हमें आप गर ज़िन्दगी मानते हैं, तो पहचान क्यों हमनशीं मांगते हैं। उन्हें कोई शिक़वा-शिकायत नहीं है, सही काम हो वन्दिगी मानते हैं। मुहब्बत का एहसास है खूबसूरत, मगर आप क्यों दिल्लगी मानते हैं। नहीं लौटकर आएगा जाने वाला, अगर आप ही अज़नबी मानते हैं। मुक़द्दर से दुनिया बदलती नहीं है, मुक़द्दर को फिर भी सभी मानते हैं। उतर आएंगे आसमां से नखत भी, अगर आप जन्नत ज़मीं मानते हैं। इबादत समर्पण का है नाम पूजा, तो भगवान् को हम सभी मानते हैं। कन्हैया के अधरों पे सजती हमेशा, वो मुस्कान हम बांसुरी मानते हैं। बदल जाएगा वक़्त'अनुराग'इकदिन, दुआओं में पल-पल यही मानते हैं। *मिसरा * हमें आप गर ज़िन्दगी मानते हैं, *वज़्न* *122...122...122..122* *बहर *बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम *अरकान* *फ़ऊलुन.फ़ऊलुन.फऊलुन्.फ़ऊलुन* *काफ़िया-ते *रदीफ़-- हैं