प्राप्त प्रविष्ठियां :-
*1*
चूले पै हॅंड़िया चड़ी, डुकरो रइॅं हैं टार ।
डुकरा लपसी चाटबे,टपकाउत है लार।।
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-आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
*2*
लपसी होतइ पुलपुली, खातन में गुरयात।
बोंगा बब्बा येइ खों, बड़े मजे सें खात।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकान्त निवाड़ी
*3*
पतले हलुआ को कहत, लपसी हम सब लोग।
पर न घीव जादा रहे, मेवा का कम योग।।
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-हरिकिंकर "ललितपुर
*4*
लपसी सो चाटत रयै, समझ न आबै बैन।
नेक साँस तो लै लियो,समझावत रय रैन।।
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गीता देवी, औरैया
*5*
सत्ता की लपसी बड़ी, सबखों खूब लुभाय।
द्वारन द्वारन ढोक दें,सरपंची दो जिताय।।
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- आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*6*
होरी की जा सप्तमीं,बासौ भोज बनात।
और अष्टमी माइ खों, लपसी भोग लगात।।
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रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
*7*
नेता फिर रय आज के,ना घर है ना घाट।
बातें ऐसी करें बे,लपसी सी रय चाट।।
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-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
*8*
बातन लपसी चाटवैं ,कछू सार ना होय ।
काम- काज कछु ना बनैं ,मूँड़ पकर फै रोय ।।
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-शोभाराम दाँगी,नदनवारा
*9*
लपसी सी नै चाटियो,होबे अगर उलात।
जेठे स्याने कै गए ,सिरा -सिरा कें खात।।
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-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*10*
लुचइँ खीर लपसी बना, दीनन भोज कराव।
जा समाज सेवा करों, परम पुण्य फल पाव।।
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एस आर सरल,टीकमगढ
*11*
लपसी मोहन-भोग सी, जा गरीब खों भाय ।
मोड़ा-मोड़ी होत खुस, माँग-माँग कै खाय ।।
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- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
*12*
बात सुनै नइँ काउ की, खुद लपसी-सी खाय।
बइरैं हों या आदमी, बिलकुल नहीं सुहाय ।।
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अमर सिंह राय, नौगांव
*13*
इडली डोसा पासता , चावमीन कौ भोज।
खा रय लपसी छोड़ कें , ब्रेड पकौड़ा रोज।।
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-वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़
*14*
लपसी, हलुवा, गुलगुला, कै चीला लो ढार।
बुन्देली व्यंजन सबइ,जे गुड के रसदार।।
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डॉ देव दत्त द्विवेदी ,बड़ा मलेहरा
*15*
ढरक मुरक लपसी चली , मौं में गयी समाय |
जाती बैरा कात गइ , इत्तौ जीवन आय ||
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सुभाष सिंघई, जतारा
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संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़