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gazal

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जब से मिले है तुमसे जीने की वजह मिल गयी।आज़ाद होने वाला हूँ मैं भी खत्म सजा हो गयी।।1।।जिसने भी काटी थी राहे खुदा में अपनी जिंदगी।उन सभी को जन्नत में देखो तो जगह मिल गयी।।2।।अहसान मानतें है तुम्हारा जो

हमको तुम अपनी दुआओ में याद रखना।गर गलती हो गयी हो तो हमें माफ करना।।1।।कुछ परेशानियाँ थी जो तुम्हे ना बताई है।हमारी तरफ से दिल अपना साफ रखना।।2।।तुम खुश रहो हम यही दुआ बस करते है।महशर में ऐ खुदा तू हम

चलो उसके लिए कुछ दुआ की जाए।शायद यूँ ही उसको शिफ़ा मिल जाए।।1।।हो गया है वो बड़ा ही परेशांन दर्दों से।जाने इन्ही दुआओं से अच्छा हो जाए।।2।।उसके जख्म दिखते है यूँ ज़िन्दगी के।चलो उसके जख्मों को सिला ही जा

हमको तो हमारी ज़िंदगी मे धोखे मिल रहे है।ये हम ही जानते है कि हम यूँ रो-रो कर कैसे जी रहे है।।1।।तुमको तुम्हारे अपनों का वास्ता हम दे रहे है।अब और गम ना दो हम पहले से ही गमों को पी रहे है।।2।।किसी को द

कुछ पैग़ाम लेकर आया हुँ।तुम्हारे गांव होकर आया हूँ।।1।।माँ मिली थी तुम्हारी हमको।उनकी दुआए तुझ पे चढ़ाने आया हूँ।।2।।तेरी ख़ातिर कुछ भेजा है उसने।उसकी ममता तुमको बताने आया हूँ।।3।।क्या बताये हाल ए दिल मा

बड़े दिनों बाद हंसी आयी है लबों पर।आज नज़र जो गयी उसके खतों पर।।1।।उसकी हर एक याद बचाकर रखी है।जो परेशां करता था हमें शरारतों पर।।2।।जाने कैसे दिखता होगा चेहरे से अब।हम भी फिदा थे जिसकी चाहतों पर।।3।।मि

जैसी भी है जितनी भी है इज्जत है हमारी।गर ना हो पसंद तुम्हें तो दूसरा घर देख लो।।1।।गर सीरते यार है तो जिंदगी जन्नते बहार है।ना आये यकी तो तुम घर बसा कर देख लो।।2।।रहने लगोगे हमेशा ही किसी की खुमारीं म

ख्वाहिशें तो बहुत है इस दिल की पर पूरी होती नही है।मंजिलें तो यहां बहुत है पर हमको यह मिलती नहीं है।।1।।ऐसे घुट घुट कर हम जीने से जिन्दंगी में ऊब गए है।पे क्या करें ये मौत भी तो कमबख्त बेवक्त मिलती नह

आ चले वहां जहां कोई ना हो जान पहचान में।थोड़ा सा वक्त बिताते हैं साथ किसी शमशान में।।1।।मैं दुआए बेचता हूँ इस जहान में।खुदा ने बड़ी शिफा दी है मेरी ज़बान में।।2।।देखा है ज़िन्दगियों को तड़पते हुए इसमें।हमक

मेरी ज़िन्दगी जाने क्यों तुमने ये गम दे दिया है।खता क्या हुई थी जो मेरा हमसनम ले लिया है।।1।।शायद तुम्हारा दिल मेरी चाहत से भर गया था।वरना तू हमें बताकर जाता जो यूँ चल दिया है।।2।।जी भर कर रो भी ना पाए



दिल के ज़ख्मों की दवा लिखने लगी

उनको मैं अपना खुदा लिखने लगी


आ गई जब मुस्कराने की कला

जिंदगी को तब मजा लिखने लगी


हद से ज्य

तेरे ख्याल को अब ख्यालों से जुदा कर चले,


क्योंकर जलाये वो, कुछ ख़त महब्बत के
लिखवाये हसरत ने, जो तेरी चाहत के //मतला//</

अगर इश्क़ का यही दस्तूर है जी
मुझे क़त्ल होना भी मन्ज़ूर है जी 

अजन्ता की मूरत

फिर अचानक अजनबी क्यों हो गया,
क्यों जागाने वाला शहर भी सो गया।

          
कुर्आन की हर आयत से जिंदगी को समझना |
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बन्द कर दो तुम दिखावा ज़िन्दगी मे अपनी शराफ़त का |
होगा हिसाब इक दिन त

जलता हुआ चिराग देखा पुरानी कोठी के ताख पर |
क्या अब चाँद की चाँदनी आती नहीं इसके 

खुश होने की कोशिश करके मुझे बहलाओ ना |
हमराज बनाके तुम अपना मुझे आजमाओ ना ||1||

बार-बार तुझको पढनें की आदत सी हो रही है |
उफ ये सादगी तुम्हारी तो कयामत सी हो रही है

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