*बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-137*
*प्रदत्त शब्द=नब्दा(रौब गाँठना)*
दिनांक-4-11-2023
*संयोजक-राजीव नामदेव मराना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
निज भैया बैरी भऔ,रखौ न रिश्तौ अंश।
मार-मार भानेज सब, नब्दा कसबै कंश।।
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- एस आर सरल, टीकमगढ़
*2*
नब्दा गाँठें सैंत कौ, नइँयाँ बसकौ काम ।
मिर्ची लगवैं आँख में,जोर न पाव छिदाम ।।
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-शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*3*
रामदूत समझा रहे,रावन के दरवार।
है बिगार नब्दा कसें,शरन गए में सार।।
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-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*4*
नब्दा झाडें दीन पे,करें न कौनउ काम।
नेतन की ई सोच सें,है निराश आवाम।।
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-आशा रिछारिया,जिला निवाड़ी
*5*
मालिक और मजूर में ,अलगइ फरक दिखात।
नब्दा पेलत है जबर , लचर गंम्म खा जात ।।
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-आशाराम वर्मा "नादान",पृथ्वीपुरी
*6*
कोरो वे नब्दा धरें, बनकें फिरें दबंग।
उसईं अपई तान कें, देत चुनावी रंग।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
*7*
नब्दा पेलौ दाउ नें, करौ भौत आतंक।
माटी में वैभव मिलौ, लगौ काल कौ डंक।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी
*8*
सास बहू के बीच में,है पैरन की जंग।
रोज सास नब्दा कसै,करै बहू खों तंग।।
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-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा
*9*
नब्दा की आदत बुरी , जलदी लेव सुधार।
ननतर हुइयै बेज्जती ,उर बिगरै ब्यौहार।।
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-वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
*10*
नार दलाकें नार सी, नब्दा कसबै रोज।
साजी सुनें न एक बा, धरो मिटाकें खोज।।
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--प्रदीप खरे, टीकमगढ़
*11*
काम करै नब्दा सहै, भूँकन मरै गरीब।
ऊ समाज कौ मानिऔ,निश्चित पतन करीब।।
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-गोकुल प्रसाद यादव ,नन्हींटेहरी
*12*
हलकन पै नब्दा कसें, बड़े शरम नइँ खात।
देख सरी विरवाइ-सी,लातन कुचरत जात।।
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-रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
*13*
नब्दा कस रव रावना, कात रए हनुमान।
सरनागत हो राम की, बृथाँ काय हैरान।।
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- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
*14*
जब-जब नब्दा पैलतइ , आकै पाकिस्तान |
हरदम खातइ लात है , बनतइ बेईमान ||
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-सुभाष सिंघई , जतारा
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