परिंदे आसमां छूकर ज़मीं पर आ गये,
नये तेवर , दिखाते पंख वो इतरा रहे |
कहीं खामोशियाँ फिर घेर ना लें रास्ता,
यही तो सोचकर हम आप भी घबरा गये|
दुआ फिर काम आएगी संवारों ,ले चलो,
बची उम्मीद के काबिल सिपाही आ गये |
हवा को रोक मत अपना बनालो ज़िन्दगी,
सिरों को जोड़ दो जो टूट कर छितरा गये |
उठा लाओ कहीं से भी सकून-ए-दिल मेरा ,
बरसते हैं नहीं आँखों में बादल छा गये |
उलझती जा रही हैं वो सुलझती गुथ्थियाँ,
तितलियों के रंगीले पर गुलों को भा गये |
अभी कायम यारो रौशनी बुझते चिरागों में,
कि फिर होंगे गुल-ए-गुलज़ार जो मुरझा गये|