भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ८ अगस्त १९४२ को आरम्भ किया गया था| अमूमन ९ अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है ,पर ये आंदोलन ८ अगस्त १९४२ से आरंभ हुआ था| ८ अगस्त १९४२ को बंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने वह प्रस्ताव पारित किया था, जिसे 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव कहा गया|सन् १८८५ से राष्ट्रीय काँग्रेस अनेक प्रस्ताव स्वीकार किये थे और ऐसा भी नहीं था कि इन प्रस्तावों के कोई परिणाम नहीं निकलते थे। लेकिन 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव था जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक विशिष्ट मोड़ दिया क्योकि ये आंदोलन व्यापक स्तर पर आरंभ किया गया था|
इस साल भारत छोड़ो आंदोलन या क्विट इंडिया मूवमेंट को 76 साल पूरे हो जायेंगे | ये देश का ऐसा आंदोलन था, जिसने अंग्रेजों को देश छोड़ने को मजबूर कर दिया था| इस आंदोलन का लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। इस आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक विशिष्ट मोड़ दिया था|
भारत छोड़ो आंदोलन भले ही मुंबई के ऐतिहासिक अगस्त क्रांति मैदान से आठ अगस्त को शुरू हुआ था पर इस संबंध में पहला प्रस्ताव 14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पारित हुआ था लेकिन इस प्रस्ताव के विरोध में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 8 अगस्त सन 1942 को महत्मा गांधी जी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में शुरु हुआ यह आंदोलन सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था| इस आंदोलन की खास बात ये थी कि इसमें पूरा देश शामिल हुआ| ये ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाकर रख दी थीं| इस प्रस्ताव ने तो जैसे सारा राजनीतिक माहौल ही बदल डाला। सारे देश में एक अभूतपूर्व उत्साह की लहर दौड़ गई। लेकिन उस उत्साह को राष्ट्रीय विस्फोट में बदल दिया उस रात राष्ट्र के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी ने। तत्कालीन गोरी सरकार के इस कदम की जो तीव्र प्रतिक्रियाएँ हुई, वह सचमुच अभूतपूर्व थी।
पंडित नेहरू और मौलाना आजाद भी इस आंदोलन को लेकर सशंकित थे लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे कांग्रेसी नेता इसका समर्थन कर रहे थे और जयप्रकाश नारायण तथा अशोक मेहता जैसे समाजवादियों ने भी इसका समर्थन किया था। मुस्लिम लीग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कम्युनिस्ट पार्टी और हिन्दू महासभा ने आंदोलन का विरोध किया था। अरुणा आसफ अली ने नौ अगस्त को कांग्रेस अधिवेशन में झंडा फहराया था।
वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति ने ही अंग्रेजो भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया था लेकिन इसके बाद आठ अगस्त़ 1942 को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक में कार्यसमिति ने इस प्रस्ताव को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया था। इस ऐतिहासिक सम्मेलन में महात्मा गांधी ने करीब 70 मिनट तक भाषण दिया था| नौ अगस्त की सुबह इस आंदोलन की शुरूआत होते ही कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेजों ने इस कार्रवाई को ऑपरेशन ‘जीरो आवर’ का नाम दिया था। गांधी जी पुणे के आगा खां महल में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा गिरफ्तार किए गए जबकि कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यो को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया।
इस आंदोलन में समाजवादियों ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी और जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, यूसुफ मेहर अली, अच्युत पटवर्धन, एस एम जोशी और रामवृक्ष बेनपुरी जैसे नेताओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इसके साथ ही मुम्बई, अहमदाबाद और दूसरे शहरों में मजदूरों ने विशाल हड़ताल की थी और बलिया, बस्ती, सतारा, मिदनापुर और बिहार के कुछ हिस्सों में समानान्तर सरकारें भी स्थापित की गयीं। देखते-देखते इस आंदोलन की ङ्क्षचगारी पूरे देश में फैल गई और हजारों लोग जेल में बंद कर दिए गए तथा कई लोग पुलिस दमन और अत्याचार के शिकार हुए।
महात्मा गांधी जी ने अपने करीब 70 मिनट के भाषण में कहा था मैं आपको मंत्र देता हूं- करो या मरो, जिसका अर्थ था-भारत की जनता देश की आजादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करेगी| पट्टाभि सीतारमैया के अनुसार वास्तव में गांधी जी उस दिन पैगम्बर और ईश्वर के अवतार की प्रेरक शक्ति से प्रेरणा लेकर भाषण दे रहे थे और कह रहे थे, जो लोग कुर्बानी देना नहीं जानते, वे आजादी प्राप्त नहीं कर सकते।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, क्विट इंडिया या भारत छोड़ो आंदोलन के स्लोगन को लिखने का श्रेय कांग्रेस नेता यूसुफ मेहराली को जाता है|कहा जाता है कि वे महत्मा गांधी जी के काफी करीब थे और उन्होंने इस मूवमेंट को आरंभ करने से कुछ समय पूर्व ही महात्मा गांधी जी से मुलाकात कर उन्हें इस स्लोगन का सुझाव दिया था. उस समय यूसुफ बांबे के मेयर थे| स्वतंत्रता संग्राम में वे 8 बार जेल गए थे|
लेकिन जैसे ही इस आंदोलन की शुरूआत हुई, 9 अगस्त 1942 को दिन होने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था| सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गए थे और 1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दे दी थी लेकिन लोग ब्रिटिश शासन के प्रतीकों के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर निकल पड़े और उन्होंने सरकारी इमारतों पर कांग्रेस के झंडे फहराने शुरू कर दिये। लोगों ने गिरफ्तारियां देना और सामान्य सरकारी कामकाज में व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया। विद्यार्थी और कामगार हड़ताल पर चले गये। बंगाल के किसानों ने करों में बढ़ोतरी के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने भी काम करना बंद कर दिया, यह एक ऐतिहासिक क्षण था।
भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली थी लेकिन इस आंदोलन ने 1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया। युद्ध के अंत में, ब्रिटिश सरकार ने संकेत दे दिया था कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। इस समय गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,000 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
सन् 1857 के पश्चात देश की आजादी के लिए चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में सन् 1942 का 'भारत छोड़ो आंदेालन' सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन साबित हुआ। जिसके कारण भारत में ब्रिटिश राज की नींव पूरी तरह से हिल गई थी। आंदोलन का ऐलान करते वक़्त महत्मा गांधी जी ने कहा था मैंने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया। यह जो लड़ाई छिड़ रही है वह एक सामूहिक लड़ाई है। सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत के इतिहास में 'अगस्त क्रांति' के नाम से भी जाना जाता रहा।