लद्दाख हिमालयी दर्रों की धरती है। यह बहुत खूबसूरत दर्शनीय स्थल है। उत्तर में कराकोरम पर्वत से और दक्षिण में हिमालय पर्वत से घिरे इस क्षेत्र की आबादी बहुत कम है। चारों ओर बर्फ से ढके इस सर्वोच्च ठंडे रेगिस्तान को दुनिया की छत भी कहा जाता है। क्योंकि इसके पूर्व में तिब्बत के पठार हैं तो उत्तर में मध्य एशिया, पश्चिम में कश्मीर है तो दक्षिण में लाहौल स्पीति की घाटियां हैं। इसलिए इसे मिनी तिब्बत भी कहा जाता है।
लद्दाख की एक ओर हैरान कर देने वाली विशेषता यह है कि यहां कभी बारिश नहीं होती। लद्दाख में लेह और कारगिल दो ही शहर हैं। कारगिल में इसकी ऊंचाई 9000 फीट और कराकोरम में 2500 फीट है। यहां मशहूर पैन्गोंग झील है, जो लेह से करीब 5 घंटे की ड्राइव जितनी दूरी पर है। करीब डेढ़ सौ किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस झील का आधा हिस्सा चीन में है। इस के स्वच्छ जल में हिमालय की बर्फ से आच्छादित ऊंची सफेद चोटियों का प्रतिबिंब दिखाई देता है।
लेह-लद्दाख बौद्ध संस्कृति की जीती जागती मिसाल है। यहां के लोग बौद्ध परंपराओं का पालन करते हैं। लेह सिटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर ढाई सौ एकड़ क्षेत्र में फैले महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर है। जिसके संस्थापक आदरणीय भिक्खू संघसेना लद्दाख के विकास एवं दुनिया को आध्यात्मिकता का संदेश देने को प्रयासरत हैं।
लेह लद्दाख के दर्शनीय स्थल:
लेह महल :पहाड़ की चोटी पर बना यह महल ल्हासा के प्रसिद्ध पोटाला महल का लघु-संस्करण माना जाता है। इस महल को राजा सिंग्मे नामग्याल ने 17 वीं शताब्दी में बनवाया था।
यह महल नौ मंजिलों का है। इस महल से जुड़े कई मंदिर भी हैं जो आमतौर पर बंद रहते हैं।
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लेह मस्जिदल : इस मस्जिद को देलदन नामग्याल अपनी माँ की याद में बनवाया था जो मुस्लिम थीं। यह मस्जिद 17 वीं शताब्दी की कलात्मक शैली का बेजोड़ नमूना है।
स्टॉक पैलेस म्यूज़ियम: स्टोक पैलेस राजा सेस्पाल तोंडुप नामग्याल द्वारा 1825 में निर्मित किया गया था। इस म्यूज़ियम में पुराने सिक्के ,शाही मुकुट ,शाही परिधान व अन्य शाही वस्तुएँ, लद्दाख के चित्र आदि आप देख सकते हैं।
शंकर गोंपा: शंकर गोम्पा को शंकर मठ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ ग्यालवा चोंकवा महात्मा बुद्ध व चंडाजिक की मूर्तियां आप देख सकते हैं। इस जगह की दीवारों और दरवाजों को, मंडलों ,बौद्ध भिक्षुओं के लिय तय नियम क़ानून और तिब्बतन कैलेंडर से पूरी भव्यता के साथ चित्रित किया गया है।
काली मंदिर: स्पितुक मठ जम्मू कश्मीर के लद्दाख में स्थित है। इसे स्पितुक गोम्पा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ माँ काली के साथ देवता 'जिगजित' की मूर्ति स्थापित है।
लद्दाख शांति स्तूप :शांति स्तूप, जम्मू एवं कश्मीर में लेह के चंग्स्पा के कृषि उपनगर के ऊपर स्थित है जिसका निर्माण शांति संप्रदाय के जापानी बौद्धों ने कराया था। यहाँ महात्मा बुद्ध की अनुपम प्रतिमा स्थापित है।
गुरुद्वारा पत्थर साहब: गुरुद्वारा पत्थर साहब लेह के आकर्षक दर्शनीय स्थलों में से एक है जहाँ पर्यटकों की भीड़ उमड़ी रहती है। यहाँ एक शीला पर मानव आकृति उभरी हुई है। ऐसा माना जाता है कि यह आकृति सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी की है।
कारगिल :लद्दाख का दूसरा सबसे बड़ा क़स्बा कारगिल है। कारगिल को अगास की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। कारगिल अपने मठों, खूबसूरत घाटियों और छोटे टाउन के लिए लोकप्रिय है। इस स्थान पर पर कुछ महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण और बौद्ध धर्म के धार्मिक केंद्र जैसे सनी मठ, मुलबेख मठ और शरगोल मठ स्थित हैं।
लद्दाख ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध हैं और लद्दाख में ट्रेकिंग के कई स्थल है| जिनमे से कुछ प्रमुख है:
शाम घाटी ट्रेक: शाम घाटी ट्रेक को लद्दाख में ‘बेबी ट्रेक’ भी कहा जाता है क्योंकि इसका कोई भी रास्ता ४ हजार मीटर से ऊंचा नहीं है। यहाँ ट्रेक उन लोगों के लिए भी अच्छा है जिनके पास समय कम है और जो पहली बार ट्रेकिंग कर रहे हैं। इसका रास्ता देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित हेमिस शकपचान गांव से होकर निकलता है। शाम घाटी का पूरा रास्ता करगिल और लेह के बीच स्थित रोड के ऊत्तर के हिस्से को काटता हुआ निकलता है। ट्रेक के बीच में लामायुरु मठ भी पड़ता है।
लामायुरु से अलची: प्राचीन मठ के इस रास्ते पे लद्दाख की तीन सबसे पुराने मठ देखने को मिलेंते है । लामायुरु से अलची तक 5- 6 दिन लंबा रास्ता काफी मुश्किल है तेज हवाओं के बीच ऊंचाई पर स्थित रास्तों और अलग-थलग पड़े गांवों के बीच से गुजरते है । जो तीन मठ आपको रास्ते में पड़ते है उसमे पहला है वनला कम प्रसिद्ध मठ समदा चेनमो और सबसे प्रसिद्ध अलची शामिल हैं। इन सभी मठों का निर्माण 11वीं सदी में कथित तौर पर रिनचेन जेंगपो ने करवाया था। यह ट्रेक कई जगह 5 हजार ऊंचे रास्तों से होकर गुजरता है इसलिए अपने साथ एक अनुभवी गाइड, टट्टू और अगर आप अपना रास्ता भूल जाएं तो इसका भी पहले से इंतजाम करने की सलाह दी जाती है।
चादर ट्रेक :यहाँ ट्रेक सर्दियों में लद्दाख का सबसे बड़ा आकर्षण होता है जमी हुई नदी पर चलना जिसे चादर ट्रेक कहते हैं। सर्दियों में जंस्कार नदी का पानी जम जाता है। जिससे बर्फ की एक मोटी परत पर चल सकते हैं स्थानीय लोग इसे चादर कहते हैं।
जंस्कार जाने की अधिकतर सड़के बंद रहती है इसलिए चादर ट्रेक किसी भी स्थान पर पहुंचने का एकमात्र जरिया है। स्थानीय लोग इस जमी हुई नदी पर काफी पुराने समय से चलते आ रहे हैं। ट्रेक की शुरुआत चिलिंग में सिंधु और जंस्कार नदी के संगम से शुरू होती है। चिलिंग के गांव की खोज नेपाली तांबे के कारीगर ने की थी।
स्टॉक कांगड़ी ट्रेक: इस ट्रेक को शुरु करने के कई रास्ते हैं इसे रुमबक, माथो या स्टॉक से शुरू किया जा सकता है। स्टॉक गांव के अंत से इस ट्रेक की शुरुआत होती है। स्टॉक लद्दाख के शाही परिवार का घर भी है। लेह के अधिकतर हिस्सो से दिखने वाला स्टॉक कांगड़ी (समुद्र तल से ऊंचाई 6129 मीटर) दुनिया का सबसे आसानी से पहुंची जा सकने वाली चोटी है। ट्रेक की शुरुआत में 4890 मीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई है। स्टॉक कांगड़ी तक सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए ट्रेकर का फिट रहना और अपने आप को मौसम के अनुरुप ढालना सबसे जरूरी है।
लद्दाख के त्योहार गाल्डन नमछोट, बुद्ध पूर्णिमा, दोसमोचे और लोसर नामक त्यौहार पूरे लद्दाख में बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते है और इस दौरान यहाँ पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। दोसमोचे नामक त्यौहार दो दिनों तक चलता है जिसमें बौद्ध भिक्षु नृत्य करते हैं ,प्रार्थनाएँ करते हैं और क्षेत्र से दुर्भाग्य और बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए अनुष्ठान करते हैं।
तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है ‘साका दावा’ जिसमें गौतम बुद्ध का जन्मदिन, बुद्धत्व और उनके नश्वर शरीर के ख़त्म होने का जश्न मनाया जाता है। इसे तिब्बती कैलेंडर के चौथे महीने में, सामान्यतः मई या जून में मनाया जाता है जो पूरे एक महीने तक चलता है।