आपको हमारे लेख का शीर्षक पढ़कर थोड़ा अटपटा सा लगा होगा लेकिन यकीन मानिए यह पूरी तरह से मुमकिन है और सच भी है। चलिए अब आपकी आशंका को हम दूर कर देते है और बताते है कि आखिर यह कैसे संभव हो सकता है? आपने सेरोगेट मदर का नाम तो सुना ही होगा अगर नहीं तो हम इस प्रक्रिया और जानकारी के बारें आज इस लेख में आपको बताएंगे कि ये सेरोगेट मदर क्या है? चलिए जानते है सरोगेट मदर के बारें में विस्तृत रुप में और जानते है इसकी पूरी प्रक्रिया के बारें में-
सरोगेट मदर क्या है?
दुनिया में किसी भी महिलाओं की सबसे सुखद पल उसके मां बनने पर होता है और जब वह किसी बच्चे को जन्म देती है तो यह खुशी दुगुनी हो जाती है। अक्सर कई बार देखा जाता है महिलाओं में गर्भधारण की क्षमता और अन्य कई बीमारियों के कारण वे मां बनने में सक्षम नहीं होती है। ऐसे में उनके पास एक विकल्प होता है कि वे किसी दूसरी स्त्री के कोख में अपने बच्चे को पालें और वहीं जो महिला इस काम को करने के लिए तैयार हो जाती है उसे ही सरोगेट मदर कहा जाता है। इसे प्रक्रिया को "किराए की कोख" की भी संज्ञा दी जाती है क्योंकि यह कॉमर्शियल रुप से भी प्रचलित है। जिसके जरिए सरोगेट मदर को इसके लिए धनराशि प्राप्त होती है।
सरोगेसी के प्रकार
सरोगेसी मुख्यत दो प्रकार की होती है. जिसमें एक को ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरे को जेस्टेशनल सरोगेसी कहा जाता है। इन दोनों ही पद्दतियों के जरिए तकनीकी और मेडिकल सांइस की सहायता से निसंतान दंपति को संतान का सुख दिया जाता है। आइए जानते है इनके बारें में-
1.ट्रेडिशनल सरोगेसी- इसके अंतर्गत संतान का सुख चाहने वाले माता-पिता में से पिता के स्पर्म को सेरोगेट मदर के अंडे के साथ निषेचन कराया जाता है और शुक्राणुओं को सेरोगेट मदर के नेचुरल ओवुलेशन के समय डाला जाता है। इस पद्धति के तहत पैदा होने वाला बच्चें में पिता का जेनेटिक प्रभाव पड़ता है। कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि इस प्रक्रिया से जन्में बच्चें में सरोगेसी मदर के भी जेनेटिक प्रभाव देखने को मिले है।
2.जेस्टेशनल सरोगेसी- इस पद्धति के अनुसार संतान का सुख चाहने वाले दंपति के अंडाणु और शुक्राणु को मिलाकर परखनली के जरिए भ्रूण को सरोगेट मदर के बच्चेदानी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।इस प्रक्रिया के दौरान सरोगेट मदर को ओरल पिल्स दवा दी जाती है ताकि बच्चें के जन्म से पूर्व तक उसके शरीर में अपने अंडाणु नहीं बन पाए। ऐसा करने से होने बच्चें में माता और पिता दोनों के जेनेटिक प्रभाव आता है।
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सेरोगेट मदर बनने के नियम-
सरोगेट मदर बनने वाली महिलाओं की सामाजिक जीवन उतना आसान नहीं होता है लोग उन्हें गलत दृष्टि से देखते है। हालांकि भारत में गरीबी के कारणों सरोगेट मदर बनने के लिए महिलाएं आसानी से मिल जाती है और इसके लिए उन्हें लाखों रुपए मिलते है ताकि वे अपनी जिदंगी को आसान और सुविधापूर्ण बना सकें। इसी कारण से पिछले कुछ सालों से भारत सरोगेसी का केंद्र बन चुका है। गुजरात राज्य में ऐसे कई सरोगेसी अस्पताल है जहां पर इस प्रकार के कार्य होते है। सरोगेट मदर से जुड़े कुछ नियम निम्न प्रकार के है-
1.सरोगेट महिला को ड्रार्मेटी कमरें में रहना अनिवार्य होगा।
2.महिला गर्भावस्था के दौरान सेक्स नहीं कर सकती है।
3.हफ्तें में सिर्फ 1 दिन ही वह अपने परिवार वालों से मिल सकती है।
4.एक महिला 3 बार से अधिक सरोगेट मदर नहीं बन सकती है।
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सरोगेट मदर से जुड़े विवाद
जहां सरोगेसी के जरिए निसंतान दंपति संतान का सुख प्राप्त करते है वहीं इसको लेकर कई सारे विवाद भी देखने को मिलें है ऐसा कई बार देखा गया है जन्म देने के बाद महिला को बच्चें से भावनात्मक लगाव और प्यार हो जाता है वे बच्चे को देने से इंकार करने लगती है। वहीं अक्सर सरोगेट मदर से जन्में बच्चें विकलांग या कोई और बीमारी के साथ जब जन्म लेते है तो यह दंपति बच्चें को अपनाने से मना कर देते है। कई बार जुड़वा बच्चें के पैदा होने पर भी ऐसी ही समस्या उत्पन्न हो जाती है।
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सेरोगेट मदर से जुड़े भारत में कानून
सन् 2012 के बाद से भारत में सरोगेट मदर बनने की चाह महिलाओं में अधिक तेजी से बढ़ी ऐसा इसलिए क्योंकि इससे उन्हें मोटा रकम प्राप्त हो जाता था। वहीं विदेशी जोड़ों को भारत में कम धनराशि खर्च करके ही संतान का सुख मिल जाता था। लेकिन कई विवादास्पद मामलों को देखते हुए भारत में सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2016 लाया गया जो व्यापारिक सरोगेसी को रोकने में और इसके दुरुपयोग में कमी लाएगा। इस बिल के तहत सिर्फ भारतीय निसंतान जोड़ो को ही सरोगेसी के जरिए संतान का सुख मिलेगा। वहीं जिनके बच्चे दिव्यांग और गंभीर बीमारी से पीड़ित है उन्हे भी सरोगेसी के जरिए इसका लाभ मिल सकेगा।
वहीं सरोगेट मदर निसंतान दंपति के करीबी रिश्तेदार हो और उसकी उम्र 26-35 साल के बीच में हो और उसे पहले से एक बच्चा हो। वह महिला जीवन में सिर्फ एक बार ही सरोगेट मदर बन सकेगी। अब देखना यह होगा कि यह बिल भारत को सरोगेसी का केंद्र बनने से और इसके दुरुपयोग पर कितना नियंत्रण लग सकेगा ताकि इसका दुरुपयोग और कॉमर्शियल उपयोग नहीं हो सकें।