#बुन्देली_दोहा_प्रतियोगिता--146
##दिनांक-6-1-2024
संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह.
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
गुलगुलात पापा हते , जब बचपन में ऐन ।
लगत गुलगुलो आज लौ , छलक जात हैं नैन ।।
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-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
*2*
बिटिया की ससुरार सैं,पई-पावनें आय।
गद्दा पल्ली गुलगुलो, दीनों सास बिछाय।।
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-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
*3*
हतो गुलगुलौ जोबदन,सियाराम सुकमार ।
भओ वन गमनरामको,झेलत रय सब मार ।।
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-शोभाराम दाँगी , नदनवारा
*4*
गद्दा भारी गुलगुलो, राखें बिछा पलंग।
ओढ़ रजाई गुलगुली, लडे़ं ठंड सें जंग।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
*5*
होत भरोसा गुलगुलो, बगर तनक में जाय।
जोरैं से फिर नइँ जुरत, कित्तउ करौ उपाय।।
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-विद्या चौहान, फरीदाबाद
*6*
सुनकें लग रव गुलगुलौ,भव मंदर तैयार।
गीद रीछ बंदर उतै,कर रय जै जै कार।।
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-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*7* प्रथम स्थान प्राप्त
बिछो गदेला गुलगुलौ,तौउ नींद नइँ आत।
हारो थको किसान सो,डीमन में सो जात।।
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- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
*8*द्वितीय स्थान प्राप्त-
बिछा बिछौना गुलगुलो,भइया भाभी हेत।
खुद पथरा पै बैठकें,पैरौ लक्ष्मन देत।।
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-रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
*9*
खाव गुलगुलौ गुलगुला, भौत मजा आ जाय।
जीखों नइयां है पतौ, देखौ आजइ खाय।।
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- वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
*10*द्वितीय स्थान प्राप्त-
मन तो हौबे गुलगुलो , नीचट रबै शरीर |
प्रभू भजन में मन लगे , रये न कौनउँ पीर ||
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-सुभाष सिंघई , जतारा
*11*
सुरा गुलरियां गुलगुला,कै चीला मिल पाय।
पुआ गुलगुलौ होय तौ,मँगा मँगा कें खाय।।
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-डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा
*12*
राते गव अँधियार में, लगो गुलगुलो मोय।
देवा ने बचाय लये, करिया मा रव सोय।।
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- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा
*13*
चूले येंगर बैठ कैं , राते करी ब्याइ।
हतौ बिछौना गुलगुलौ, सो गय ओड़ रजाइ।।
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-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर,
*14*
तन हैं जिनके गुलगुले, मन देखों बेकार।
गोरन ने हमपे करें, खूबई अत्याचार।।
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-विशाल कड़ा, बडोराघाट
*15*
धरौ गुलगुलौ साँप सौ, बिल्कुल नइँयाँ ह्याव।
यैसे मूसर सें भलाँ, करौ काय खों व्याव।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाडी
*16*
गद्दा जैसी गुलगुली,है माता की गोद।
ममता का भण्डार है,रहे मुदित मन मोद।।
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-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*17*
बिछो बिछौना गुलगुलौ,अँखियन नइँयाँ नींद।
जब सें अँखियन में बसी, हरि दर्शन उम्मींद।।
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-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
*18*
मिलो बिछौना गुलगुलो,लरका खा पी सोयँ।
खात कमाई बाप की, समव सुहानों खोंयँ।।
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- अमर सिंह राय, नौगांव
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आयोजक- #जय_बुंदेली_साहित्य_समूह_टीकमगढ़
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