सोमवार को आई खबर के मुताबिक महारष्ट्र सरकार शारीरिक दंड को खत्म करने पर काम कर रही है| इस दिशा में काम करते हुए,राज्य शिक्षा विभाग ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभागों से शिक्षकों,सभी बोर्डों के प्रिंसिपल और स्कूल प्रबंधन के लिए कार्यशालाएं आयोजित करने के लिए कहा है|
कार्यशालाओं के लिए, विभाग नेशनल कमिसन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स ऑफ़ वीमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री ( एन. सी. पि. सी .अर) के दिशा निर्देशों का उपयोग करेगी | दस साल पहले शारीरिक दंड पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ,लेकिन अभी भी कुछ स्कूलो में इसका प्रयोग होता है | मुंबई स्कूल प्रिंसिपल एसोसिएशन के महासचिव प्रशांत रेडिज ने कहा: 'हम शारीरिक दंड का समर्थन नहीं करते हैं। इसे दस साल पहले देश में प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन कुछ शिक्षक छात्रों में अनुशासन पैदा करने के लिए आज भी इसका प्रयोग करते है | एक कक्षा में ४० छात्रों को संभालना एक आसान काम नहीं है। केवल स्कूल शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों के लिए ऐसे दिशानिर्देश क्यों होना चाहिए? यह माता-पिता और ट्यूशन शिक्षकों के लिए भी लागू होना चाहिए। '
माता-पिता टीचर एसोसिएशन, यूनाइटेड फोरम, अध्यक्ष अरुंधती चव्हाण ने बताया ," शारीरिक उत्पीड़न पर प्रतिबंध तभी लगा दिया गया था जब शारीरिक दंड पर प्रतिबंध लगया था लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में इसका प्रयोग होता है। शहरों में, शिक्षक शारीरिक उत्पीड़न न करके मानसिक उत्पीड़न का उपयोग करते हैं।" बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ महाराष्ट सरकार के इस कदम से खुश है। " हम शिक्षकों के प्रशिक्षण का स्वागत करते हैं|" भारतीय शिक्षा अकादमी के अध्यक्ष डॉ संतोष सोअंस ने कहा, इससे शिक्षा अधिक मानवीय हो जाएगी, और देश में बाल अधिकारों को भी बल मिलेगा।