खग्रास चंद्र ग्रहण या फिर पूर्ण चन्द्र ग्रहण कल यानी 27 जुलाई 2018 (शुक्रवार) को लगेगा। यह चन्द्र ग्रहण पूरे भारत में देखा जा सकेगा। भारत के अलावा यह ग्रहण अफ्रीका दक्षिण एशिया ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में भी देखा जा सकता है |इस चंद्र ग्रहण का सबसे सुन्दर नजारा एशिया और अफ्रीका के लोगो को देखने को मिलेगा | यूरोप दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में यह ग्रहण आंशिक रूप से दिखा जा सकेगा| वही नार्थ अमेरिका और अंटार्टिका में यह नहीं दिखाई देगा| चन्द्र ग्रहण की शुरुआत रात में 11 बजकर 54 मिनट पर होगा। ग्रहण का मध्य में 1 बजकर 52 बजे पर होगा तथा ग्रहण का मोक्ष रात में 3. 49 बजे होगा। रात में एक बजे से लेकर रात में 2.43 अवस्था होगा। अतः ग्रहण की पूर्ण अवधि 3 घण्टा 55 मिनट की होगी। जो सदी की सबसे बड़ी चन्द्र ग्रहण होगी।ग्रहण का स्पर्श उत्तराषाढा नक्षत्र एवं मकर राशि का होगा। जबकि मोक्ष श्रवण नक्षत्र एवं मकर राशि पर हो रहा है अतः उत्तराषाढ़ा एवं श्रवण नक्षत्र में जिन लोगो का जन्म हुआ तथा मकर राशि वाले इस ग्रहण को कदापि न देखें। ज्योतिषयों के अनुसार पृथ्वी तत्व राशि मकर में चन्द्र मंगल की युति अर्थात स्थल एवं जल की युति पर राहु की दृष्टि एवं केतु का साथ जलीय क्षति को दर्शाता है। अतः ग्रहण के समय चंद्रमा अपने आकर्षक बल से पृथ्वी के जल एवं स्थल दोनों को प्रभावित करेगा। प्रत्येक जन मानस पर अपना प्रभाव स्थापित करेगा। ग्रहण शुरुआत के समय मेष लग्न का उदय होगा। मेष लग्न का स्वामी ग्रह मकर राशि मे उच्च का होकर अपनी वक्र गति से संचरण करेंगे। साथ ही मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि भी अपनी वक्री गति से से संचरण करेंगे ऐसे में पृथ्वी राशि मकर के स्वामी ग्रह शनि धनु राशि मे तथा स्वयं पृथ्वी कारक ग्रह मंगल का वक्री होकर जल कारक ग्रह चन्द्र एवं केतु के साथ राहु से दृष्ट होकर विद्यमान होना स्थलीय जलीय क्षेत्र के लिए क्षति कारक सिद्ध हो सकता है।
अतः भू भाग पर जल वृष्टि से, भूस्खलनभूकंप, आग से क्षति ,बिजली गिरने से तथा बदल फटने से सामूहिक क्षति की भी सम्भावना बन सकती है। राहु से प्रभावित सूर्य बुध एवं दृष्टि प्रभावित चन्द्र मंगल देश मे आंतरिक अशांति को जन्म दे सकता है। ग्रहण के दो सप्ताह तक सरकारी अधिकारियों पर आक्षेप सरकार के प्रति जनाक्रोश सरकार सरकार की नीतिओ का विरोध आम जन मानस को ऐसा प्रतीत होगा कि सरकार तथा सरकारी कर्मचारी उनके विरूद्ध कार्य कर रहे है। महिलाओं ,बच्चियों के साथ गलत आचरणों, दुष्कर्मो में वृद्धि हो सकती है अतः बच्चियों, महिलाओ की सुरक्षा का विशेष ध्यान दिया जाना होगा। देश मे आन्तरिक शत्रुओं की वृद्धि तथा सरकारी तथा गैर सरकारी घोटाले भी उजागर हो सकते है। लोक सेवा आयोग की सीबीआई जाँच में वृद्धि दिखा, कुछ लोगो के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जा सकती है।
खग्रास चन्द्र ग्रहण : सूतक काल में किए जाने वाले कार्य सूतक के समय तथा ग्रहण के समय दान तथा जापादि का महत्व माना गया है। पवित्र नदियों अथवा तालाबों में स्नान किया जाता है, मंत्र जाप किया जाता है तथा इस समय में मंत्र सिद्धि का भी महत्व है। तीर्थ स्नान, हवन तथा ध्यानादि शुभ काम इस समय में किए जाने पर शुभ तथा कल्याणकारी सिद्ध होते हैं। धर्म-कर्म से जुड़े ,लोगों को अपनी राशि अनुसार अथवा किसी योग्य ब्राह्मण के परामर्श से दान की जाने वाली वस्तुओं को इकठ्ठा कर संकल्प के साथ उन वस्तुओं को योग्य व्यक्ति को दे देना चाहिए।सूतक के समय और और ग्रहण के समय भगवान की मूर्ति को स्पर्श करना निषिद्ध माना गया है, खाना-पीना ,सोना, नाखून काटना,भोजन बनाना, तेल लगाना आदि कार्य भी इस समय वर्जित हैं। इस समय झूठ बोलना छल-कपट बेकार का वार्तालाप और मूत्र विसर्जन से परहेज करना चाहिए । सूतक काल में बच्चे बूढ़े अस्वस्थ स्त्री आदि को उचित भोजन लेने में कोई परहेज नहीं हैं। सूतक आरंभ होने से पहले ही अचार, मुरब्बा ,दूध, दही अथवा अन्य खाद्य पदार्थों में कुशा तृण डाल देना चाहिए जिससे ये खाद्य पदार्थ ग्रहण से दूषित नहीं होगें। अगर कुशा नहीं है तो तुलसी का तो तुलसी का पत्ता भी डाल सकते हैं । घर में जो सूखे खाद्य पदार्थ हैं उनमें कुशा अथवा तुलसी पत्ता डालना आवश्यक नहीं है।
चंद्रग्रहण की अवधि का निर्धारण दो बातों के आधार पर होता है। सूरज, चंद्रमा और धरती के केंद्र का एक सीधी रेखा में होना और ग्रहण के समय पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी के आधार पर चंद्रगहण की अवधि का आकलन होता है। इस बार इन तीनों खगोलीय पिंडों के केंद्र लगभग एक सीधी रेखा में होंगे और चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी अपने अधिकतम बिंदु के बेहद करीब होगी। चंद्रमा इस बार पृथ्वी से अपने सबसे दूर मौजूद बिंदु के पास होगा, इसलिए यह छोटा दिखाई पड़ेगा। यही कारण है कि ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया को पार करने में चंद्रमा को इस बार अधिक समय लगेगा और चंद्र ग्रहण लंबे समय तक बना रहेगा।
भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट (476 -550 ईसवीं) ने ग्रहण से संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत पेश किए। उन्होंने इस बात को सिद्ध किया कि जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आती है तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने से चंद्रग्रहण होता है। इसी तरह सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा के आने पर चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है।
यही वजह है कि चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन ही होता है, जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी की दो विपरीत दिशाओं में होते हैं। वहीं, सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन होता है, जब सूर्य एवं चंद्रमा पृथ्वी की एक ही दिशा में स्थित होते हैं।
ग्रहण वास्तव में छाया के खेल से अधिक कुछ नहीं है और इससे किसी तरह की रहस्यमयी किरणों का उत्सर्जन नहीं होता। चंद्रग्रहण को देखना पूरी तरह सुरक्षित है और इसके लिए किसी खास उपकरण की आवश्यकता भी नहीं होती। हालांकि, सूर्यग्रहण को देखते वक्त थोड़ी सावधानी जरूर बरतनी चाहिए क्योंकि सूर्य की चमक अत्यधिक तेज होती है।
सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के ठोस हिस्से से गुजर नहीं पाता है, लेकिन पृथ्वी को ढंकने वाले वायुमंडल से न केवल सूर्य की किरणें आर-पार निकल सकती हैं, बल्कि इससे टकराकर ये किरणें चंद्रमा की ओर परावर्तित हो सकती हैं। सूर्य के प्रकाश में उपस्थित अधिकतर नीला रंग पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जिससे आसमान नीला दिखाई देता है। जबकि, लाल रोशनी वायुमंडल में बिखर नहीं पाती और पृथ्वी के वातावरण से छनकर चंद्रमा तक पहुंच जाती है, जिससे चंद्रमा लाल दिखाई पड़ता है। इस बार सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के केंद्र पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान लगभग सीधी रेखा में होंगे तो सूर्य के प्रकाश की न्यूनतम मात्रा वायुमंडल से छनकर निकल पाएगी, जिससे चंद्रमा पर अंधेरा दिखाई पड़ेगा। इस बार चंद्रग्रहण के दिन पृथ्वी के उपछाया क्षेत्र में रात के करीब 10.53 बजे चंद्रमा के प्रवेश को देखा नहीं जा सकेगा। चंद्रमा का अधिकतर हिस्सा जैसे-जैसे उपछाया क्षेत्र से ढकता जाएगा तो इसकी कम होती चमक को स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा। करीब 11. 54 बजे चंद्रमा प्रतिछाया क्षेत्र में प्रवेश करेगा। उस वक्त पूर्णिमा के चांद पर धीरे-धीरे गहराते अंधेरे को देखना बेहद रोचक होगा।
एक वर्ष के भीतर होने वाले ग्रहणों में चार सूर्यग्रहण और तीन चंद्रग्रहण या फिर पांच सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण का संयोजन हो सकता है। अगर एक वर्ष में सिर्फ दो ही ग्रहण होते हैं तो वे दोनों सूर्यग्रहण होते हैं।