कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में पुरे वर्ष में कुल 12 शिवरात्रियां आती है जिनमे से सबसे मुख्य महाशिवरात्रि को माना जाता है। लेकिन इसके अलावा भी एक शिवरात्रि है जिसे हिन्दू धर्म में बहुत श्रद्धा के साथ साथ मनाया जाता है और वो है श्रावण माह की शिवरात्रि। वर्ष के सभी 11 शिवरात्रियों को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। जिनमे से एक श्रावण माह की शिवरात्रि होती है। शिवरात्रि का पर्व देवों के देव महादेव को समर्पित पर्व है जिसे पुरे भारत में बड़े हर्ष के साथ मनाया जाता है। लेकिन इसके अलावा भी एक शिवरात्रि है जिसे हिन्दू धर्म में बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है और वो है श्रावण माह की शिवरात्रि।
हिन्दू धर्म में भोलेनाथ को सबसे सरल और भोला देव माना जाता है। कहते है यदि कोई भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान् शिव की आराधना करता है तो प्रभु उस मनुष्य का कल्याण करते हैं। और साल में एक महीना ऐसा होता है जब सभी भक्त भोले बाबा का नाम जपते रहते है और वो समय है सावन का महीना। धर्म ग्रंथों में भी सावन महीने को बहुत पवित्र और शुभ माना जाता है। सावन का महीना महादेव को समर्पित है इसलिए इस महीने भक्त भगवान् शिव की आराधना करते है और व्रत भी रखते है| भगवान् शिव को महादेव के अलावा भी कई नामो से पुकारा जाता है|
हिंदू धर्म में सावन का महीना काफी पवित्र माना जाता है। इसे धर्म-कर्म का माह भी कहा जाता है। सावन महीने का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है। शास्त्रों के अनुसार बारह महीनों में से सावन का महीना विशेष पहचान रखता है। पुराणों और धर्मग्रंथों को उठा कर देखें तो भोले बाबा की पूजा के लिए सावन के महीने की महिमा का अत्याधिक महत्व है।
इस महीने में ही पार्वती जी ने शिव जी की घोर तपस्या की थी और शिवजी ने उन्हें दर्शन भी इसी माह में दिए थे। तब से भक्तों का विश्वास है कि इस महीने में शिवजी की तपस्या और पूजा पाठ से शिव जी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं। श्रावण यह हिंदी कैलेंडर में पांचवे स्थान पर आता हैं। यह वर्षा ऋतू में प्रारंभ होता है। शिव जिनको श्रावण का देवता कहा जाता हैं उन्हें इस माह में भिन्न-भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं। भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है|
सावन शिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण होती है। माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों की पुकार बहुत जल्द सुन लेते हैं। इसलिये उनके भक्त अन्य देवी-देवताओं की तुलना में अधिक भी मिलते हैं| भगवान भोलेनाथ का दिन सोमवार माना जाता है और उनकी पूजा का श्रेष्ठ महीना सावन। वैसे तो हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि भी आती है लेकिन सावन महीने में आने वाली शिवरात्रि को फाल्गुन महीने में आने वाली महाशिवरात्रि के समान ही फलदायी माना जाता है।
सभी शिवभक्तों को फाल्गुन महीने के बाद सावन महीने का खास तौर पर इंतजार रहता है। दरअसल सावन के पावन सोमवार और उसमें शिवरात्रि के त्यौहार की महिमा ही अलग होती है। इस शिवरात्रि का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें भगवान शिव का जलाभिषेक करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है। सावन के पूरे महीने शिवभक्त बम भोले,
हर-हर महादेव के नारे लगाते हुए नजर आते हैं। शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक के लिये हरिद्वार, गौमुख से कांवड़ भी लेकर आते हैं। मान्यता है कि श्रावण महीने की शिवरात्रि के दिन जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करते हैं तो उनके कष्टों का निवारण होता है और मुरादें पूरी हो जाती हैं।
शिवरात्रि साल मे 12 /13 बार आने वाला मासिक त्योहार है| शिवरात्रियों में से दो सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं, फाल्गुन महा शिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है और दूसरी सावन शिवरात्रि के नाम से जानी जाती है। यह त्यौहार भगवान शिव-पार्वती को समर्पित है, इस दिन भक्तभगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते हैं।
सावन शिवरात्रि को काँवर यात्रा भी कहा जाता है, जो मानसून के श्रावण (जुलाई-अगस्त) के महीने मे आता है। कंवर (काँवर), एक खोखले बांस को कहते हैं इस अनुष्ठान के अंतर्गत, भगवान शिव के भक्तों को कंवरियास या काँवाँरथी के रूप में जाने जाता है। हिंदू तीर्थ स्थानों हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, सुल्तानगंज में गंगा नदी, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ,
नीलकंठ और देवघर सहित अन्य स्थानो से गंगाजल भरकर अपने - अपने स्थानीय शिव मंदिरों में इस पवित्र जल को लाकर चढ़ाया जाता है।
हिन्दू पुराणों में कांवड़ यात्रा समुद्र के मंथन से संबंधित है। समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने जहर का सेवन किया, जिससे नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हुए। त्रेता युग में रावण ने शिव का ध्यान किया और वह कंवर का उपयोग करके, गंगा के पवित्र जल को लाया और भगवान शिव पर अर्पित किया, इस प्रकार जहर की नकारात्मक ऊर्जा भगवान शिव से दूर हुई।
पृथ्वी की रचना पूरी होने के बाद,पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि भक्तों के कौन से अनुष्ठानों से आपको सबसे ज़्यादा प्रशन्नता होती है। भगवान ने कहा है कि, फाल्गुन के महीने के दौरान शुक्लपक्ष की 14 वीं रात मेरा पसंदीदा दिन है।
सावन शिवरात्रि के फायदे:
•कुंवारी कन्यायें इस दिन व्रत रखती है और मनचाहा पति पाने की प्रार्थना करती हैं। विवाहित स्त्रियां इस व्रत को अपने सुहाग के कुशल जीवन और लंबी आयु के लिए रखती हैं।
•अच्छे मन से पूजन और व्रत करने से पापो का नाश होता है।
•व्रत रखने से मन को शांति और सुकून भी मिलता है।
•गरीब किसान बारिश की चाह में भगवान् शिव से वर्षा कराने का आग्रह करते हैं।
•इस व्रत को रखने से घर में शांति आती है और घर की खराब स्थितियां सुधर जाती हैं।
•कालसर्प दोष से छुटकारा पाने के लिए इस दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। जो ब्रह्म मुहूतय में की जाट है।
इस साल सावन की शिवरात्रि 9 अगस्त को है|