आपकी आँखों हलचल देखकर ,
हूँ बहुत बेचैन,वो पल देखकर ।
दोपहर में ये घना काला अंधेरा ,
हैं सभी दहशत में बादल देखकर ।
एक मुद्दत होगई है,गुम राहों में ,
क्या कहेंगे पाँव मंजिल देखकर ।
काश वो आवाज़ दें मैं जाग जाऊं,
स्वप्न भी बोलेंगे साहिल देखकर ।
वक्त यूँ टूटा कि ,चेहरे मुड़ गए हैं,
आईना भी रो पड़ा ,कल देखकर ।
जुल्म अब सीमा से ज्यादा पी लिया ,
अब तो जाऊँगा,सही हल देखकर ।
सबको दो गज ही ज़मीं तो चाहिए ,
हैं आप क्यों हैरान दलदल देखकर ।
उनसे तन्हाई की कीमत पूंछते हो ,
बैठ जाते है जो ,महफिल देखकर ।
खो गया'अनुराग'बस्ती में कहीं भी,
आज ही आया हूँ ,जंगल देखकर ।