एक गृहणी का जीवन वास्तव में बहुत कठिन है। सुबह से लेकर शाम तक काम में लगी, फिर भी उसके काम का कोई आर्थिक मूल्यांकन नहीं है। कामकाजी है तो वह दो मोर्चे पर काम करती है घर भी संभालना है ,दफ्तर भी संभालना है, बच्चे भी संभालने है। कुछ दिनों पहले अखबार में 2 लाइनें पढी थी, वह 6:00 से 9:00 दफ्तर में काम करती है फिर 9:00 से 6:00
घर में। बच्चों की परवरिश, घर और परिवार के काम, अतिथियों की आवभगत, परिवार के दायित्व, सामाजिक समारोह में शिरकत, घर का बजट, इन्हीं कामों में लगी वह अपनी जिंदगी गुजार देती है। जो गृहणी घर के कामों में घर के दायित्व में लगी रहती है। जो घर को सजाती हैं, घर को घर बनाती है, क्या उसके प्रति घर के परिवार के सदस्यों का कोई दायित्व नहीं है। क्या उसे प्रेम, सुरक्षा, सम्मान , महत्व नहीं मिलना चाहिए,? अतः जरूरत है कि उसके कार्य के लिए उसे समाज में परिवार में महत्व मिले। (© ज्योति)