*अपनी "गलती" स्वीकार करने, और "गुनाह" त्यागने में कभी देर नही करना चाहिए, क्योंकि सफर जितना लंबा होगा, वापसी उतनी ही मुश्किल हो जायेगी ! सच्चा स्नेह करने वाला केवल आपको बुरा बोल सकता है, लेकिन कभी आपका बुरा नही कर सकता, क्योंकि उसकी नाराजगी में आपकी "फिकर" और दिल में आपकी प्रति सच्चा "स्नेह" होता है, इसलिये. क्रोधी व्यक्ति में भले ही लाख बुराई हों, परन्तु वह "क्रोधावस्था" में सत्य उगलता है, इसलिए यदि कोई तुमपर क्रोध करते रहे, तो तुम शांत होकर उसके क्रोध से भरे दुर्वचन सुन लेना, उसके मन में जो तुम्हारे लिए होगा, वह क्रोध में उगल देगा, क्रोधी व्यक्ति अपने अपनों को खो देता है, क्योंकि उसका क्रोध ही उसके मन में छिपी कड़वाहट को वाणी के द्वारा बाहर निकालता है, मैं सब कुछ, और तुम कुछ भी नहीं, बस यही सोच, हमें इंसान नहीं बनने देती,! "सम्मान" हमेशा समय का होता है, लेकिन आदमी उसे अपना समझ* *लेता है...........!!*
*दूसरों की परेशानी का आनंद कभी नही लेना चाहिए, कहीं ऊपरवाला हमें वही भेंट ना कर दे, क्योंकि ऊपरवाला हमेशा वही देता है, जिसमे हम खुश रहते हैं....*