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द्वितीय अंक : पहला दृश्य

26 जनवरी 2022

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स्थान-विल्वमठ। पुरश्री के घर का एक कमरा

(तुरहियाँ बजती हैं। मोरकुटी का राजकुमार अपने सभासदों के सहित और पुरश्री, नरश्री और अपनी दूसरे सहेलियों के संग आती है।)

मोरकुटी : मेरी रंगत देखकर मुझसे घृणा न करना क्योंकि यह तो सूर्य की दी हुई वर्दी है जिसके समीप मैं रहता हूँ और जिसकी छाया में पला हूँ। उत्तर के देश जहाँ सूर्य की गर्मी बर्फ के टुकड़ों को भी नहीं गला सकती वहाँ के किसी सुन्दर से सुन्दर युवा को मेरे सामने लाओ और हम दोनों तुम्हारे प्रेम के लिये अपने शरीर में नश्तर चुभावें तो विदित होगा कि किस का रुधिर अधिक रक्त है। सखी तुम विश्वास मानो कि मेरे इसी चेहरे ने बड़े से बडे़ वीरों का पित्ता पानी कर दिया है और मैं अपने प्रेम की सौंगंध खा कर कहता हूँ कि इसी मुख को मेरे देश की परम सुन्दरी युवतियाँ भी चाहती हैं। मैं अपने इस रंग को किसी अवस्था में बदलना पसन्द न करूँगा पर हाँ तुम्हारी प्रसन्नता के लिये...

पुरश्री : मेरी रुचि के लिये केवल मेरी आँखें ही नहीं हैं और न मैं किसी भाँति अपनी इच्छा के अनुसार पति बर सकती हूँ, किन्तु ऐ प्रसिद्ध राजकुमार, यदि मेरे पिता ने मुझे परवश न कर दिया होता अर्थात् इस बात की उलझन न लगा दी होती कि जो कोई मुझे उस विधि से जीते (जिसका आपसे मैं वर्णन कर चुकी हूँ) उसकी मैं स्त्री बनूँ तो जिन लोगों को मैंने अब तक देखा है उनमें से आपको किसी की अपेक्षा पूर्ण मनोरथ होने का अवसर कम न था।

मोरकुटी : मैं इतनी कृपा के लिये भी तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ, तो ईश्वर के लिये अब मुझे सन्दूकों के पास ले चलो जिसमें अपने प्रारब्ध की परीक्षा करूँ। शपथ है इस खंग की, जिसने राजा को वध किया और इन्दर के उस राजकुमार को मारा जो महाराज सुलक्षण से तीन लड़ाइयाँ जीता था, तुम्हारे मिलने की आशा में मैं संसार में वीर से वीर का सामना करने को प्रस्तुत हूँ, रीछ की मादा के सामने से उसके बच्चे उठा लाने को उपस्थित हूँ, सिंह जिस समय कि शिकार की खोज में गरज रहा हो उसकी आँख निकाल लाने को प्रस्तुत हूँ-पर हाय ऐसी अवस्था में किसका वश है! यदि हारित और लक्षेन्द्र पासा फेंक कर इस बात को निश्चय करना चाहें कि दोनों में कौन बड़ा आदमी है तो संभव है कि पासे के पड़ने से अनारी जीत जाय और संसार का सबसे बड़ा पहलवान अपने एक नीच नौकर के सामने नीचा देखे। ऐसे ही संयोग से मेरी अवस्था हो सकती है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ हूँ जिसे कदाचित् एक साधारण व्यक्ति भी कर ले और मुझे कुढ़ कुढ़ कर मरना पड़े।

पुरश्री : लाचारी है-बिना मंजूषा चुने हुए कुछ नहीं हो सकता, इसलिये या तो आप इस इच्छा ही को छोड़ दें या यदि चुनना चाहें तो पहिले इस बात की शपथ खायँ कि यदि आप झूठी मंजूषा को चुनेें तो फिर आमरण किसी स्त्री की ओर ब्याह करने के अभिप्राय से दृष्टि न करें-इसे खूब सोच लीजिए।

मोरकुटी : हमें यह प्रतिज्ञा स्वीकार है। चलो अपने भाग्य की परीक्षा करें।

पुरश्री : पहिले मन्दिर में चलिए। तीसरे पहर सन्दूक चुनिएगा।

मोरकुटी : ऐ भाग्य सहाय हो, मुझे सबसे अधिक प्रसन्न या सबसे अधिक अभागा बनाना तेरे ही हाथ है।

तुरहियाँ बजती हैं। सब जाते हैं, 

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रचनाएँ
दुर्लभ बन्धु
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उन्होंने कई नाटक, रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण, और सफरनामे लिखे। लेकिन, हरिश्चंद्र की सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ आम लोगों की परेशानियों, गरीबी, शोषण, मध्यम वर्ग की अशांति को संबोधित करती हैं, और राष्ट्रीय प्रगति के लिए आग्रह करती हैं। अपने जीवनकाल में, हरिश्चंद्र ने सक्रिय रूप से हिंदी साहित्य के पुनरुद्धार को बढ़ावा दिया और जनता की राय को आकार देने के प्रयास में अपने नाटकों का इस्तेमाल किया।
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प्रथम अंक : पहला दृश्य

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तीसरा दृश्य

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द्वितीय अंक : पहला दृश्य

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