कोई बात अगर आपके अनुरूप न हो तो उसका केवल इतना ही अर्थ नहीं होता है कि वो एकदम गलत है अपितु उसका एक अर्थ यह भी है, कि हो सके उस बात को समझने के लायक आपकी बुद्धि का स्तर ही न हो।
दुनियाँ की प्रतिस्पर्धाएं कुछ इस तरह की हो गयी हैं कि , जिसमें एक आदमी कहता है कि दिन के बाद रात होती है तो दूसरा आदमी पहली बात का खंडन करते हुए कहता है कि नहीं - नहीं दिन के बाद रात नहीं बल्कि रात के बाद दिन होता है।
इस थोड़े से समझने के फेर में मनुष्य अपनी बहुमूल्य जीवन ऊर्जा का अपव्यय एक गलत दिशा में कर बैठता है। हो सके जिस हिमालय के दर्शन को आप सुबह की सुनहरी धूप में करने के कारण सुनहरा बता रहे हो वही दर्शन दूसरे को रात की धवल चाँदनी में करने कारण रजत सदृश मालूम पड़ेगा। बस थोड़ा दृष्टिकोण का ही फेर है।
दोनों अपनी - अपनी जगह सही होते हुए भी न पहले का कथन झूठा है और न दूसरे का।इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने अपने अनेकांतवाद में कहा कि परम सत्य केवल एक होने पर भी वह अलग - अलग कोणों से देखने पर अलग - अलग ही नजर आयेगा।
आप सत्य हो सकते हो ये बात बिल्कुल सही है लेकिन केवल आप ही सत्य हो सकते हो ये कदापि संभव ही नहीं।