गैर वाजिब मेहरबानियों को,
ज़िद बनाओ ना नादानियों को।
थोड़ी मगरूर हैं और क्या है,
आजमाओ न इन आँधियों को।
हो जरुरी तो परदे गिरा दो,
खुल्ला रहने भी दो खिड़कियों को।
की खता तो नहीं मुआफ कर दो,
आगे बढ़ने भी दो अर्जियों को।
मेरी पूजा तुम्हारी इबादत,
बाँध दो प्यार की डोरियों को।
क्या हुआ बढ़ गए फ़ासलें क्यों,
फिर नज़र लग गई जोडिओं को\
डर नहीं है तो फिर सामने आ,
खुल के जाहिर करो मर्जीयों को।
मुफलिसी के भी दिन यार दिन थे,
पूछते तक ना थे दानियों को।
मोतियों को चुनो भूल जाओ,
याद करना नहीं सीपीयों को।
शौक से तोड़ लो फूल कलियाँ,
रहने दो डाल पर तितलियों को।