स्थान-वंशनगर-एक सड़क
(गिरीश, लवंग, सलारन और सलोने आते हैं)
लवंग : नहीं, वरंच हम लोग खाने के समय खिसक देंगे और मेरे घर पर आकर भेस बदल कर सब लोग लौट आवेंगे। एक घंटे में सब काम हो जायगा।
गिरीश : हम लोगों ने अभी सब तैयारी नहीं की है।
सलारन : अब तक मशल्चियों का भी कुछ प्रबन्ध नहीं हुआ है।
सलोने : जब तक कि स्वाँग का उत्तमत्ता के साथ प्रबन्ध न हो वह निरा लड़कों का खेल होगा और मेरी सम्मति में ऐसी अवस्था में उसका न करना ही उत्तम होगा।
लवंग : अभी तो केवल चार बजा है-अभी हमें तैयारी के लिए दो घंटे का अवकाश है-
(गोप हाथ में पत्र लिए आता है)
कहो जी गोप क्या समाचार लाए?
गोप : यदि आप इसे खोलेंगे तो आप ही सब समाचार विदित हो जायगा।
लवंग : मैं इन अक्षरों को पहिचानता हूँ, ईश्वर की सौगन्ध कैसे सुन्दर अक्षर है, और जिस कोमल हाथ ने इन्हें लिखा है वह इस पत्र से भी अधिक गोरा है।
गिरीश : निस्सन्देह यह तुम्हारी प्यारी का पत्र है।
गोप : साहिब अब मुझे आज्ञा होती है?
लवंग : कहाँ जाते हो!
गोप : अपने पुराने स्वामी जैन को अपने नये आर्य स्वामी के साथ आज रात को भोजन करने के लिये निमंत्रण देने।
लवंग : ठहरो, यह लो, प्यारी जसोदा से कह दो कि कदापि अन्तर न पड़ेगा-देखो अकेले में कहना-जाओ।
(गोप जाता है)
महाशयो आप लोग अब तो रात के लिये स्वाँग की तैयारी करेंगे? मशाल दिखलाने वाले का प्रबन्ध हो गया।
सलारन : जी हाँ मैं अभी जाकर तैयार होता हूँ।
सलौने : और मैं भी चला।
लवंग : लगभग एक घंटे के बाद गिरीश के घर पर मुझसे और गिरीश से मिलना।
सलारन : बहुत ठीक।
गिरीश : वह पत्र जसोदा ही का न था? (सलारन और सलोने जाते हैं)
लवंग : अवश्य है कि मैं तुझसे सब हाल वर्णन कर दूँ। उसने मुझे सूचना दी है कि मैं उसे किस भाँति उसके बाप के घर से ले जाऊँ, कितनी अशरफी और गहने उसने ले रक्खे हैं, और कैसा परिचारक का वस्त्र अपने लिये उपस्थित कर रक्खा है। भाई गिरीश यदि कभी इसके बाप जैन को स्वर्ग में आने की आज्ञा मिलेगी तो अपनी बेटी के सुकृत के बदले, और यदि कभी कोई बुराई इस तक आवेगी तो इस बहाने से कि वह एक अधर्मी जैन की बेटी है। आओ, मेरे साथ आओ, मार्ग में इसे पढ़ते चलो। सुन्दरी जसोदा आज स्वाँग में मशाल दिखलावेगी।
(दोनों जाते हैं)