मुंबई को पहले बॉम्बे के नाम से जाना जाता था। मुंबई को बिजनेस केपिटल ऑफ इंडिया या भारत की आर्थिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी जनसंख्या लगभग 3 करोड़ 29 लाख है तथा यह देश की सर्वाधिक आबादी वाला शहर है। भारत का सबसे बड़ा शेयर बाज़ार, जिसका विश्व में तीसरा स्थान है, मुंबई में ही स्थित है|
आज की कॉस्मोपोलिटन सिटी मुंबई सदियों पहले 7 टापूओं को मिलाकर बनाई गई थी। कभी कोली मछुआरों की बस्ती होने वाली मुंबई आज अरबपति खरबपति लोगो का बसेरा बन चुकी है। ब्रिटिश राज में इस शहर को बॉम्बे और बंबई जैसे नामों से पुकारा गया। लेकिन 90 के दशक में इस शहर का नाम बदलकर सदियों पुराने मुंबा देवी माता के मंदिर के नाम पर रखा गया। मुंबा यानि माता इसी से बना है- मुंबई यानि ममतामयी।
गेट वे ऑफ़ इंडिया :
गेटवे ऑफ इंडिया को 2 दिसम्बर, 1911 को भारत में सम्राट जॉर्ज पंचम व महारानी मैरी के आगमन पर स्वागत हेतु बनाया गया था, जो कि 4 दिसम्बर, 1924 को पूरा हुआ| गेटवे ऑफ इंडिया को स्कॉटिश वास्तुकार जॉर्ज विट्टेट द्वारा डिजाइन किया गया था और निर्माण कार्य गैमन इंडिया लिमिटेड द्वारा किया गया था । इस स्मारक की प्रभावशाली संरचना भारतीय, अरबी और पश्चिमी वास्तुकला का एक सुंदर संगम है। इसकी उंचाई 26 मीटर यानि 85 फीट है और इसमें 4 मीनारें हैं। देश और दुनिया से आनेवाले सैलानियों के लिए ये एक आकर्षण का केन्द्र है। शाम के वक्त गेटवे ऑफ़ इंडिया का नज़ारा देखते ही बनता है। यह इमारत अरब सागर के समुद्री मार्ग से आने वाले जहाजों आदि के लिए भारत का द्वार कहलाता है। यह देश के प्रमुख शूटिंग स्थानों में से एक है। गेट वे ऑफ़ इंडिया के पास ही होटल ताज है, जो एक दर्शनीय स्थल से कम नहीं है | होटल ताज का निर्माण 1902 में जमशेद टाटा से कराया था। इस स्मारक के विपरीत में छत्रपति शिवाजी की एक प्रतिमा का उद्घाटन 26 जनवरी 1961 को मराठा गौरव और महिमा के प्रतीक के रूप में किया गया था।
हाजी अली दरगाह
हाजी अली दरगाह महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में स्थित एक मशहूर मस्जिद एवं दरगाह है। यह प्रसिद्ध दरगाह अरब सागर के तट पर बने 'महालक्ष्मी मंदिर' के समीप स्थित है। अरब सागर के बीच 19वीं सदी के पूर्वाद्ध में बनी मुंबई की यह प्रसिद्ध दरगाह जमीन से 500 गज दूर समुद्र में स्थित है। यह दरगाह मुंबई के वर्ली तट के निकट स्थित एक छोटे-से टापू पर स्थित है। मुख्य भूमि से यह टापू एक कंक्रीट के जलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। यह दरगाह मुस्लिम और हिन्दू ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी समान रूप से आस्था और विश्वास का केंद्र है। दरगाह तक पहुँचने के लिए एक छोटा-सा पगडंडीनुमा रास्ता है, जिसके माध्यम से दरगाह तक तभी पहुँचा जा सकता है, जब समुद्र में ज्वार न हो, अन्यथा रास्ता पानी में डूब जाता है। रात्रि में दूर से देखने पर हाजी अली दरगाह का नज़ारा इतना दिलकश होता है, जैसे दरगाह और मस्जिद का गुम्बद समुद्र की लहरों पर तैर रहे हों। दरगाह के अंदर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की क़ब्र है। दरगाह को हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन 1431 में बनाया गया था। यह दरगाह इस्लामी स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है। सैयद पीर हाजी अली तत्कालीन फ़ारस साम्राज्य बुखारा नामक स्थान के निवासी थे। वे 15वीं शताब्दी में दुनिया घूमने के बाद मुंबई आकर बस गये थे। कहा जाता है कि हाजी अली शाह बुखारी मक्का जाते समय यहाँ डूब गये थे। इसीलिए इस जगह पर मस्जिद एवं दरगाह बनवा दी गई थी। हाजी अली शाह मस्जिद 4500 मीटर के क्षेत्र में बनी हुई है। शायद दुनिया में यह अपनी तरह का एकमात्र धर्म स्थल है, जहाँ एक दरगाह और एक मस्जिद समुद्र के बीच में टापू पर स्थित है और जहाँ एक ही समय पर हज़ारों श्रद्धालु एक साथ धर्मलाभ ले सकते हैं। प्रत्येक शुक्रवार को यहाँ सूफ़ी संगीत व कव्वाली की महफिल सजती है। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को यहाँ सभी धर्मों के लगभग पचास हज़ार से ज़्यादा लोग दुआ माँगने पहुँचते हैं। समुद्र के अंदर स्थित सफेद संगमरमर की ये दरगाह सदियों से यूँ ही खड़ी है, समुद्र में चाहे कितनी भी हलचल क्यों ना हो दरगाह को आज तक कोई नुकसान नहीं हुआ है। 26 जुलाई 2005 को आयी भयंकर बाढ़ में मुंबई के ज्यादातर हिस्सों में इमारतों को भारी नुकसान हुआ किंतु इस दरगाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। इसी तरह सुनामी के दौरान जब लाखों लोग मारे गये थे तो भी दरगाह जो कि समुद्र के मध्य में स्थित है को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
एलिफेंटा की गुफ़ाएँ
एलिफेंटा की गुफ़ाएँ महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में पौराणिक देवताओं की अत्यन्त भव्य मूर्तियों के लिए विख्यात है। एलीफेंटा की गुफाएं गुफाओं का एक समूह है जो कि एलीफेंटा द्वीप पर स्थित है। ये गुफ़ाएँ मुंबई से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इन गुफाओ को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है| महायोगी, नटेश्वर, भैरव, पार्वती-परिणय, अर्धनारीश्वर, पार्वतीमान, कैलाशधारी रावण, महेशमूर्ति शिव तथा त्रिमूर्ति यहां के प्रमुख मूर्ति चित्र हैं। इन भव्य मूर्तियों में त्रिमूर्ति शिव की मूर्ति सर्वाधिक लोकप्रिय है। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ मुंबई के पास स्थित पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केन्द्र हैं। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ 7 गुफ़ाओं का सम्मिश्रण हैं| जिनमें से पाँच हिन्दू गुफाये और दूसरे समूह में दो बुद्धिस्ट गुफाये है| हिन्दू गुफाओ में सबसे महत्वपूर्ण है महेश मूर्ति गुफ़ा। एलिफेन्टा के गुहा मन्दिर राष्ट्रकूटों के समय में बने। एलिफेन्टा की पहाड़ी में शैलोत्कीर्ण करके उमा महेश गुहा मन्दिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया। मंदिर के अंदर एक बड़ा हॉल है जिसमें भगवान शिव की नौ मूर्तियों के भाग विभिन्न मुद्राओं को प्रस्तुत करते हैं। इस गुफ़ा में शिल्प कला के कक्षों में अर्धनारीश्वर, कल्याण सुंदर शिव, रावण द्वारा कैलाश पर्वत को ले जाने, अंधकारी मूर्ति और नटराज शिव की उल्लेखनीय छवियाँ दिखाई गई हैं। एलीफेंटा की गुफाएं अपनी अति सुंदर मूर्तियों के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। 6000 वर्ग फीट के क्षेत्रफल में फैली हुई इन गुफाओं में हिन्दू और बौद्ध धर्म की झलक दिखाई देती है।
एलीफेंटा के बारे में लोगों का मानना है कि महाभारत काल में पांडवों ने निवास करने के लिए इस गुफा का निर्माण किया था। पुर्तगालियों को इन गुफाओं में हाथियों की बड़ी-बड़ी मूर्तियां मिली थी जिसके बाद उन्होंने इस स्थान का नाम “एलीफेंटा” रख दिया।