#बुन्देली_दोहा_प्रतियोगिता--159
##दिनांक-13-4-2024
*बिषय- #चिनार (पहचान)
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
वे चिनार के देत है, अपनन खौं ईनाम।
फिर ऊखौं कैसे मिले, जी कौ नैयाँ नाम।।
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-गीतिका वेदिका, टीकमगढ़
*2*
परदेशी कित जात हो,करलो तनिक चिनार।
लौंलइयां अब हो चुकीं,काटो नहीं किनार।।
***
मूरत सिंह यादव, दतिया
*3*
राम लखन संगे सिया, जब भय सरजू पार।
बाली बच्चा गांव के, काढें बैठ चिनार।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
*4*
नेतन से करने हमें, अपनी खूब चिनार।
थाने औ तहसील में,निपटें काम हमार।।
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-परम लाल तिवारी,खजुराहो
*5*
कान्हा मनहारिन बनें, गजब करो श्रृंगार।
देखत रै गइँ गोपियाँ, नइँ पर रये चिनार।।
***
-अमर सिंह राय, नौगांव
*6*
अंत गाॅंव में औरतैं , मिल बैठैं दो चार।
बिन बोलैं नइॅं मानतीं ,लेतीं काड़ चिनार।।
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-आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
*7*
मातु मोहि अब दीजिये,अपनी कछू चिनार।
जैसें श्री रघुवीर ने,मुँदरी दई उतार।।
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-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*8*
भइ चिनार श्री राम सैं, आफत में सुग्रीव।
बाली नें राखी जनी,मदद करो बलसीव ।।
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-शोभाराम दाँगी, नंदनवारा
*9*
जब चिनार भइ राम सें , रावण तजो शरीर ।
भाइ विभीषण रो पड़ें , धूल चाट गय वीर ।।
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-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
*10*
भलौ लगै जब आदमी , ऊसैं करौ चिनार |
आड़ौ आबै जब समय , ठाँड़ौ राबै द्वार ||
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-सुभाष सिंघई , जतारा
*11*
अब लौं जिनसें ना हती, नेकउं जान-चिनार।
जीततखन कढ़नन लगे, बेऊ नातेदार।।
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-डॉ. सुनील त्रिपाठी निराला भिण्ड
*12*
जब सें हो गइ राम सों,थोरी घनी चिनार।
लगन लगौ है राम सौ,मोखौं जौ सिंसार।।
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-रामानन्द पाठक नन्द, नंदनवारा
*13*
अब चिनार करबौ कठन, असली नकली कौन।
आ गव जब सें हाॅंत में,जौ मोबाइल फौन।।
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-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*14*
चिनार जच्चिना एक हैं,जाने चीने लोग।
आजात पहचान में,जब मिलत सँजोग।।
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विद्याशरण खरे, नौगांव
*15*
करौ चिनारी राम सैं , हूहै बेड़ा पार ।
जैहैं भूल चिनार सब , राम न भूलें यार ।।
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-डॉ.वी.एस रिछारिया,छतरपुर
*16*
काम न आबै आजकल , कोंनउँ जान चिनार।
अगर बिदे तुम दंद में , जमकें घलहै मार।।
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- वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़
*17*
दुनियां में जी सें मिलौ, पक्की करौ चिनार।
कटै न जो तलवार सें,काट दैय बेभार।।
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-डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
*18*
राम लखन बन खौ चले,ठाँड़े नदी किनार।
नाव लएँ केवट खड़ों,प्रभु सै करत चिनार।।
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एस आर सरल,टीकमगढ़
*19*
मों पै ढ़ट्टी बाँद कें, गोरी चलीं बजार।
नइँ चिनार वे आउतीं, ढूँड़त फिर रय यार।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी
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संयोजक/एडमिन- #राजीव_नामदेव '#राना_लिधौरी', टीकमगढ़
आयोजक- #जय_बुंदेली_साहित्य_समूह_टीकमगढ़
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