*जय बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 195*
प्रदत्त शब्द-- चिंटा(चींटा)
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
चिंटा सौ चिपको रहत,ई जीवन सें मोह।
खेंचौ तौ टूटे मुड़ी,फिर भी नहीं विछोह।।
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-आरके प्रजापति, जतारा
*2*
अंडा लयॅं चिटियाॅं चलें , उर चिंटा उबरात।
सोऊ स्यानें कन लगत, अब होनें बरसात।।
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-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*3*
कोऊ नइयाँ दीन कौ, ऊके हैं भगवान।
समझै लोग गरीब के, चिंटा जैसे प्रान।।
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- एस. आर.सरल, टीकमगढ़
*4*
चिंटा रसगुल्लन पिड़े, खोद खोद कें खांय।
ऐसइ अब नेता भये,रैयत रइ चिचयाय।।
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-आशा रिछारिया, निवाड़ी
*5*
चिँटा चिंटीँ ढूँढ़केँ , चाट लेत गुरयाइँ ।
माँछीँ बर्रे राब में , मरवेंँ राम धुआइँ ।।
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-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
*6*
करिया रंग कौ होत है , गुर शककर खों खात।
जौ चिनटा काटै जितै , खूबइं कलला जात।।
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- वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़
*7*
चीटा जैसी हो लगन,मूड़ भले कट जाय।
जब तक घट में प्रान हैं,कोऊ छुड़ा न पाय।।
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- भगवान सिंह लोधी अनुरागी, हटा
*8*
चिंटा गुड में ही लगें, गुड पे रय इतरांय।
इक दाना ही पांय कें, हलवाई बन जांय।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु,बडागांव झांसी
*9*
परिया सें गुर नेंक लै,धरती में दो डार।
तुरतइं चिंटा आ लगें,खावे खौ मौ फार।।
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- रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर
*10*
चिंटा चुखरा चेंपला,घर में जब आ जात।
चटकी चौतइयाँ घुसै,करें ,उतै उत्पात।।
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-सुभाष सिंघई, जतारा
*11*
चींटा ऊखों काटता,जो ठलुआ इंसान।
धरै हाथ पे हाथ है,करमहीन है जान।।
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----प्रो डॉ शरद नारायण खरे,मंडला
*12*
चींटा नें काटौ हमें, बिच्छू सौ झन्नाय।
चिपकौ चिंटा ना खिचै,खिचै कूत परजाय।।
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- अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी
*13*
चिंटा फिर रय देस में,इनसैं बचकै राव ।
काट खायँ जे पांव में,नेक पायँ जो दाव ।।
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-शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*14*
चिन्टा चिन्टी की तराँ, करें बनत सब काम,
छोटे तन मिल देत हैं, बड़े - बड़े अन्जाम ।
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-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*15*
चमचा चिपके गौंच से,कोल कोल कैं खात।
गुर में ज्यौं चीटा लगैं, तैसे चिपके रात।।
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- प्रदीप खरे मंजुल टीकमगढ़
*16*
पोल खोलते और की, बड़ो मजा सो आत।
खुद की आबै बात तौ,चीटा सो लग जात।।
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+तरुणा खरे जबलपुर
*17*
गुर की परिया पे जुरत, चींटों की अति भीर।
गिरे परत खाबै मरत, नइयाँ इनखाँ धीर।।
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श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा, विदिशा
*18*
चिंटा से ना चेंटिओ, बुरौ होत है हाल।
साल पुरानी कड़ गई, आसौं रौ खुशहाल।।
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-डॉ रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल
*19*
निरबल खों जो ताँस रय, अपनों लाभ बिचार।
नाहक चींटा मार कें, पानी रहे निकार।।
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डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा
*20*
चिन्टा मारौ आपनें, सो पानी कड आव।
जिदना बिद हौ जंट सें, उत्तर मिल जै ठाव।।
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-रामानंद पाठक नैगुवां
*21*
चिंटा गुर पै लग चुके,कर ड़ारो बेकार।
कछू काम को बचौना,आ गय नातेदार।।
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-मूरत सिंह यादव दतिया
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*-राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़*
(संयोजक- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता)
मोबाइल- 9893520965
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