, बिहारी, नेपाली, राजस्थानी तथा बांग्लादेशी शामिल हैं। इसके अलावा यहाँ सारे पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी समुदायों के लोग भी बसते हैं। यहाँ गुवाहाटी विश्वविद्यालय (स्थापना 1948 ), अर्ल लॉ कॉलेज, राज्य उच्च न्यायालय अनेक हिन्दू तीर्थस्थलों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। गुवाहाटी खेलों की दृष्टि से भी महत्त्वपुर्ण स्थान रहा है। गुवाहाटी में अनेक स्टेडियम स्थित है, यहाँ 2007 में 33 वें राष्ट्रीय खेल आयोजित हुऐ थे।
गुवाहाटी असम का महत्त्वपूर्ण व्यापार केंद्र तथा बंदरगाह है। पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार गुवाहाटी आसपास के क्षेत्र की व्यवसायिक गतिविधियों का केन्द्र है। इसे विश्व का सबसे बड़ा चाय
का बाज़ार माना जाता है। यहाँ एक तेलशोधन संयंत्र और सरकारी कृषि क्षेत्र है तथा उद्योगों में चाय तथा कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण, अनाज पिसाई तथा साबुन बनाना हैं। यहाँ कोई अन्य बड़े उद्योग नहीं हैं। लगभग 17 प्रतिशत आबादी उद्योग,व्यापार तथा वाणिज्य में लगी हुई है तथा उद्योगों पर राजस्थान से आए मारवाड़ियों का एकाधिकार है।
अक्टूबर से अप्रैल के बीच का समय गुवाहाटी जाने के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
पहाड़ों के खूबसूरत नजारों से इतर गुवाहाटी के मंदिर बेहद दर्शनीय हैं। नीलाचल पहाड़ी पर बने कमाख्या मंदिर को दुनिया के प्रसिद्ध तांत्रिक मंदिरों में से एक माना जाता है| भगवान शिव को समर्पित उमानंद मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच पर एक द्वीप पर स्थित है| पूर्वी गुवाहटी में नौ ग्रहो को समर्पित नवग्रह मंदिर है, जहां एस्ट्रॉलजी व एस्ट्रॉनमी का अद्भुत मेल देखा जा सकता है। वैसे,पर्यटकों को उग्रतरा मंदिर में भी खासी दिलचस्पी रहती है। गुवाहाटी में देश का सबसे बड़ा नेचरल जू है। इसके अलावा, स्टेट म्यूजियम,
एंथ्रोपॉलजिकल म्यूजियम, फॉरेस्ट म्यूजियम जैसे संग्रहालय असम के विविध पहलू दिखाने के लिए मौजूद हैं, तो अंतरिक्ष में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यहां का प्लैनेटेरियम भी एक बेहतरीन जगह है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तीन किलोमीटर की ड्राइव पर यह छोटा हिल स्टेशन बसा है| जहां से कंचनजंघा की पहाड़ियों को बेहद करीब से देखा जा सकता है।
कामाख्या मंदिर: देश के प्रत्येक मंदिर की भांति इस मंदिर का भी अपना महत्व है। कहा जाता है कि सती पार्वती ने अपने पिता द्वारा अपने पति,भगवान शिव का अपमान किए जाने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी। भगवान शिव को आने में थोड़ी देर हो गई,तब तक उनकी अर्धांगिनी का शरीर जल चुका था। उन्होंने सती का शरीर आग से निकाला और तांडव नृत्य आरंभ कर दिया। अन्य देवतागण उनका नृत्य रोकना चाहते थे,अत: उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को मनाने का आग्रह किया।
भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए और भगवान शिव ने नृत्य रोक दिया। कहा जाता है कि सती की योनि (सृजक अंग) गुवाहाटी में गिरी। यह मंदिर देवी की प्रतीकात्मक ऊर्जा को समर्पित है। गुवाहाटी से 7 कि॰मी॰ दूर पश्चिम में नीलाचल हिल पर स्थित यह मंदिर असम की वास्तुकला का एक उदाहरण है, जिसका गुम्बद मधुमक्खियों के छत्ते की भांति है|
यहां पूरी धार्मिक श्रद्धा और विश्वास से मुख्य रूप से दो त्यौहार मनाए जाते हैं। जून/जुलाई माह के अंत में पृथ्वी के मासिक चक्र की समाप्ति पर अम्बूची पर्व का आयोजन किया जाता है। सितंबर में मनासा पर्व के दौरान श्रद्धालु पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करके देवी से दुआ मांगते हैं।
उमानन्दा मंदिर: नदी के बीच में पिकॉक हिल पर स्थित यह एक सुंदर मंदिर है। भगवान शिव के इस मंदिर का निर्माण 1594 में हुआ था। इस मंदिर में जाने के लिए आपको नाव से जाना पड़ेगा| जो प्रात: 7.00 बजे से सायं 5.30 बजे तक चलती हैं।
वशिष्ठ आश्रम: यह आश्रम वशिष्ठ मुनि की स्मृति में बना है, जो एक प्रसिद्ध संत और विचारक थे। इन्होंने महान धर्मग्रंथ रामायण की रचना की थी।
नवग्रह मंदिर: चित्राचल हिल पर स्थित यह मंदिर नवग्रहों को समर्पित है, क्योंकि देश में नवग्रहों का बहुत महत्व है। माना जाता है कि ये ग्रह लोगों के भाग्य को प्रभावित करते हैं अत: उन्हें भगवान माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
हाजो: कुछ लोगों के अनुसार गुवाहाटी से 27 कि॰मी॰ दूर हाजो नामक स्थान पर ही भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था।