[17/08, 1:04 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,विषय ,,जम,,
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मिचवा सौं जम राज खों , बाँधै रावन सोत ।
कत"प्रमोद"हम दैखवी , कईसन मृत्यु होत ।।
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जमकें जम जब-जब करें , धरती पै उत्पात ।
तब-तब मान्स "प्रमोद"कै , नदियन में उतरात ।।
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जम जनाव बनकेँ कभउँ , गैल घाट विद जात ।
तब"प्रमोद"तन छोड़कें , मान्स जगत सें जात ।।
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जम दम सें लतया रहें , किलपत भौत प्रान ।
चटनी बटी शरीर की , याद आउत भगवान ।।
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बब्बा खाँसें पौर में , खुंशयात जम राज ।
भौत अत्त तैनै करो , आय लुआवै आज ।।
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जम सें कम नइयाँ ससुर , खाँयँ काउ को चूँन ।
अत्त करइया मान्स कुछ , पियें मान्स को खून ।।
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धना खाव मउआ चना , हँसो खूब इठलाव ।
जम लैंबै आ जायँ जब , तब "प्रमोद"घर जाव ।।
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,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[17/08, 4:04 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय-जम
1-बचे कौन जम से कहो,
खेंच लेत वे प्राण।
मन मूरख चेतत नही,
छोड़त नइ अभिमान।।
2-आ घेरे जम दूत जब,
का होने गिगयाय।
रोय गाय सटने नही,
वे संगै ले जाय।।
3-मार परे जम दूत की,
हाहा लगत बजार।
ब्रजभूषण देखत रवे,
करहें का परवार।।
4-दान मुक्ति साधन बने,
भजन करें भवपार।
मसक मार जमदूत की,
ईसुर देवें टार।।
5-बरया कें नरतन मिलो,
खो देहो बेकार।
सबर काय नइया तुमें,
घल है जम की मार।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[17/08, 5:17 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय-जम
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कालांतक भगवान की,
लीला है अज्ञेय।
मुक्त करे जम पाश सें,
भगत मारकंडेय।।
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मर्दानी ई देश कीं,
हैं इतनी जाँबाज।
दुश्मन की औकात का,
हार जात जमराज।।
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मिल जाते तौ पूँछते,
जम राजा सें बात।
साजे-साजे छाँट कें,
जल्दी कय लै जात।।
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जाँ देखौ ताँ पाप कौ,
बगरो दिख रव भात।
शायद जम की मार सें,
अब नइँ मान्स डरात।।
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गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[17/08, 5:57 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा#जम
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जम कें जम सौ बरस रव,बादर सबरी रात।
नदियन पानी कड़ भगो, गांवन लीलत जात।।
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सांस धोंकनी सी चले,रहो कलेजो कांप।
जम सो बैठो दोर पे,छे फुट करिया सांप।।
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कोरोना के काल मे,मांस मरे घनघोर।
जम ने डेरा डार कें,सूने कर दय दोर।।
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आशा रिछारिया निवाड़ी 🙏🏿
[17/08, 6:37 PM] S R Saral Tikamgarh: बुंदेली दोहा विषय- जम
जम दे रय हैं दौदरा,नँग नँग कररय बार।
टोर टोर हर साँस खौ,रय हैं प्रान निकार।।
गरों दबाएँ जम चढ़े,निकर रई ना साँस।
डिड़याटे घर में परे, डरी मौत की फाँस।।
जाँ जम की चौकी लगी,संगे ठाड़ो काल।
प्रान बचा पाबै नईं, कोउ माइ कों लाल।।
जम जीके पाछै परे, उननै खोज मिटाव।
जम दूतन की मार सै,कोउ नई बच पाव।।
है बजार दिन चार कों, रये काय खौ चैट।
हसीखुशी दिन काट लो,होंनै जम सै भेंट।।
एस आर सरल
टीकमगढ़
[17/08, 8:50 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा (177)
बिषय-जम ,यम (मृत्यु के देवता)
(०१)
कब छाती चढ बैठवैं,आ जाबैं जम देव ।
पकर चुटइया लै चलैं,कर्मो का फल लेव ।।
(०२)
सत्यवती सी नारि हो,जीनें दओ प्रमान ।
जम दिवता देखत रये,वापिस कर लय प्रान ।।
(०३)
पाप कर्म कौ फल मिलै,लै जातइ जम आन । खून कि नदियां में बुआ,देत हमारे प्रान ।।
(०४)
जीके जैसे करम किये,ऊखौ वैसइ दंड ।
चतुर चातरी नइँ चलै,जम लौ कछु पाखंड ।।
(०५)
होत आखरी दिन जबै,जम देतई संकेत ।
कुछ न कुछ आभास हो,घर के हौय सचेत ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
[17/08, 9:11 PM] Taruna khare Jabalpur: अप्रतियोगी दोहे
शब्द 'जम'
जीवन भर उरझे रये,भूले ते हरि नाम।
आये जम के दूत जब,छूट गओ सब काम।।
लाख धरी माया रये,होवें कितनउ पूत।
कछू काम आबे नईं,जब आबें जम दूत।।
जम के फंदे से बचें,नै कौनउ इंसान।
लाख करौ कोसस मनौ,लेइ जात हैं प्रान।।
छोड़ मोह माया कपट,भजौ हरी को नाम।
बच जैहो जम फंद सैं,पौंच जाव सुरधाम।।
सिर ऊपर जम है खड़ो,भजो हरी को नाम।
कौन घड़ी लै जायँ बे,हरखें अपने प्रान।।
तरुणा खरे जबलपुर
🙏🙏🙏
[17/08, 10:08 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा जम
1
शिव नें दव जम खों हुकुम, छोड भक्त के प्रान।
नइँ मानों सो छिड गयौ, द्वन्द्व युद्ध घमसान।
2
जैसी जिसकी कर्म गति, फल वैसा ही पाय।
सत्कर्मों की ढाल ही, जम की मार बचाय।
3
जम राजा सौ न्याय जब, धरती पै छा जैय।
नै रैहै कौनउँ दुखी, नै कौनउँ गर्रैय।
4
पाप पुण्य कौ जम धरें, तोरौ सबइ हिसाब।
लेखौ जोखौ मइँ हुयै, खुल है कर्म किताब।
5
नर तन पाकें जो करत, जादाँ इतै मिजाज।
काडत ऊ की हेकडी, मरबे पै जमराज।
रामानन्द पाठक नन्द
[17/08, 10:36 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगी दोहा-177*
दिनांक 17.8.2024
*प्रदत्त शब्द #जम (यम यमराज)*
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
जम आयेंगे आखिरी,दिन ही लैबे तोय।
ऐसे ही फिर आयेंगे,इक दिन लैबे मोय।।
***
-वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़
*2*
जम जिदना जीलौ जितै,जीखों लेबे आँयँ।
जा तौ पक्की मान लो,बिना लएँ नइँ जाँयँ।।
***
- अमर सिंह राय,नौगांव
*3*
पतिविरता नें मेंट दव,विधि कौ अटल विधान।
जम खों लौटानें परे,सत्यवान के प्रान।।
***
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां
*4*
पकर चुटैया जी दिना,जम राजा लै जैंय।
भजन अकेलौ छोड़ कें,कौउ संग ना दैंय।।
***
भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी'हटा,दमोह
*5*
बच पाहो नै कोउ जब,आहें जम के दूत।
चाहे रैव किआउंँ तुम,करौ उपाव अकूत।।
***
-तरुणा खरे जबलपुर
*6*
दोऊ लोक सुदार लो,करनी करलो नेक।
जमराजा नों कोउ की,चलनें नइॅंयाॅं येक।।
***
-आशाराम वर्मा'नादान' पृथ्वीपुर
*7*
जम राजा लयँ जात ते,सत्यवान के प्रान।
सावित्री ने रोक लये,कैरय वेद पुरान।।
***
-प्रमोद मिश्रा,वल्देवगढ़
*8*
जम सी बैठी लंकनी,लंकापति के दोर।
जो आवे सो लीलवे, घुस नहिं पावे चोर।।
***
-आशा रिछारिया निवाड़ी
*9*
प्रभु कौ चरणामित पियै,बाल भौग कौ हेत ।
सो बैकुण्ठै जात वो,यम खौं धोकौ देत ।।
***
-शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*10*
जमुना जम भ्राता भगिन,हैं सूरज सन्तान।
जम लेखें जग के करम,जमुना दे जल दान ।।
***
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*11*
अगवानी जमदूत के,डीठी गैल निहार।
चोला को डोला बना,चली लिबौअा प्यार।।
***
-सीताराम पटेल'सीतेश',रेड़ा, डबरा
*12*
जम खौं कम ना जानियो,चौकस पहरेदार।
जब जीकी जित्ती लिखी,उत्तई करत उधार।।
***
-संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*13*
जग में पतिव्रत धर्म की,सावित्री है शान।
लौटा कें जम सें लये,अपने पति के प्रान।।
***
डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा
*14*
बचो कोउ नैं आज लो, जम को ऐसो फंद।
उगरत निगरत साँप खाँ, बनी छछूंदर दंद।।
***
- श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासोदा
*15*
चारइ कौनै जम खड़े,लगे चलाबै बान।
मार -मार मुर्दा करें,फिर लै लेतइ प्रान।।
***
- एस आर 'सरल', टीकमगढ़
*16*
जम नइँ छोड़त काउ खों,का राजा का रंक।
जो जन्मों ऊ खों लगौ,बुरव मौत कौ डंक।।
***
- अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी
*17*
सावित्री ने राखलई,पती धरम की आन।
जमराजा सें छुडाकें, सत्यवान के प्रान।
***
-एम एल त्यागी खरगापुर
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*संयोजक-*
✍️ *राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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