*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-154*.
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
*आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़*
दिनांक-9/3/2024.
*प्रदत्त बिषय- बीदे*
*प्राप्त प्रवष्ठियां :-*
*1*
नारद बीदे मोह में,करबै ढांडे ब्याव।
हरि सें वे मांगन लगे, सुंदर रूप बनाव।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी
*2*
बीदे रये चुनाव में,हार गये दस लाख ।
रय नइँ कौनउ दीनके,लग गव चूना राख ।।
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-शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा
*3*
बीदे हम तौ काल सें,पौंचें कैसें गाँव।
लगे रात दिन काम में,धूप होय या छाँव।।
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-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़
*4*
महादेव बीदे फिरें,दओ दैत्य वरदान।
धरो मोहिनी रूप हरि,तुरत निवारो आन।।
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-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*5*
सब बीदे जंजाल में,इसे निनुर ना पाय।
नहीं बिदौ जो भी इतै,वे भी मन पछताय।।
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-वी एस खरे,नौगांव
*6*
चमर गाॅंठ कस जाय तौ,खुलै न अपनें आप।
बीदे पै सीदौ लगत,गधा बनत है बाप।।
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आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
*7*
माया में बीदे सबइ,दानव मानव संत।
एक बात जा भूल गय,होने सबकौ अंत।।
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-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*8*
बीदे पै सीदे भए,जन्मन के बदमास।
गौरी के हाथन पिटे,भूल गए बकवास।।
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- श्यामराव धर्मपुरीक, गंजबासौदा,विदिशा
*9*
दुर्योधन शकुनी करण , करत रहें षड्यंत्र ।
बीदे काल कुचक्र में , मर गय भूलें मंत्र ।।
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-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
*10*
बीदे काम निनौर दै,जग में जौ इंसान।
ऊखौ जानो सब जनै,धरती कौ भगवान।।
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-सुभाष सिंघई, जतारा
*11*
चुकै न सुविधा शुल्क तौ,अटके रत हैं काज।
बीदे कौ सीदौ बनी, रिस्बतखोरी आज।।
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-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
*12*
जाल बिछाऔ फाँसबे,और जनों के हेत।
खुद बीदे जब गंठ में,फिर रय सीदौ देत।।
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- रामानन्द पाठक,नैगुवां
*13*
मकड़जाल में आजकल,बीदे हैं सब लोग।
मोबाइल कौ है लगौ,जब सें भीषण रोग।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी
*14*
ओरन सै भव सौड़रा,भई फसल की हान।
बीदे दंद किसान खौ, टारै रव भगवान।।
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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