आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा का शुभारंभ होता है| उड़ीसा में मनाया जाने वाला यह सबसे भव्य पर्व होता है| पुरी के पवित्र शहर में इस जगन्नाथ यात्रा के इस भव्य समारोह में में भाग लेने के लिए हर साल दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं| यह पर्व पूरे नौ दिन तक उत्साह और उमंग के साथ चलता है| उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी शंख क्षेत्र और श्री क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है| उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का विकास हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण सर्वोत्तम भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं| भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति को उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की छोटी मूर्तियाँ को रथ में ले जाया जाता है और धूम-धाम से इस रथ यात्रा का आरंभ होता है| यह यात्रा पूरे भारत में प्रसिद्ध है| जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का पर्व आषाढ मास में मनाया जाता है| इस पर्व पर तीन देवताओं की यात्रा निकाली जाती है| इस अवसर पर जगन्नाथ मंदिर से तीनों देवताओं के सजाये गये रथ खिंचते हुए दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं और नवें दिन इन्हें वापस लाया जाता है| इस अवसर पर सुभद्रा बलराम और भगवान श्री कृ्ष्ण का पूजन नौं दिनों तक किया जाता है|
इन नौ दिनों में भगवान जगन्नाथ की पूजा आराधना कि जाती है| प्राचीन मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है की इस स्थान पर आदि शंकराचार्य जी ने गोवर्धन पीठ की स्थापना की थी | पुरी संतों और महत्माओ की वजह से प्राचीन काल से ही अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है| अनेक संत और महात्माओं के मठ यहां देखने को मिलते है | जगन्नाथ पुरी के विषय में ऐसा भी माना जाता है कि त्रेता युग में रामेश्वर धाम कल्याणकारी रहें है , द्वापर युग में द्वारिका और कलियुग में जगन्नाथपुरी धाम ही कल्याणकारी है| पुरी भारत के प्रमुख चार धामों में से एक धाम है|श्री जगन्नाथ जी का यह रथ 45 फुट ऊंचा भगवान होता है| भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे होता है और भगवान जगन्नाथ क्योकि भगवान श्री कृ्ष्ण के अवतार है इसलिए उन्हें पीतांबर यानि की पीले रंगों से सजाया जाता है| पुरी यात्रा की ये मूर्तियां भारत के अन्य देवी-देवताओं कि तरह नहीं होती है| रथ यात्रा में सबसे आगे भाई बलराम का रथ होता है, जिस रथ की उंचाई 44 फुट उंची होती है| यह रथ मुख्यता नीले रंग का प्रयोग करते हुए सजाया जाता है| इसके बाद बहन सुभद्रा का रथ होता है जिसकी उंचाई 43 फुट होती है| इस रथ को मुख्यत काले रंग का प्रयोग करते हुए सजाया जाता है| इस रथ को सुबह से ही सारे नगर के मुख्य मार्गों पर घुमा दिया जाता है और रथ मंद गति से आगे बढता है| सायंकाल में यह रथ मंदिर में पहुंचता है और मूर्तियों को मंदिर में ले जाया जाता है| यात्रा के दूसरे दिन तीनों मूर्तियों को सात दिन तक यही मंदिर में रखा जाता है और सातों दिन इन मूर्तियों का दर्शन करने के लिए श्रद्वालुओं का भीड़ इस मंदिर में लगी रहती है| कडी धूप में भी श्रद्वालु लाखों की संख्या में मंदिर में दर्शन के लिये आते है| प्रतिदिन भगवान को भोग लगने के बाद प्रसाद के रुप में गोपाल भोग सभी भक्तों में बाँटा जाता है| सात दिनों के बाद यात्रा की वापसी होती है और इस रथ यात्रा को बडी बडी रस्सियों से खींचते हुए ले जाया जाता है| यात्रा की वापसी भगवान जगन्नाथ की अपनी जन्म भूमि से वापसी कहलाती है, इसे बाहुडा भी कहा जाता है| इस रस्सी को खिंचने या हाथ लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है|
जगन्नाथ मंदिर की कुछ खास बातें :
1. हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु जी के 8 वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है।
2. पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ भी कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए थे और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथ जी की सारी रीतियां करते हैं।
3. पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान राम का रूप माना गया है। सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा होती है।
4. स्कंद पुराण में पुरी धाम का भौगोलिक वर्णन मिलता भी है। स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है और यह 5 कोस यानी 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। माना जाता है कि इसका लगभग 2 कोस क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में डूब चुका है। इसका उदर है समुद्र की सुनहरी रेत जिसे महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है। सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा महादेव करते है|
5. इस मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वन पर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।
6. वर्तमान में जो मंदिर है वह 7 वीं सदी में बनवाया गया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यह मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसको दोबारा बनवाया था। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर भी हैं।
7. श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। प्रतिदिन सायंकाल में मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मनुष्या द्वारा उल्टा चढ़कर बदल दिया जाता है| ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
8. यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय दिखाई नहीं देती है।
9. पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्ट धातु ( 8 धातु) से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।
10. मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया है। इसके ऊपर से विमान भी नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी भी उड़ते नजर नहीं आते है जबकि ज़्यादातर देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।
11. मंदिर के सिंह द्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप समुंद्र से होने वाली किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते है। आप (मंदिर के बाहर से) थोड़ा बाहर निकले तो तब आप इस ध्वनि को सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।