157 *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-157*
*बिषय-"पैलाँ ,पैलें (पहले) दिनांक-30-3-2024*
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
गय पैलाँ ससुरार में,भव स्वागत सतकार।
बेर-बेर जब जाय जो,लयँ हसिया उर जार।।
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-शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*2*
पैलाॅं लंबोदर सुमर,दूजैं शारद माइ।
तीजैं गुरु की वंदना,चौथें बाप मताइ।।
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-भगवान सिंह लोधी'अनुरागी' हटा
*3*
पैलां सें ठाडे इतै,बेशरमी सें आप।
बिन बुलाय ही आ गये ,रसता लो तुम नाप।।
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-वीरेन्द्र चंसौरिया ,टीकमगढ़
*4*
पैलउं कैंकइ सें मिले,राम अजुद्या आय।
बिबिध भांति समझाय कें, दीन्ही ग्लानि मिटाय।।
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-सुरेश तिवारी, बीना
*5*
परकम्मा दइ भाव से , शिव गौरा खौं घेर |
पैलाँ पूजै गनेश जू , सबरै रै गय हेर ||
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-सुभाष सिंघई , जतारा
*6*
-पेलऊँ पेल को बोलबो,दिल मे घर कर जात।
हेरन हँसन इशारे करवो, न चैन में जो जी रात।।
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-विद्याशरण खरे, नौगांव
*7*
पैलाँ माँगें प्रेम सें, हाँत जोर कें बोट।
फिर मारें पुचकारकें,बे अन्तस में चोट।।
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-डां.देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा
*8*
रावण नें खुद जान कैं ,पैलाॅं करी ॳॅंगाइ ।
पथरा पटकौ पाॅंव पै ,हरकैं नारि पराइ।।
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-आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
*9*
पैलाॅं पैलें हम गये, होरी पे ससुरार।
सारी सारे मिल जुरै, खूब रंग दव यार।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव,झांसी
*10*
पैलाँ दुनिया में हतौ,सबखों सबसें प्यार।
हो गय ई कलकाल में,सब मतलब के यार।।
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- अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
*11*
घूँघट पैलाँ सिर हतौ,ती आँचर की छाँव।
नैचे नैना नार के,नीकौ लगतो गाँव।।
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-प्रदीप खरे मंजुल,टीकमगढ़
*12*
पैलाँ गय ससरार सो ,भय भोजन सत्कार ।
दार भात रोटी कड़ीं ,पापर बरा अचार ।।
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- प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ
*13*
पैलें जपलो भुनसराँ,अपने प्रभु को नाव।
काम सबइ बन जात हैं,कभउँ न रात अभाव।।
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-श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा
*14*
उठत भोर सियराम खों,पैलाँ शीश झुकाव।
जो जीवन जी ने दओ,ऊ के नित गुन गाव।।
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डां.बी.एस.रिछारिया, छतरपुर
*15*
पैलां कर हरि कौ भजन, और करौ सत्संग।
नित नियम साधना करौ,रहै न देह कुसंग।।
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-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां
*16*
पैलो वंदन माइ खों,दूजो प्रभु के नाम।
रिद्धि सिद्धि पायें विपुल, सफल होंय सब काम।।
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आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*17*
पैलाँ डारे पोइया,फिर बालम भरमाय।
अपनौ उल्लू साद कै,चूना हमें लगाय।।
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एस. आर. सरल,टीकमगढ़
*18*
पैलाँ जु़र-मिल एक सँग, मनत हते त्योहार।
मन में बचो न प्रेम अब,भय एकल परवार।।
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- अमर सिंह राय, नौगांव
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