आँखों ने संजोए वो सपने पिघल गए,
पल भर में ज़िन्दगी के तेबर बदल गए।
गुजरे गली से जब हम शोर सा उठा,
बिखरे हुए थे अरमां सब कुचल गए।
आवाज देकर आज तो वापस बुला,
मैं इतज़ार में तुम आगे निकल गए।
हर मोड़ हर कदम पर तू इम्तहान लेगा,
हम जानते थे बेहतर पहले संभल गए।
ईमान-ओ-दिल देंगे गवाही एक दिन,
तुम दोस्ती की कसमें-वादे निगल गए।
चलता रहा है बेहिस बोझ सा लिए,
मुठ्ठी से आदमीं के लम्हें फिसल गए।
लहरों हैं बेकरार समझेगा समंदर,
देखते ही देखते मौसम बदल गए।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'Dt27042016(Publishing Right Reserved Under Online publishing Cyberr Copy Right Act Of India)