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जब तक रहेंगे रंग मैं लिखता रहूँगा

28 अप्रैल 2016

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जब तक रहेंगे रंग मैं लिखता रहूँगा,

दिल में तुम्हारी याद में जिन्दा रहूँगा। 


हालांकि गतिरोधक भी होंगे राहों में। 

 रुक नहीं  सकता यूँ ही चलता रहूँगा।  


किताबो में नहीं लेकिन  लवो  पर हूँ,

 खुली हवा के पंखों पे  छपता रहूँगा। 


आंधी हो तूफां हो  या फिर रात काली,

 हूँ शब्दज्योति का दिया जलता रहूँगा। 


मत बहो आंसू लहू की बूँद में ढलकर,

दिन मुस्कुरायेंगे तो मैं  हँसता रहूँगा। 


अनुभवों का शोर है मेरी ग़ज़ल तो,

सुख-दुःख मिलाकर काफ़िया बुनता रहूँगा। 


नफरत,घुटन दहशत के इस माहौल में,

पुल,नदी बन जाऊंगा बहता रहूंगा,

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

रवि जी आपके असीम स्नेह के लिए आपका आभार !

29 अप्रैल 2016

रवि कुमार

रवि कुमार

आप हमेशा लिखते रहे, हम हमेशा पढ़ते रहे ...

28 अप्रैल 2016

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

आदरणीय ओमप्रकाश शर्मा जी कोटि-कोटि आभार

28 अप्रैल 2016

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अनुभवों का शोर है मेरी ग़ज़ल तो, सुख-दुःख मिलाकर काफ़िया बुनता रहूँगा...बहुत खूब !

28 अप्रैल 2016

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मेरे साहित्यक गुरु को शत शत नमन और जन्म दिन की बधाई

19 अगस्त 2015
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विश्व हिंदी सम्मेलन - रामधारी सिंह दिनकर सभागार - YouTube

10 सितम्बर 2015
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उदघाटन समारोह - रामधारी सिंह दिनकर सभागार

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विश्व हिंदी सम्मेलन एक झलक

11 सितम्बर 2015
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नेह तक जब दीपिका की वर्तिका जल जाएगी ,

19 सितम्बर 2015
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नेह तक जब दीपिका की वर्तिका जल जाएगी ,देखना उस रोज ही ,सच की ,चिता जल जाएगी |घूमती होगी भिखारी बनके ,दर-दर विद्व्ता ,आग-ऐ-आरक्षण में,असली योग्यता जल जाएगी |राजनीती विष-वमन कर ,फूँक देगी मुल्क़ को ,आदमी से आदमी की , अस्मिता जल जाएगी |गर यूँ ही बढ़ती रही ,ये भूख बहशी दौर की ,सुच्चिता दम तोड़ देगी ,

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''भेदभाव बढ़ चला है आपसी''

12 अक्टूबर 2015
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भेदभाव बढ़ चला है आपसी ,दोस्तना कर रहा है ख़ुदकुशी ।प्रकृति का घायल ह्रदय,देखकर , केश खोले रो रही है रूपसी ।गुनगुनाहट गुन्जनों की कर्कशी ,चांदनी तपने लगी है धूप सी ।टूटते रिश्ते ,सिमटती आस्थाएं ,देखना पल-पल बदलता आदमीं ।ईद-होली का मिलन तो खा गया,बदचलन इंसानियत है , बेबसी ।कौन किसको रो रहा है भूल जा ,ब

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''भेदभाव बढ़ चला है आपसी''

12 अक्टूबर 2015
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भेदभाव बढ़ चला है आपसी ,दोस्तना कर रहा है ख़ुदकुशी ।प्रकृति का घायल ह्रदय,देखकर , केश खोले रो रही है रूपसी ।गुनगुनाहट गुन्जनों की कर्कशी ,चांदनी तपने लगी है धूप सी ।टूटते रिश्ते ,सिमटती आस्थाएं ,देखना पल-पल बदलता आदमीं ।ईद-होली का मिलन तो खा गया,बदचलन इंसानियत है , बेबसी ।कौन किसको रो रहा है भूल जा ,ब

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गजल - कमबख्त क्या रिवाज़ है !

12 अक्टूबर 2015
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रोपे हुए वो पौधे, दरख्त हो गए ,तो,प्यार के बर्ताव,बड़े सख्त हो गए ।काबिल-ए-यकीन तो, हरगिज नहीं थे वो ,लो आप जिनके आज ,सरपरस्त हो गए ।अफ़सोस क्या करेंगे ,आज जीत-हार का,कमबख्त खुद-ब-खुद , शिकस्त हो गए ।आब-ओ -लिहाज ,भूल गए वो गुरुर में ,काबिल बना दिए तो मौका -परस्त हो गए ।उम्मीद के चिराग ,थरथरा के बु

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''भेदभाव बढ़ चला है आपसी''

12 अक्टूबर 2015
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भेदभाव बढ़ चला है आपसी ,दोस्तना कर रहा है ख़ुदकुशी ।प्रकृति का घायल ह्रदय,देखकर , केश खोले रो रही है रूपसी ।गुनगुनाहट गुन्जनों की कर्कशी ,चांदनी तपने लगी है धूप सी ।टूटते रिश्ते ,सिमटती आस्थाएं ,देखना पल-पल बदलता आदमीं ।ईद-होली का मिलन तो खा गया,बदचलन इंसानियत है , बेबसी ।कौन किसको रो रहा है भूल जा ,ब

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''भेदभाव बढ़ चला है आपसी''

12 अक्टूबर 2015
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भेदभाव बढ़ चला है आपसी ,दोस्तना कर रहा है ख़ुदकुशी ।प्रकृति का घायल ह्रदय,देखकर , केश खोले रो रही है रूपसी ।गुनगुनाहट गुन्जनों की कर्कशी ,चांदनी तपने लगी है धूप सी ।टूटते रिश्ते ,सिमटती आस्थाएं ,देखना पल-पल बदलता आदमीं ।ईद-होली का मिलन तो खा गया,बदचलन इंसानियत है , बेबसी ।कौन किसको रो रहा है भूल जा ,ब

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ग़ज़ल

12 अक्टूबर 2015
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गर्व मत कर तू ,पराई ताकतों पर ,वर्ना आ जायेगा,इकदिन रास्तों पर |आबरू तक एक दिन वो लूट लेगा, तू भरोसा कर गया,जिन दोस्तों पर |रहनुमां जो ,कल सफर में लाये थे,छोड़कर दामन गए ,वो रास्तों पर 

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गजल - कमबख्त क्या रिवाज़ है !

12 अक्टूबर 2015
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रोपे हुए वो पौधे, दरख्त हो गए ,तो,प्यार के बर्ताव,बड़े सख्त हो गए ।काबिल-ए-यकीन तो, हरगिज नहीं थे वो ,लो आप जिनके आज ,सरपरस्त हो गए ।अफ़सोस क्या करेंगे ,आज जीत-हार का,कमबख्त खुद-ब-खुद , शिकस्त हो गए ।आब-ओ -लिहाज ,भूल गए वो गुरुर में ,काबिल बना दिए तो मौका -परस्त हो गए ।उम्मीद के चिराग ,थरथरा के बु

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''आँखों में हलचल देखकर''

12 अक्टूबर 2015
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आपकी आँखों हलचल देखकर ,हूँ बहुत बेचैन,वो पल  देखकर ।दोपहर में ये घना काला  अंधेरा ,हैं सभी दहशत में बादल देखकर ।एक मुद्दत होगई है,गुम राहों में ,क्या कहेंगे पाँव मंजिल देखकर ।काश वो आवाज़ दें मैं जाग जाऊं,स्वप्न भी  बोलेंगे  साहिल देखकर ।वक्त यूँ टूटा कि ,चेहरे मुड़ गए हैं,आईना भी रो पड़ा ,कल देखकर ।जु

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''आँखों में हलचल देखकर''

12 अक्टूबर 2015
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आपकी आँखों हलचल देखकर ,हूँ बहुत बेचैन,वो पल  देखकर ।दोपहर में ये घना काला  अंधेरा ,हैं सभी दहशत में बादल देखकर ।एक मुद्दत होगई है,गुम राहों में ,क्या कहेंगे पाँव मंजिल देखकर ।काश वो आवाज़ दें मैं जाग जाऊं,स्वप्न भी  बोलेंगे  साहिल देखकर ।वक्त यूँ टूटा कि ,चेहरे मुड़ गए हैं,आईना भी रो पड़ा ,कल देखकर ।जु

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''आँखों में हलचल देखकर''

12 अक्टूबर 2015
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आपकी आँखों हलचल देखकर ,हूँ बहुत बेचैन,वो पल  देखकर ।दोपहर में ये घना काला  अंधेरा ,हैं सभी दहशत में बादल देखकर ।एक मुद्दत होगई है,गुम राहों में ,क्या कहेंगे पाँव मंजिल देखकर ।काश वो आवाज़ दें मैं जाग जाऊं,स्वप्न भी  बोलेंगे  साहिल देखकर ।वक्त यूँ टूटा कि ,चेहरे मुड़ गए हैं,आईना भी रो पड़ा ,कल देखकर ।जु

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बर्फ ,पानी ही बनेगा

12 अक्टूबर 2015
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''बर्फ ,पानी ही बनेगा''भाप  हो  या बर्फ ,पानी ही बनेगा,शब्द हैं कविता,कहानी भी बनेगा ।आजमा लेना किसी भी  मोड  पररहा का पत्थर , निशानी ही बनेगा ।मुश्किलों  का दौर जब भी आएगा ,जोश  का  लावा  रवानी  ही  बनेगा ।थाम लो हालात,हैं घुटनों पर  हमारे,वक्त कल फिर से जवानी ही बनेगा ।पीर को जब -जब तराशा   जायेगा

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बर्फ ,पानी ही बनेगा

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''बर्फ ,पानी ही बनेगा''भाप  हो  या बर्फ ,पानी ही बनेगा,शब्द हैं कविता,कहानी भी बनेगा ।आजमा लेना किसी भी  मोड  पररहा का पत्थर , निशानी ही बनेगा ।मुश्किलों  का दौर जब भी आएगा ,जोश  का  लावा  रवानी  ही  बनेगा ।थाम लो हालात,हैं घुटनों पर  हमारे,वक्त कल फिर से जवानी ही बनेगा ।पीर को जब -जब तराशा   जायेगा

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बर्फ ,पानी ही बनेगा

12 अक्टूबर 2015
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''बर्फ ,पानी ही बनेगा''भाप  हो  या बर्फ ,पानी ही बनेगा,शब्द हैं कविता,कहानी भी बनेगा ।आजमा लेना किसी भी  मोड  पररहा का पत्थर , निशानी ही बनेगा ।मुश्किलों  का दौर जब भी आएगा ,जोश  का  लावा  रवानी  ही  बनेगा ।थाम लो हालात, घुटनों पर   हमारे,वक्त कल फिर से जवानी ही बनेगा ।पीर को जब -जब तराशा   जायेगा ,

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''शब्दों की मर्यादा में ,कुछ कहने का साहस करना''

17 अक्टूबर 2015
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शब्दों की मर्यादा में ,कुछ कहने का साहस  करना,ऐसा  लगता  है  अंजुली में ,लहराता सागर  भरना ।बस्ती-बस्ती,बच्चा-बच्चा,पत्ता-पत्ता सा मन टूटा है ,मुश्किल है  पर ,मुमकिन उम्मीदों को आँगन करना ।चटक रहा है सख्त धरातल,सदियों से दोहन के बाद,लौट रहे हैं फिर सत्-पथ पे,शुभ-शुभ परिवर्तन करना ।सभी दिशाओं में जान

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''नज़र माँ ने सदके उतार दी''

18 अक्टूबर 2015
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लागी नज़र तो माँ ने,सदके उतार दी ।पिता ने राह दी,हर मुश्किल बुहार दी । ज़िन्दगी बिखर रही थी ,रास्तों पे  हम ,कमबख्त दोस्तों ने ,आकर संवार   दी।वो देखते रहे  उन्हें,हसरत  भरी  नज़र,जिसने सरे बाज़ार में,पगड़ी उछाल दी।इक उम्र तोड़ करके,आशियाँ बना लिया,बच्चों ने सौंप दी हमें , चादर उधार  की।रिश्ते सुलग रहे है

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गज़ल -क्षितिज

27 अक्टूबर 2015
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जब मिले थे आप सोचा ,ख्वाव पूरा हो गया,आपके जाते ही मैं ,आधा-अधूरा हो गया |यादों की गुस्ताख किर्चें,रूह को चुभती रहीं,रोशनी के दरमियाँ भी ,घुप अँधेरा हो गया |बे-मुरब्बत शक्ल तेरी,इन निगाहों की मुरीद,सच बता तू आजकल,किसका चितेरा हो गया |यूँ तो थककर रात को,सोने की जिद करता रहा,तू ख्यालों में चला आया ,स

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गज़ल -क्षितिज

27 अक्टूबर 2015
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जब मिले थे आप सोचा ,ख्वाव पूरा हो गया,आपके जाते ही मैं ,आधा-अधूरा हो गया |यादों की गुस्ताख किर्चें,रूह को चुभती रहीं,रोशनी के दरमियाँ भी ,घुप अँधेरा हो गया |बे-मुरब्बत शक्ल तेरी,इन निगाहों की मुरीद,सच बता तू आजकल,किसका चितेरा हो गया |यूँ तो थककर रात को,सोने की जिद करता रहा,तू ख्यालों में चला आया ,स

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गज़ल -क्षितिज

28 अक्टूबर 2015
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जब मिले थे आप सोचा ,ख्वाव पूरा हो गया,आपके जाते ही मैं ,आधा-अधूरा हो गया |यादों की गुस्ताख किर्चें,रूह को चुभती रहीं,रोशनी के दरमियाँ भी ,घुप अँधेरा हो गया |बे-मुरब्बत शक्ल तेरी,इन निगाहों की मुरीद,सच बता तू आजकल,किसका चितेरा हो गया |यूँ तो थककर रात को,सोने की जिद करता रहा,तू ख्यालों में चला आया ,स

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गतिरोधक

29 अक्टूबर 2015
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व्यर्थ की सम्भावनाये ,व्यर्थ की अवधारणाएं ,बनके पथबाधक खड़ी हैं,बनके गतिरोधक पड़ी हैं ।हाथ की चंचल लकीरें क्षणिक बदले रूप अपना ,कर्म से अवतीर्ण होती ,देखती नित नवल सपना ,तोडती प्रितिबंध लेकिन ,ना कभी आगे बढ़ी हैं । व्यर्थ की सम्भावनाये ,व्यर्थ की अवधारणाएं ,

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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल, कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद!

1 नवम्बर 2015
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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुलकॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद------1858 में Indian Education Act बनाया गया।इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपो

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मुश्किल हैं हालात,मगर मैं जिंदा हूँ,

4 नवम्बर 2015
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मुश्किल हैं हालात,मगर  मैं जिंदा हूँ,सबके  उतरे  रंग  कि,मैं  शर्मिंदा   हूँ।नहीं चाहिए ,ये अपनापन  रहने   दो ,गुजर गए तूफ़ान कि,अब मैं अच्छा हूँ।मैंने  अपना  और  पराया   ना  जाना ,बिखर गए  जज़्बात,ह्रदय  से  टूटा  हूँ।महलों में  हम  नहीं  सफ़र  में  होते  हैं ,भूल  गया दिन-रात, हमेशा  चलता  हूँ।क्या  

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मुश्किल हैं हालात,मगर मैं जिंदा हूँ,

4 नवम्बर 2015
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मुश्किल हैं हालात,मगर  मैं जिंदा हूँ,सबके  उतरे  रंग  कि,मैं  शर्मिंदा   हूँ।नहीं चाहिए ,ये अपनापन  रहने   दो ,गुजर गए तूफ़ान कि,अब मैं अच्छा हूँ।मैंने  अपना  और  पराया   ना  जाना ,बिखर गए  जज़्बात,ह्रदय  से  टूटा  हूँ।महलों में  हम  नहीं  सफ़र  में  होते  हैं ,भूल  गया दिन-रात, हमेशा  चलता  हूँ।क्या  

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अदब से झुक गईं नज़रें,इनायत हो गई है

11 नवम्बर 2015
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अदब  से झुक गईं नज़रें,इनायत हो गई  है,शर्तीयाँ आपको खुद से मुहब्बत हो गई है |करम फ़रमा दिया तुमने,शुक्रिया,मेहरबानी,हमें  तो इस  ज़माने से शिकायत हो गई  है |कि फिर लौट आये हैं सपने पुराने दिन हमारे,सितमगर हो गए ज़िंदा ,क़यामत हो  गई  है |तड़फती रूह,मन जलता,बदन की आबरू भी,वो परवाने,शमां , सबको नज़ाक़त हो गई

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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल, कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद!

14 नवम्बर 2015
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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुलकॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद------1858 में Indian Education Act बनाया गया।इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपो

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हवा को रोक मत अपना बनालो ज़िन्दगी

25 नवम्बर 2015
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परिंदे आसमां छूकर ज़मीं पर आ गये,नये तेवर , दिखाते पंख  वो  इतरा  रहे |कहीं खामोशियाँ फिर घेर ना लें रास्ता,यही तो सोचकर हम आप भी घबरा गये|दुआ फिर काम आएगी  संवारों ,ले चलो,बची उम्मीद के काबिल सिपाही आ गये |हवा को रोक मत अपना बनालो ज़िन्दगी,सिरों को जोड़ दो जो टूट कर  छितरा  गये |उठा लाओ कहीं से भी सकू

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गजल - कमबख्त क्या रिवाज़ है !

30 नवम्बर 2015
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रोपे हुए वो पौधे, दरख्त हो गए ,तो,प्यार के बर्ताव,बड़े सख्त हो गए ।काबिल-ए-यकीन तो, हरगिज नहीं थे वो ,लो आप जिनके आज ,सरपरस्त हो गए ।अफ़सोस क्या करेंगे ,आज जीत-हार का,कमबख्त खुद-ब-खुद , शिकस्त हो गए ।आब-ओ -लिहाज ,भूल गए वो गुरुर में ,काबिल बना दिए तो मौका -परस्त हो गए ।उम्मीद के चिराग ,थरथरा के बु

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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल, कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद!

4 दिसम्बर 2015
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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुलकॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद------1858 में Indian Education Act बनाया गया।इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपो

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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल, कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद!

4 दिसम्बर 2015
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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुलकॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद------1858 में Indian Education Act बनाया गया।इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपो

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शब्द फिर उड़ने लगे हैं

11 दिसम्बर 2015
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शब्द जब जुड़ने लगे,नए पृष्ठ भी मुड़ने लगे ,पंख उग आये ,विचारों के अनेक,त्रासदी की पंगुता तोड़कर,फिर लेखनी ,मूंक अक्षर फिर छिटककर ,इक सुरीली बांसुरी में ,ढल रहे हैं!कल्पना के नीड से,बाहर निकलकर ,फिर प्रखर ,नूतन विचार . . पंखों पर होकर सवार ,उड़ चले है शब्द !ढूंढने जन-भावनाएं ,खोजने नव कल्पनाये ,,श्रेष्ठ

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फिर उडी मिटटी,हवाएं धुंध बादल छा गया

13 दिसम्बर 2015
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फिर उडी मिटटी,हवाएं धुंध बादल छा गया,है कोई संकट धरा पर देखना गहरा गया। सूझता अब कुछ नहीं,अपना-पराया दोस्तों,  भुखमरी ज़ालिम गरीबी का बवंडर आ गया।  हो रहे बदनाम हम-तुम सब्र की भी इन्तहां, है जुबां खामोश पर हाथो में खंज़र आ गया। मौत तक कायम रहेगा आदमी तेरा करम ,ज़िन्दगी दोहराए पे तेरा मुक़द्दर आ गया। कल

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''ज़िन्दगी ने दिया फिर दगा दोस्तों''

20 दिसम्बर 2015
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ज़िन्दगी ने दिया,फिर दगा दोस्तों,कोई अपना रहा ना , सगा दोस्तों ।खो गए रास्ते ,हैं मज़िलें गुमशुदा ,पाँव फिर  हो गए ,बेवफा दोस्तों ।यूँ तराशा,चटख के बिखरने लगा,कच्ची मिट्टी का हूँ ,पुतला दोस्तों ।ठीक मंझधार में छोड़कर नाखुदा,साथ पतवार भी  ले  गया  दोस्तों ।अब तो हर सांस ही इम्तहाँ बन गई ,ज़हर पी कर  चली

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दर्द में हूँ आराम नहीं है

13 जनवरी 2016
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दीन - दशा  है   काम   नहीं     है,दर्द     में   हूँ ,  आराम   नहीं   है ।उगते     सूरज   ,  ढ़लती    रातें,दिन  मिल  जाये  शाम   नहीं है ।अपने   ही     आंसूं    पीता    हूँ,प्यास   हमारी   आम   नहीं  है ।जो  जी  चाहे   मोल    चुका   दो,मेरा   तो  कोई   दाम   नहीं   है ।टूटा   मन     बिखरी     बुनिया

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बता दो देश किसका है ,कोई तो सामने आकर

17 जनवरी 2016
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बता दो देश किसका है ,कोई तो सामने आकर, मैं हिन्दू या मुसलमां हूँ जरा समझाओगेआखिर। मुझे भी बरगलाने की बहुत कोशिश हुई है दोस्तों, टिका हूँ फिर भी ईमां पर कहा सबने मुझे काफ़िर। ना जाने क्या हुआ है शहर की आब-ओ-हवा को, चलो हम-तुम रहेंगे आज से शमशान में जाकर। मिलेंगे दिल खिलेंगे गुल ये भूल जाओ अब नहीं,कलेज

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भीख पर कानून है फिर भी भिखारी हैं

26 जनवरी 2016
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भीख पर कानून है फिर भी भिखारी हैं,जो भीख से पैदा हुए वो सत्राधारी हैं। हैं कुकुरमुत्ते  कोई औकात मत पूछो, काम कुछ आता नहीं घातक बीमारी हैं। लो  नागफनी ही ज़िंदा है अब मधुवन में,सूख रहीं हैं पुष्प-लताएँ  बेबस  क्यारी  है।कल तक साहिल पर खड़े हुए तूफां से डरते थे, वक़्त फिर गया तिनकों का लहरों पे सवारी है

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चलो ये भी तजुर्बा आप कर लो

26 जनवरी 2016
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चलो ये भी तजुर्बा  आप  कर  लो,नज़र भी आईना भी साफ कर लो। अँधेरा चीर कर निकलेगा सूरज,गुजरती रात है विश्वास कर लो।  रास्ता हूँ हमसफर जिद छोड़ दो,अकेला हूँ हमें भी साथ कर लो। उडा ले जाएगी आंधी हमारा घर, दो अपनापन इसे आबाद कर लो।  हमेशा कुछ नहीं रहता मुक़म्मल,नया अपना पुराना याद कर लो । सुलगती आग है आब-ओ-ह

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जाग जा हो जाएगा जलवानुमां

3 फरवरी 2016
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जाग जा हो जाएगा जलवानुमां,तेरे  सजदे  में झुकेगा आसमाँ। जिस्म की हर शै ताराशी जाएगी,ले चलो आगे तुम्हारा कारवाँ। अब समझ में आ गई सारी कहानी,और मत लो तुम हमारा इंम्तहां। सब्र अब हद से गुजरने जा रहा,कल शौक़ से सबको सुनाना दास्ताँ। पथ्थरों में बुत बनो भगवान का,दोहरा  हो  जायेगा  सारा  जहाँ। उंगलिया मेरी

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ये जो ज़िन्दगी है

29 फरवरी 2016
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सांसों में जोश होगा ,आँखों में ख्वाब होंगे,इक रोज़ ज़िन्दगी में,हम कामयाब होंगे ।कुछ कर गुज़र सकेंगे, इस दौरे -गुलिस्तां में ,सीने में अब सभी के ,कुछ इंक़लाब होंगे ।लिख्खी हैं चिठ्ठियाँ जो,मौसम ने बहारों को ,सोचा है पास उनके ,उम्दा जवाब होंगे ।महफूज़ रख सकेंगे कैसे वफ़ा के दावे ?गर बात-बात पर हम, यू

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है बुलंदी काम की तो ठीक है

12 मार्च 2016
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है  बुलंदी   काम  की   तो   ठीक है,भूल  जाओ  हार    है की  जीत है। कोई  तो  समझो  हमारी मुश्किलें,साज़    रूठे     टूटता    संगीत    है। ज़िन्दगी का है अलग अंदाज़ देखो,दोस्त फिर दुश्मन पुराना मीत है। अब बजह जीने की हमको चाहिए,बेबजह  उलझन  हमारी  रीति   है। एक दो पल साथ चल कर मुड़ गए,रास्ते   ना  हमसफ़र  

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सूचना

11 अप्रैल 2016
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सूचना

15 अप्रैल 2016
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सार दे माँ शारदे !

16 अप्रैल 2016
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वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!मीरा,सूर,कबीरा ने भी माँ चरणों में सुमन चढ़ाये,तुलसी ने मानस में जी भर तेरे ही इच्छित गुण गाये,मेरी कल्पना की उड़ान बन,रचना को श्रंगार दे ।वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!आ

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"भाल तिलक दे लाल "

21 अप्रैल 2016
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जीत के मस्तिष्क पर ,अभिषेक चन्दन का लगा दे ,सो रहीं जो युगों से , उन भवननाओ को जगा दे ।ले उठा वीणा प्रलय की, काल बेला आ गई ,शक्ति का संचार कर,ओ विश्व - मानव बन जई,है धरातल पर तिमिर ,तू हर गली में कर भ्रमण ,साथ में आलोक लेकर ,घर ,डगर ,कर जागरण ,'हर' हृदय की पीर ,मन से यातनाओं को मिटा दे ।आँसुंओं स

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वो अँधेरे से उजाला माँग बैठा,

22 अप्रैल 2016
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वो अँधेरे से उजाला माँग बैठा,बहुत भूखा था निबाला मांग बैठा| देखते ही देखते मुरझा गए गुल,फूल से ख़ुशबू की हाला मांग बैठा। अपने थे लेकिन किनारा कर गए हैं,मैं गर्दिशों में था सहारा मांग बैठा। हार की शतरंज का मोहरा बनाकर,  वो आसमां से टूटा त

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इस तरफ आओ इधर पहरा नहीं है

23 अप्रैल 2016
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इस तरफ आओ इधर पहरा नहीं है,यार समंदर है मगर गहरा नहीं है। संदेश प्यार का लाता  तो रोज है,क़ासिद है कौन मैंने देखा नहीं है। वीरान है सुनसान भी सन्नाटा है,ये जगह निर्जन है मगर सहरा नहीं है। है नदी ब्याकुल बहुत प्यासी भी है,आकर कोई सागर  मि

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तुम मेरी ताक़त हो तुमको हाथ में रखना

26 अप्रैल 2016
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तुम मेरी ताक़त हो तुमको हाथ में रखना, अच्छा लगता है समय को साथ में रखना। कल्पनाये भी हकीक़त बनके आयेंगीं मगर,अपने हुनर को तुम सही हालात में रखना। अगर तुम टूट जाओगे तो क्या जुड़ जाएगे,इस ज़िन्दगी को इक नई शुरुआत में रखना। हर दिन कसौटी पर नहीं लेकिन रहेगा इम्तहाँ,तुम बाजी-ए

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आँखों ने संजोए वो सपने पिघल गए

27 अप्रैल 2016
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आँखों ने संजोए वो सपने पिघल गए,पल भर में ज़िन्दगी के तेबर बदल गए। गुजरे गली से जब हम शोर सा उठा,  बिखरे हुए थे अरमां सब कुचल गए।   आवाज देकर आज तो वापस बुला,मैं इतज़ार में  तुम आगे निकल गए। हर मोड़ हर कदम पर तू इम्तहान लेगा,हम जानते थे बेहतर पहले संभल गए। ईमान-ओ-दिल देंग

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तुम मत सहेजो दर्द को साझा करो

27 अप्रैल 2016
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तुम मत सहेजो दर्द को साझा करो,छीन लो ना अपना हक़ माँगा करो। आग में जल जाएंगे सारे सबूत,बेगुनाही का ना अब  दावा करो। मेरे माथे की सलवटें पढ़ ज़रा,फिर आज बीते वक़्त को ताज़ा करो।  है  अंधेरों में भी  आशा की किरन,उम्मीद से दिन-रात को देखा करो। तुम अकेले ही परेशां तो नहीं हो,भ

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जब तक रहेंगे रंग मैं लिखता रहूँगा

28 अप्रैल 2016
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जब तक रहेंगे रंग मैं लिखता रहूँगा,दिल में तुम्हारी याद में जिन्दा रहूँगा। हालांकि गतिरोधक भी होंगे राहों में।  रुक नहीं  सकता यूँ ही चलता रहूँगा।  किताबो में नहीं लेकिन  लवो  पर हूँ, खुली हवा के पंखों पे  छपता रहूँगा। आंधी हो तूफां हो  या फिर रात काली, हूँ शब्दज्योति

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छा गए प्यार पे बादल साथी

29 अप्रैल 2016
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छा गए प्यार पे बादल साथी,बेवफा हो गया पल-पल साथी। अब खुदा खैर करे रब जाने,नाखुदा हो गया क़ातिल साथी। बात हालात से बत्तर निकली,ज़मीन-ओ आस्मां दल-दल साथी।  पाकर तालीम  परिंदे  उड़  गए, हम-तुम तो हैं पागल साथी।  बेकली में कहाँ जाए कोई,घर,गली,बस्ती है जंगल साथी। रात-दिन करवट

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गैर वाजिब मेहरबानियों को,

29 अप्रैल 2016
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गैर वाजिब मेहरबानियों को,ज़िद बनाओ ना नादानियों को।  थोड़ी मगरूर हैं और क्या है,आजमाओ न इन आँधियों को। हो जरुरी तो परदे  गिरा  दो,खुल्ला रहने भी दो खिड़कियों को। की खता तो नहीं मुआफ कर दो,आगे बढ़ने भी दो अर्जियों को। मेरी पूजा तुम्हारी इबादत,बाँध दो प्यार की डोरियों को। क

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प्यार फिर सबको नज़र लगा है

6 मई 2016
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प्यार फिर सबको नजर आने लगा है,जब मेरा घर टूट कर  गिरने लगा है। आखिर  मुंडेरों से परिंदे उड़ चले,खौफ मौसम का नजर आने लगा है। फिर धूप निकलेगी नज़र आएंगे हम,आपका दिल आज घबराने लगा है।मत गिनाओ तुम हमारे ऐब कितने, अब घटाना-जोड़ना आने लगा है।  आसान है ऊँगली उठाना किसी पर, वक़्त मुझ पर  आईना हंसने लगा है। हो ग

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ये बस्ती ये शहर मकान

16 मई 2016
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ये बस्ती ये शहर मकान हैं तेरी-मेरी पहचान। भूल गए हैं पाँव तुम्हारे,कुचल गए मेरे अरमान। हैरां हूँ मैं ना समझा,अपने-अपने हैं भगवान। फूल से कांटे जुदा नहीं,काँटों का अपना सम्मान। खामोशी में शोर छुपा है,आने वाला है तूफ़ान। वक्त बदल जायेगा लेकिन,बदल नहीं सकता इंसान। जब-जब सागर लहराता,बदले मौसम का उन्वान। 

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कार्डों

29 मई 2016
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करदो रौशन अंधेरो की ज़िद तोड़ दो,इक लहर उम्मीद की सपनो में जोड़ दो।है अधूरी अगर बात पूरी नहीं है,मत करो पूरी मगर ये सफे मोड़ दो।फिर पलटकर आयेंगे मौसम बहारें,लोना वक़्त के फैसले वक़्त पर छोड़ दो।कट गयीं गर पतंगें तो क्या हो गया है,थाम लो हाथ में फिर से सिरे जोड़ दो।सूखता दरिया है लेकिन समन्दर नहीं,आज पानी की

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भुला दो भूल जाओ याद रखना

2 जुलाई 2016
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भुला दो भूल जाओ  याद रखना,कहीं रखना सही बुनियाद रखना। मनाना  रूठ जाना फिर मनाना,तल्खियाँ कम अधिक संवाद रखना।न जाने कब कहाँ हो जाएं शामें,चिरागों का  जहां आबाद रखना।किनारे जब कभी  लहर आये,सफीनो को जरा पाबन्द  रखना। छिटक कर ज़िन्दगी बिखर जाये,दुआ कीजिए और फरियाद रखना।अगर फिर महक जाएँ  ख्वाब सारे,हवाओं

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तुझे अल्फाज के मानिंद जब-जब गुनगुनाया है

17 अगस्त 2016
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तुझे अल्फाज के मानिंद जब-जब गुनगुनाया है, शफ़क़ इकवारगी फिर ज़िन्दगी में लौट आया है। उदासी देर तक ठहरी रही मेरी निगाहों में,मुक़द्दर मानकर मैंने अभी तक तो निभाया है। तराशा भी गया हूँ और तमाशा भी बना हूँ मैं,कसौटी पर रखा हमको समय ने आजमाया है। श

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आज दिल खोलकर मुस्कुरा लीजिये

19 अगस्त 2016
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आज दिल खोलकर मुस्कुरा लीजिये,मैं ग़ज़ल हूँ मुझे गुनगुना लीजिये। जब बिखर जाऊँगा खुशबुओं की तरह,आप फूलों की माफिक उठा लीजिये। खो गई है अंधेरों में राह-रहगुजर,अब उजालों को भी आजमा लीजिये,हो न हो ज़िन्दगी का सफर आखिरी,सोचना क्या है पल-पल मज़ा लीजिये। बे-इरादा सही हम सफ़र मे

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हमारे शहर का मौसम कभी अच्छा नहीं होता

20 अगस्त 2016
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हमारे शहर का मौसम कभी अच्छा नहीं होता,तुम्हारे आगमन का गर कोई चर्चा नहीं होता। तबियत ठीक है लेकिन बड़ा बीमार है ये दिल,मेरा दिल आपने गर प्यार से तोडा नहीं होता। बदलते दौर की तस्वीर कुछ ऐसे बयाँ होती,कि रिश्ते टूटते गर कीमती तोहफ़ा नहीं होता। अगर मंजूर था तो प्यार को दिल से निभा लेते,ज़हर तन्हाइयों का र

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रोज मौसम बहार मिलते हैं

21 अगस्त 2016
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रोज मौसम बहार मिलते हैं,फिर भी गुल बेक़रार मिलते हैं। फुल,खुशबू भुला नहीं सकते,यूँ तो कांटे हजार मिलते हैं। मुफ्खोरों से संभलकर रहना,हर तरफ बार-बार मिलते हैं। ज़िन्दगी हारकर मिला क्या है,ख्वाब भी शोगवार मिलते हैं। नींद आँखों में अब नहीं आती,जागते इंतजार मिलते हैं। धीरे धीरे पिघल रहे आंसू ,मन -

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हमें आप गर ज़िन्दगी

25 अगस्त 2016
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हमें आप गर ज़िन्दगी मानते हैं, तो पहचान क्यों हमनशीं मांगते हैं। उन्हें कोई शिक़वा-शिकायत नहीं है,सही काम हो वन्दिगी मानते हैं। मुहब्बत का एहसास है खूबसूरत,मगर आप क्यों दिल्लगी मानते हैं। नहीं लौटकर आएगा जाने वाला,अगर आप ही अज़नबी मानते हैं।मुक़द्दर से दुनिया बदलती नहीं

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इश्क मासूम था हमनज़र कर लिया

25 अगस्त 2016
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इश्क मासूम था हमनज़र कर लिया,और तन्हाई को हमसफर कर लिया,आज रिश्तों की सीरत नज़र आ गई, दोस्ती को बहुत मुख्तसर कर लिया। ठोकरों ने तराशा हमें ज़िन्दगी,रास्तों को ही नूरे नज़र कर लिया। वक़्त के साथ मैं भी बदलता रहा,मुश्किलो को जरा बेअसर कर लिया। नींद टूटी तो सपने बिखरने लगे,टूटे ख्वाबों ने भी एक घर कर ल

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मैं पिघलूँगा जब भी उजाला बनूँगा

23 नवम्बर 2016
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मैं पिघलूँगा जब भी उजाला बनूँगा,हूँ तिनका सही पर सहारा बनूँगा। नहीं बुझने दूंगा दिया आँधियों में,झड़ी रौशनी का शरारा बनूँगा। अगर लिख ना पाया कलम से मुक़द्दर,तो तलवार पैनी दोधारा बनूँगा। अमन-चैन हो महकती हों फिजायें,लहर गंगा सागर की धारा बनूँगा। बिखरने ना पाए नशेंमां क

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ग़ज़ल

13 अक्टूबर 2018
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ले लिया संकल्प तो पूरा करो,मुश्किलों से ठोकरों से ना डरो।तोड़ कर चट्टान निकलेगी नदी,मत इरादा मोम का रख्खा करो।सब डराएंगे अंधेरों से तुम्हें,आप सूरज की तरह निकला करो।क्या मिला है क्या मिलेगा सोच ना,खुद को इतना दीजिए छलका करो।रंग खुशबू और हवाओं का हुनर,जोश रग-रग में भरो पैदा करो।जीत हो या हार

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गज़ल

14 अक्टूबर 2018
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किसी की शान में झूठे क़सीदे मत पढो,लड़ाएंगे तुम्हें आपस में हरगिज़ मत लड़ो।चलो तो यूँ चलो की रास्ते भी राह दें,झुकाओ आसमानों को सँभल के मत डरो।अधिकतर भेड़िये खद्दर पहन कर आये हैं,शिकारी कूकरों के जाल में तुम मत फंसो।फंसी गुमराहियों के दौर में क़ाबिल जवानी,संवारो तुम इन्हें अपना-पराया मत करो।भ

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घुला है ज़हर

15 अक्टूबर 2018
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घुला है ज़हर नदियों में तो पावनता कहाँ ढूंढूं,लगी है आग घर-घर में तो शीतलता कहाँ ढूंढूं।सुना है भूख की लोरी सुनी फिर सो गए बच्चे,बहुत मजबूर है मैया मेंरी ममता कहाँ ढूंढूं।उड़ाए बोझ सपनों का खड़े बाज़ार में बच्चे,मैं बचपन की शरारत और चंचलता कहाँ ढूंढूं।यहाँ हर आदमीं मगरूर या वहशी नज़र आये,सभी के हा

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शहर की

16 अक्टूबर 2018
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शहर की बत्तीयां गुल हैं हुक़ूमत के इशारों पर,हवाओं पे लगा इल्ज़ाम फिर बरखा फुहारों पर।हक़ीक़त जानते हैं सब परेशां आम जनता है,नहीं सुनवाई होती है गरीबों की गुहारों पर।लगी है रौशनी भी आजकल महलों की खिदमत मेंयकीं कम हो गया है चाँद सूरज अब सितारों पर।मिटा दोगे मेरी हस्ती नहीं औक़ात में हो

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करती रही दुनिया

17 अक्टूबर 2018
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लकीरों के फकीरों को नमन करती रही दुनिया,हुनर की आहुति देकर हवन करती रही दुनिया।शतानन हो गया है अब दशानन हर किसी में है,अभी तक कौन सा रावण दहन करती रही दुनिया।अभी तक भर रहा हूँ आपके खोदे हुए गड्ढ़े,वतन को बेचकर जो घर चमन करती रही दुनिया।दिलासा कैसे दूँ दिल को मेरे अपने ही क़ातिल हैं,हमेशा राम का ही वन

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