मैसूर, कर्नाटक के खूबसूरत शहर में से एक है। यहाँ कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। इस शहर की सीमा मुंबई, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल राज्यों से घिरी हुई है। मैसूर को कर्नाटक की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है, मैसूर कन्नड़ संगीत व नृत्य का प्रमुख केंद्र है।
प्राचीनतम शासक कदम्ब वंश के शासक मैसूर के प्राचीनतम शासक थे | 12 वीं शताब्दी में मैसूर का शासन कदम्बों के हाथों से होयसलों के हाथों में आया और बाद में होयसल राजा रायचन्द्र से अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने इसे उन से छीन लिया|18 वीं शताब्दी में मैसूर पर मुस्लिम शासक हैदर अली का शासन रहा तथा उसके बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने मैसूर पर शासन किया| टीपू सुल्तान मैसूर का एक शक्तिशाली शासक था। टीपू की मौत के बाद सारा राज्य अंग्रेज़ों के हाथ आ गया। टीपू सुल्तान की तलवार अंग्रेज अपने साथ ब्रिटेन ले गए थे|
मैसूर महल: इसे अंबा विलास महल भी कहा जाता है| मैसूर में कई ऐतिहासिक महल है, जिनमें मैसूर महल सबसे प्रसिद्ध है। मैसूर महल का निर्माण महाराजा राजर्षि महामहिम कृष्णराजेंद्र वाडियार चतुर्थ ने करवाया था | यह वाडियार का सरकारी निवास है। वाडियार मैसूर का पूर्व शाही परिवार है। इस महल में दो दरबार हॉल्स हैं। यहां शाही अदालत की बैठकें लगती थीं। इस महल को ओरिएंटल, रोमन ,द्रविडियन और इंडो-सारासेनिक शैली के वास्तुशिल्प को मिला के बनाया गया है| मैसूर महल की मौजूदा इमारत से पहले यह महल चंदन की लकड़ी से बना था। 1897 में राजकुमारी जयालक्षमणि की शादी के दौरान चंदन की लकड़ी से बना महल आग लगने की वजह से जल गया था । जिसके बाद महाराजा कृष्णराजेंद्र वाडियार चतुर्थ ने ब्रिटिश आर्किटेक्ट हेनरी इरविंग को फिर पैलेस बनने की काम सौंपा था। इसे बनाने में 15 सालों का लंबा समय लगा था यह सन् 1912 में बनकर तैयार हुआ था। इस महल में एक बड़ा सा दुर्ग है जिसके गुंबद सोने के पत्थरो से सजे हैं। इस महल में १९वीं और आरंभिक २०वीं सदी की गुड़ियों का संग्रह भी है। इस जगह को गुड़िया घर कहा जाता है तथा इस गुड़िया घर क सामने सात तोपें रखी हैं। इन्हें तोपों को हर साल दशहरा के आरंभ और समापन के अवसर पर दागा जाता है। मैसूर का दशहरा पुरे भारत में प्रसिद्ध है। मैसूर महल में भी 14 मंदिर भी हैं| इस पैलेस देखने के लिए हर साल यहां करीब 27 लाख पर्यटक आते हैं।
मैसूर से जुडी और खबरें यहाँ पढ़े :
जगनमोहन पैलेस: यह एक पुराना राजमहल है। इस महल का निर्माण महाराज कृष्णराज वाडियर ने सन 1861 में करवाया था। परन्तु 1915 में इसे श्री जयचमाराजेंद्र संग्रहालय और आर्ट गैलरी के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इस संग्रहालय में प्राचीन वाद्य यंत्र, टीपू सुल्तान और हैदर अली की तलवारे और शिवाजी का बघनखा मुख्य रूप से दर्शनीय है। फ्रांस से लाई गई एक संगीत घडी भी यह आकर्षण का केंद्र है।
वृंदावन गार्डन :
मैसूर का वृंदावन गार्डन शहर से 19 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ वन कावेरी नदी के पास स्थित है इसे कृष्णराज सागर बांध के नीचे बनाया गया है|
यह गार्डन कृष्णा राजा वोइयार की स्मृति में बनवाया गया था। यह खुबसूरत गार्डन 4.5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस गार्डन की नींव 1927 में रखी गयी थी और इसका निर्माण कार्य 1932 में पूरा हुआ था।
श्री रंग पटना:
मैसूर से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित श्रीरंगपटना एक शानदार शहर है| जो कि कावेरी नदी से घिरा है| इस शहर का नाम रंगनाथस्वामी मंदिर के नाम पर रखा गया है| इस मंदिर को 9वी शदी में गंगा राजवंश द्वारा बनाया गया था | श्रीरंगपटना दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण वैष्णव तीर्थस्थलों में से एक है| एक समय में यहाँ टीपू सुल्तान की राजधानी हुआ करता था। यहा टीपू सुल्तान और हैदर अली के मकबरे भी है।
बांदीपुर नेशनल पार्क:
मैसूर के महाराजा ने 1931 में इस पार्क की स्थापना की थी जो तत्कालीन समय में 90 वर्ग किलोमीटर में फैला था। इससे पहले 1941 तक इस पार्क का नाम वेनुगोपाला वन्यजीवन उद्यान था जो उस क्षेत्र के प्रमुख देवता के नाम पर आधारित था। जानवरों के साथ साथ यहाँ कुछ दुर्लभ प्रजाति के पक्षी भी पाए जाते हैं|
चामुंडी पहाड़ी और चामुंडेश्वरी मंदिर : समुद्र तल से 1062 मीटर ऊंची चामुडीं पहाडी पर बना है | चामुंडेश्वरी मंदिर तक पहुंचने के लिए एक हजार सीढिया चढनी पड़ती है। इस मंदिर का निर्माण 12 वी सदी में हुआ है इस मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा है। कहा जाता है की इस प्रतिमा के नाम पर ही इस शहर का नाम मैसूर पडा है। चामुंडेश्वरी मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है।
सेंट फिलोमेना चर्च: सेंट फिलोमेना चर्च का निर्माण सन 1956 में किया गया था और यह देश के प्रमुख चर्च में से एक है। इसके डिजाइन की अवधारणा जर्मनी के कोलोन चर्च से ली गई है। इसे नियो गोथिक शैली में बनाया गया है।
के आर एस बांध: के आर एस बांध (कृष्णराज सागर बाँध) को 1932 में बनाया गया था। इस बाँध की लंबाई 8600 फीट, ऊँचाई 130 फीट और क्षेत्रफल 130 वर्ग किलोमीटर है।
रेलवे संग्रहालय: दिल्ली के बाद मैसूर में सबसे बड़ा रेलवे संग्रहालय है। दिल्ली में एशिया का सबसे बड़ा रेल म्यूजियम है|
करणजी झील: यह झील ,कर्नाटक की सबसे बड़ी झील है। झील का मुख्य आकर्षण भारत की सबसे बड़ा पक्षीखाना है| जहाँ पक्षियों की 70 से अधिक प्रजातियां हैं।
सोमनाथपुरम मंदिर: मैसूर से 25 किलोमीटर की दूरी पर शिवाना समुद्र झरने के पास सोमनाथपुरम मंदिर है।
मैसूर में मनाया जाने वाला का दशहरा सिर्फ़ भारत ही नही, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहाँ 10 दिनों तक बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं| दशहरा के दिन मैसूर की सड़कों पर जुलूस निकलता है| इस जुलूस में सजे-धजे हाथी के ऊपर चिन्नदा सिंहासन में चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति रखी जाती है| आम लोगों को चिन्नदा सिंहासन के दर्शन की अनुमति मिलती है यह सिंहासन मैसूर का राज परिवार की संपत्ति है, जिसे केवल इस उत्सव के समय प्रदर्शित किया जाता है | इस सिंहासन का वजन 750 किलो है तथा इस में 80 किलो सोना लगा है|
इस जुलूस के साथ म्यूजिक बैंड डांस ग्रुप, आर्मड फोर्सेज, हाथी, घोड़े और ऊंट चलते हैं|यह जुलूस मैसूर महल से शुरू होकर बनीमन्टप पर खत्म होता है| वहां लोग बनी के पेड़ की पूजा करते हैं माना जाता है कि पांडव अपने एक साल के गुप्तवास के दौरान अपने हथियार इस पेड़ के पीछे छुपाते थे और कोई भी युद्ध करने से पहले इस पेड़ की पूजा करते थे| विजयादशमी के पर्व पर मैसूर का राज दरबार आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है।