स्थान-वंशनगर-शैलाक्ष के घर के सामने
(शैलाक्ष और गोप आते हैं)
शैलाक्ष : अच्छा तो तू देखेगा, तेरी आँखें आप ही इस बात का न्याय करेंगी कि वृद्ध शैलाक्ष और बसन्त में कितना अन्तर है। अरी जसोदा! जैसा तू मेरे यहाँ भुखमुए को भाँति ढाई सेर भकोसता था उसका स्मरण वहाँ आवेगा। अरी जसोदा! और हर समय पड़े रहने और खर्राटे लेने और कपड़े फाड़ डालने की महिमा भी जान पड़ेगी। अरी जसोदा, सुनती नहीं!
गोप : जसोदा!
शैलाक्ष : तुझे किसने पुकारने को कहा है? मैंने तुझसे नहीं कहा कि पुकार।
गोप : आप ही न मुझ पर सदा क्रुद्ध हुआ करते थे कि तू बेकहे कोई काम नहीं करता।
(जसोदा आती है)
जसोदा : मुझे आपने बुलाया है? आज्ञा?
शैलाक्ष : मुझे आज का नेवता आया है, लो जसोदा यह कुंजियाँ तुम्हारे सुपुर्द हैं। पर मैं क्यों जाने लगा? मुझे वह लोग कुछ प्रेम में नहीं बुलाते वरंच सुश्रपा से-किन्तु क्या हुआ मैं भी तिरस्कार की दृष्टि से जाऊँगा और उस बहुव्ययी आर्य का माल चाभूँगा। मेरी प्यारी बेटी तू घर से सावधान रहियो। मेरा जाने को तनिक भी जी नहीं चाहता, मुझे कोई बुराई आती मालूम होती है जिसका मेरे जी में खटका लग रहा है, क्योंकि आज ही रात को मैंने रुपये के तोड़ों का सपना देखा था।
गोप : आप कृपा करके चलें; मेरे नये स्वामी आपकी राह देखते होंगे; और उन लोगों ने आपस में गुट किया है। यह मैं नहीं कह सकता कि आप अवश्य ही स्वाँग देखिएगा परन्तु यदि ऐसा हुआ तो निस्सन्देह कुछ न कुछ रंग खिलेगा क्योंकि मेरी नाक से उस दिन तेवहार के छ बजे सवेरे से रुधिर का बहना व्यर्थ न जायगा।
शैलाक्ष : क्या स्वाँग भी बनेंगे? सुनो जसोदा द्वारों में ताला लगा दो और जब भेर की ढबढब और बाँसुरी की ध्वनि सुनाई दे तो झरोखों में से झाँकने के लिये ऊपर न चढ़ना और न इन आर्य मसखरों के लुक फेर हुए चेहरों को देखने के लिए खिड़की से बाजार की ओर सिर निकालना वरंच शीघ्र ही मेरे घर के कानों को अर्थात् खिड़कियों को बन्द कर लेना जिसमें ऐसे असभ्य तुच्छ जनों का शब्द मेरे सभ्य घर के भीतर न पहुँचने पावे। शपथ है अहन्त देव की छड़ी की मेरा जी आज रात के नेवते में जाने को नेक भी नहीं उभरता। किन्तु मैं जाऊँगा। अबे तू आगे जा कह दे कि मैं आऊँगा।
गोप : महाराज मैं चला। बबुई तुम इनकी बकबक पर ध्यान न दे कर अवश्य खिड़की में से झांकती रहना क्योंकि 'आज होगा उस मसीहा का गुजर इस राह से, जिसने मूसा है यहूदी के दिले बीमार को।' (जाता है)।
शैलाक्ष : वह मूर्ख प्रेत का अवतार क्या कहता था, ऐं?
जसोदा : उसने केवल इतना ही कहा कि 'बबुई ईश्वर आपकी रक्षा करें' और कुछ नहीं।
शैलाक्ष : वह मूर्ख प्रेम तो रखता है परन्तु खाने में साण्ड से अधिक है, दिन को सोने में जंगली बिल्ली से बढ़ कर और काम करने में घोंघे से अधिक सुस्त। ऐसे कृतघ्नों का निर्वाह मेरे साथ कहाँ हो सकता है; इसीलिये मैं उसे दूर करता हूँ, और फिर उसे पल्ले भी कैसे मनुष्य के बाँधता हूँ जिसके उधार लिए हुए रुपये के नष्ट करने में वह सहायता देगा। अच्छा जसोदा अब तुम भीतर जाओ, कदाचित् मैं अभी लौट जाऊँ। जिस भाँति मैंने समझा दिया है वैसा ही करना। द्वारों को बन्द करती जाओ-'जागै सो पावै सोवै सो खोवै' यह कहावत बहुत ठीक है। (जाता है)
जसोदा : जाइए (आप ही आप)
"गर वर आई आर्जूं मेरी तो रुखसत आपको,
आपने बेटी को खोया और मैंने बाप को।"
(जाती है)