ये बस्ती ये शहर मकान
हैं तेरी-मेरी पहचान।
भूल गए हैं पाँव तुम्हारे,
कुचल गए मेरे अरमान।
हैरां हूँ मैं ना समझा,
अपने-अपने हैं भगवान।
फूल से कांटे जुदा नहीं,
काँटों का अपना सम्मान।
खामोशी में शोर छुपा है,
आने वाला है तूफ़ान।
वक्त बदल जायेगा लेकिन,
बदल नहीं सकता इंसान।
जब-जब सागर लहराता,
बदले मौसम का उन्वान।
प्रेम की परिभाषा ना जाने,
पढ़े-लिखे सैकड़ों महान।
राष्ट्रधर्म अब जाए भाड में,
अपनी चलती रहे दुकान।
मत पूछो अनमोल नहीं अब,
सिक्कों में बिक रहा ईमान।
तेरा-मेरा करने वालों,
अटल सत्य है ये शमशान।