वो अँधेरे से उजाला माँग बैठा,
बहुत भूखा था निबाला मांग बैठा|
देखते ही देखते मुरझा गए गुल,
फूल से ख़ुशबू की हाला मांग बैठा।
अपने थे लेकिन किनारा कर गए हैं,
मैं गर्दिशों में था सहारा मांग बैठा।
हार की शतरंज का मोहरा बनाकर,
वो आसमां से टूटा तारा माँग बैठा।
आंधियां सब ले गईं परदे उड़ा कर,
राज-ए-दिल हमसे हमारा मांग बैठा।
बुत नहीं ये सब हमारी आस्थाएं हैं,
तू क्यों समन्दर से किनारा मांग बैठा।
जो आज तक मंजिल से भटकाता रहा।
मिल गई मंजिल उजाला मांग बैठा।